सुप्रीम कोर्ट में एक अहम सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग (Election Commission) ने स्पष्ट कहा कि मतदाता पहचान की प्रक्रिया में केवल आधार, वोटर आईडी या राशन कार्ड पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता। यह बयान 'SIR' यानी State Integrated Register प्रणाली को लेकर दाखिल याचिका की सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसे चुनाव आयोग मतदाता सूची के एकीकृत सत्यापन के लिए जरूरी मानता है।
चुनाव आयोग की प्रमुख दलीलें क्या रहीं?
चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आयोग ने कहा कि वर्तमान में मतदाता पहचान के लिए उपलब्ध दस्तावेजों में अनेक खामियाँ हैं। उदाहरण के लिए:
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आधार कार्ड बायोमेट्रिक पहचान के बावजूद पूरी तरह सटीक नहीं है क्योंकि यह केवल पहचान का साधन है, नागरिकता या मतदान का अधिकार प्रमाणित नहीं करता।
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वोटर आईडी कार्ड अक्सर अपडेशन में देरी, डुप्लिकेट एंट्रीज़ या फर्जी मतदाता रजिस्ट्रेशन जैसी समस्याओं से ग्रस्त रहता है।
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राशन कार्ड मूलतः खाद्य सुरक्षा योजनाओं से जुड़ा है, न कि नागरिक पहचान से।
SIR प्रणाली क्यों जरूरी?
चुनाव आयोग ने दलील दी कि SIR प्रणाली एक केंद्रीकृत डिजिटल डेटाबेस है, जिसमें राज्यों के स्तर पर मतदाता से जुड़े आंकड़ों का संकलन, सत्यापन और अद्यतन एकीकृत रूप में होता है। इससे डुप्लीकेट, मृतक या स्थानांतरित मतदाताओं की पहचान आसान होती है और पारदर्शिता बढ़ती है।
न्यायालय की प्रतिक्रिया:
सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल उठाया कि जब आधार, वोटर ID और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज़ सरकार की पहचान व्यवस्था के स्तंभ हैं, तो फिर केवल SIR पर ही क्यों भरोसा किया जा रहा है? इस पर आयोग ने जवाब दिया कि अकेले दस्तावेजों पर निर्भर रहना जोखिमभरा है और SIR सिस्टम इनकी त्रुटियों को पकड़ने का एक तकनीकी और प्रभावी तरीका है।
निष्कर्ष:
यह बहस भारतीय लोकतंत्र की बुनियादी प्रक्रिया — स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव — के तकनीकी पहलुओं पर गंभीर सवाल उठाती है। आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट का फैसला डिजिटल चुनावी पारदर्शिता और मतदाता सूची सुधार की दिशा तय कर सकता है।
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