सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (ECI) को एक अहम निर्देश जारी करते हुए कहा कि मतदाता सूची के पुनरीक्षण (voter list revision) के दौरान आधार कार्ड और वोटर आईडी को वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाए। यह आदेश चुनावी पारदर्शिता और मतदाता पहचान की पुष्टि को लेकर दाखिल की गई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आया।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जब सरकार ने पहले ही आधार को विभिन्न योजनाओं और सेवाओं से जोड़ने की अनुमति दी है, तो पुनरीक्षण प्रक्रिया में इसे अस्वीकार करना उचित नहीं है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी मतदाता को सिर्फ आधार नहीं होने के कारण सूची से बाहर नहीं किया जाना चाहिए।
ECI की दलील पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी
चुनाव आयोग ने सुनवाई में कहा कि आधार की अनिवार्यता को लेकर कई तकनीकी और कानूनी मुद्दे हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि आधार को पहचान का वैध प्रमाण माना गया है, तो पुनरीक्षण के दौरान उसे अस्वीकार करना तर्कसंगत नहीं है। अदालत ने चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया कि इस प्रक्रिया में किसी मतदाता के संवैधानिक अधिकारों का हनन न हो।
पुनरीक्षण प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही पर ज़ोर
कोर्ट ने यह भी कहा कि मतदाता सूची के अद्यतन और शुद्धिकरण के लिए पारदर्शिता अत्यंत आवश्यक है। किसी भी मतदाता का नाम गलती से हट जाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है। इसलिए पुनरीक्षण के दौरान ऐसे दस्तावेजों को वैध मानना अनिवार्य है, जिनसे व्यक्ति की पहचान और नागरिकता की पुष्टि होती हो।
आगे की प्रक्रिया क्या होगी?
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद अब चुनाव आयोग को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी करने होंगे। साथ ही आधार और वोटर आईडी को मान्य दस्तावेजों की सूची में प्राथमिकता के आधार पर शामिल किया जाएगा।