इज़राइल और हमास के बीच जारी संघर्ष के बीच एक बड़ा बदलाव सामने आया है। भारी अंतरराष्ट्रीय दबाव और मानवीय संकट की बढ़ती चिंताओं के बीच इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार ने आखिरकार नरम रुख अपनाया है। इज़रायली सेना ने घोषणा की है कि गाज़ा पट्टी के तीन प्रमुख इलाकों में प्रतिदिन 10 घंटे के लिए युद्धविराम रहेगा ताकि आम नागरिकों को राहत और सहायता मिल सके।
क्या है सेना का फैसला?
इज़रायली डिफेंस फोर्सेस (IDF) के प्रवक्ता डैनियल हगारी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि गाज़ा के उत्तरी, मध्य और दक्षिणी हिस्सों में प्रतिदिन सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक सैन्य गतिविधियां स्थगित रहेंगी। इस दौरान राहत और बचाव कार्यों को सुचारू रूप से चलाने, चिकित्सा आपूर्ति पहुँचाने और विस्थापित लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने की अनुमति दी जाएगी।
अंतरराष्ट्रीय दबाव ने बदली रणनीति
संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोपीय संघ और कई मानवीय संगठनों ने इज़राइल पर यह दबाव डाला था कि वह संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में आम नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। बीते कुछ हफ्तों में गाज़ा में भारी तबाही के दृश्य सामने आए, जिसमें सैकड़ों नागरिकों की मौत और हजारों लोग बेघर हो चुके हैं। इसी को लेकर नेतन्याहू सरकार पर चौतरफा आलोचना हुई।
मानवीय गलियारे का उद्देश्य
इज़रायली अधिकारियों ने साफ किया कि यह कदम युद्धविराम की दिशा में नहीं है, बल्कि यह एक ‘मानवीय अंतराल’ है, जिससे जरूरतमंदों को राहत दी जा सके। हालांकि, सेना ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर हमास या कोई अन्य गुट इन घंटों का दुरुपयोग करता है, तो जवाबी कार्रवाई की जाएगी।
गाज़ा में जमीनी हालात अब भी भयावह
गाज़ा में बिजली, पानी और दवा की भारी कमी बनी हुई है। अस्पतालों में जगह नहीं है और हजारों नागरिक बेघर होकर स्कूलों और शिविरों में रह रहे हैं। रेड क्रॉस और अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा है कि यदि इज़राइल इस निर्णय को ईमानदारी से लागू करता है, तो यह एक सकारात्मक शुरुआत हो सकती है।
राजनीतिक आलोचना और समर्थन
इस फैसले पर नेतन्याहू की आलोचना भी हो रही है। कट्टरपंथी धड़े इसे ‘कमजोरी का प्रतीक’ बता रहे हैं, वहीं कुछ शांति समर्थक समूहों ने इसे साहसी कदम करार दिया है। फिलहाल इज़रायल की आंतरिक राजनीति इस फैसले को लेकर दो ध्रुवों में बंटी हुई नज़र आ रही है।
गाज़ा संघर्ष में यह निर्णय एक अहम मोड़ माना जा रहा है। अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह 'मानवीय विराम' आगे चलकर एक व्यापक संघर्षविराम की नींव बन सकता है या फिर यह केवल एक अस्थायी राहत भर साबित होगा।