रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में पश्चिमी देशों और भारत के बीच तनाव एक बार फिर गहराता दिख रहा है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सख्त टिप्पणी के बाद अब NATO महासचिव जेंस स्टोल्टेनबर्ग ने भी भारत को चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि यदि रूस से कच्चे तेल की खरीद जारी रही, तो इसके "परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें"। भारत ने इस बयान को “एकतरफा दबाव” करार देते हुए, अपने ऊर्जा हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने की बात कही है।
ट्रंप की धमकी के बाद NATO का बयान
हाल ही में ट्रंप ने एक चुनावी सभा में कहा था कि "जो देश रूस की आर्थिक मदद कर रहे हैं, वे अमेरिका की दोस्ती के लायक नहीं हैं।" इसके तुरंत बाद NATO चीफ स्टोल्टेनबर्ग का बयान सामने आया जिसमें भारत समेत अन्य एशियाई देशों को चेताया गया कि यदि वे रूस से सस्ते तेल का आयात करते रहे, तो उन्हें पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।
भारत की स्थिति क्या है?
भारत रूस से तेल आयात करने वाले प्रमुख देशों में से एक है। ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और महंगाई पर नियंत्रण रखने के लिए भारत ने पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस से तेल खरीद जारी रखी है। भारत सरकार का तर्क है कि वह अपने आर्थिक हितों के मद्देनजर फैसले लेती है और वह किसी भी भू-राजनीतिक खेमेबंदी का हिस्सा नहीं है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "भारत का ऊर्जा नीति निर्धारण उसकी जनता और उद्योगों की जरूरतों पर आधारित है, न कि किसी बाहरी दबाव पर। हमने हमेशा वैश्विक स्थिरता और संतुलन की वकालत की है।"
अमेरिका की रणनीति और संभावित असर
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है ताकि वह रूस से अपने कारोबारी रिश्तों को सीमित करे। हालांकि, भारत जैसे विशाल और उभरते बाज़ार को सज़ा देना अमेरिका के लिए भी आसान नहीं होगा। किसी भी प्रकार के आर्थिक प्रतिबंध या व्यापारिक बाधा से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है।
भारत की प्रतिक्रिया और कूटनीतिक चुनौती
भारत एक संतुलन की नीति अपनाने की कोशिश कर रहा है। जहां एक ओर वह अमेरिका और यूरोपीय संघ से रणनीतिक रिश्ते बनाए रखना चाहता है, वहीं रूस से भी अपने ऐतिहासिक और ऊर्जा आधारित संबंधों को समाप्त नहीं करना चाहता। इस स्थिति में भारत को अब और अधिक कुशल कूटनीति की ज़रूरत है ताकि वह वैश्विक शक्ति संतुलन में अपनी स्थिति मजबूत बनाए रख सके।