संयुक्त राष्ट्र की एक प्रमुख एजेंसी ने इजराइल पर गंभीर आरोप लगाते हुए दावा किया है कि गाजा में राशन लेने पहुंचे दर्जनों फिलिस्तीनियों पर इजराइली सेना ने गोलीबारी की, जिसमें कम से कम 80 लोगों की जान चली गई। यह घटना गाजा पट्टी के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में घटी, जहां भारी संख्या में स्थानीय नागरिक मानवीय सहायता लेने के लिए एकत्र हुए थे।
क्या कहती है UN एजेंसी की रिपोर्ट?
संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी (UNRWA) ने अपने बयान में बताया कि गाजा में हालात दिन-ब-दिन बदतर होते जा रहे हैं। एजेंसी के अनुसार, भोजन, पानी और दवाओं की कमी के कारण लोग हर रोज जान जोखिम में डालकर सहायता केंद्रों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। इसी दौरान राशन वितरण केंद्र के पास भारी भीड़ जमा थी, तभी इजराइली सुरक्षा बलों ने भीड़ को तितर-बितर करने के नाम पर फायरिंग कर दी, जिससे 80 से अधिक नागरिक मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए।
इजराइल का पक्ष क्या है?
इजराइली सेना ने अब तक इस घटना पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, उनके सुरक्षा सूत्रों ने गाजा में "संदिग्ध गतिविधियों" का हवाला देते हुए कहा कि आतंकवादी तत्वों की आड़ में कुछ लोग राहत सामग्री के वितरण स्थलों का दुरुपयोग कर सकते हैं। इससे पहले भी इजराइल पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि वह मानवीय सहायता को बाधित कर रहा है, लेकिन सरकार हर बार यह कहती रही है कि वह केवल आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई कर रही है।
मानवीय संकट और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
गाजा में पहले से ही युद्ध और प्रतिबंधों के चलते गहराया मानवीय संकट इस घटना के बाद और विकराल हो गया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने घटना को "गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन" बताते हुए इसकी स्वतंत्र जांच की मांग की है। वहीं, कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इसे "युद्ध अपराध" करार दिया है और इजराइल पर कार्रवाई की मांग की है।
अमेरिका, यूरोपीय संघ और अरब लीग ने भी चिंता जताई है और इजराइल से संयम बरतने की अपील की है। फिलिस्तीनी प्राधिकरण ने इस घटना को "इजराइली बर्बरता का नया अध्याय" बताया है और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मामला उठाने की बात कही है।
गाजा में फंसे लाखों नागरिकों के लिए हालात पहले ही नारकीय हैं। भोजन और जल जैसे मूलभूत संसाधनों की कमी के बीच यदि राहत कार्यों पर भी हमले होते हैं, तो यह न केवल अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन है, बल्कि पूरी मानवता के लिए शर्मनाक है। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट ने एक बार फिर वैश्विक समुदाय को इस संकट की ओर गंभीरता से देखने को विवश कर दिया है।