मॉस्को/तेहरान। रूस और ईरान ने कैस्पियन सागर में एक संयुक्त सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया है, जिसे अंतरराष्ट्रीय सामरिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह युद्धाभ्यास ऐसे समय पर शुरू हुआ है जब पश्चिमी देशों विशेषकर अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ रूस के संबंध बेहद तनावपूर्ण चल रहे हैं। इस ड्रिल को अमेरिका के लिए एक भू-राजनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है।
रूस और ईरान, दोनों ही देश लंबे समय से अमेरिका की नीतियों और प्रतिबंधों का विरोध करते रहे हैं। अब जब ये दो प्रमुख अमेरिका विरोधी देश एक साथ युद्धाभ्यास कर रहे हैं, तो यह विश्व राजनीति में शक्ति संतुलन को चुनौती देने वाला कदम माना जा रहा है। इस संयुक्त सैन्य अभ्यास में नौसेना के युद्धपोत, पनडुब्बी-रोधी तकनीक, ड्रोन और एयर डिफेंस सिस्टम का प्रदर्शन किया जा रहा है।
सैन्य अभ्यास की प्रमुख विशेषताएं
रूसी रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, इस युद्धाभ्यास का उद्देश्य क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा को मजबूत करना, आतंकवाद-निरोधी रणनीति को साझा करना और पारस्परिक रक्षा क्षमताओं का प्रदर्शन करना है। दोनों देशों की नौसेनाएं इस दौरान साझा गश्त, मालवाहक जहाजों की सुरक्षा, और हाइब्रिड युद्ध जैसी परिस्थितियों में प्रतिक्रिया के अभ्यास कर रही हैं।
ईरानी नौसेना के कमांडरों ने इसे "रणनीतिक सहयोग की दिशा में निर्णायक कदम" करार दिया है। उनके अनुसार, यह अभ्यास न केवल सैन्य बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक संदेश भी देता है कि ईरान और रूस किसी भी बाहरी दबाव या रणनीतिक घेराबंदी से पीछे नहीं हटेंगे।
कैस्पियन सागर में बढ़ी हलचल
कैस्पियन सागर पांच देशों—रूस, ईरान, अज़रबैजान, तुर्कमेनिस्तान और कज़ाकिस्तान—से घिरा हुआ है और इस क्षेत्र में ऊर्जा संसाधनों की बहुतायत है। ऐसे में यहां हो रही सैन्य गतिविधियां क्षेत्रीय असंतुलन को बढ़ा सकती हैं। अमेरिका और नाटो देशों ने इस ड्रिल पर गंभीर चिंता जताई है और इसे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बताया है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
अमेरिका के विदेश विभाग ने एक बयान में कहा कि यह अभ्यास “भड़काऊ और तनाव बढ़ाने वाला कदम” है और इससे क्षेत्रीय स्थिरता को नुकसान पहुंच सकता है। वहीं रूस और ईरान ने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि यह अभ्यास सिर्फ रक्षा क्षमताओं के विकास के लिए है और इसका उद्देश्य किसी भी तीसरे देश को धमकाना नहीं है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह अभ्यास अमेरिका को यह दिखाने की कोशिश है कि रूस और ईरान किसी भी संभावित खतरे का मुकाबला मिलकर कर सकते हैं, और भविष्य में उनका गठबंधन वैश्विक समीकरणों को चुनौती दे सकता है।