कर्नाटक के एक प्रसिद्ध धर्मस्थल से जुड़ा गंभीर खुलासा सामने आया है, जिसने स्थानीय प्रशासन और पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आरोप है कि इस धर्मस्थल में हुई संदिग्ध मौतों का रिकॉर्ड पुलिस ने न केवल छिपाया, बल्कि संबंधित डेटा भी सिस्टम से हटा दिया। यह मामला तब सामने आया जब क्षेत्र में सैंकड़ों बिना नाम-पहचान की लाशें दफनाए जाने की सूचना मिली।
कहां से शुरू हुआ मामला?
पिछले महीने एक सामाजिक कार्यकर्ता की याचिका पर क्षेत्रीय मीडिया ने धर्मस्थल के आसपास बड़ी संख्या में दफनाई गई लाशों को लेकर रिपोर्ट प्रकाशित की थी। जांच के दौरान पता चला कि इनमें से कई शवों की कोई आधिकारिक जानकारी पुलिस या प्रशासन के रिकॉर्ड में नहीं थी। इससे संदेह गहराया कि कहीं इन मौतों को जानबूझकर छिपाया तो नहीं गया?
पुलिस पर गंभीर आरोप
स्थानीय पुलिस पर आरोप है कि उसने 2022 से अब तक धर्मस्थल में हुई मौतों का डाटा रिकॉर्ड से हटा दिया है। जानकारी के मुताबिक, पहले उपलब्ध रहे कुछ डिजिटल रिकॉर्ड अब गायब हैं। सूत्रों की मानें तो एक वरिष्ठ अधिकारी के मौखिक आदेश पर यह डेटा डिलीट किया गया। हालांकि पुलिस विभाग ने इस पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी है।
सरकार की चुप्पी और विपक्ष का हमला
राज्य सरकार ने अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। विपक्ष ने सरकार पर हमला बोलते हुए जांच की मांग की है और इसे ‘संगठित कवर-अप’ करार दिया है। कांग्रेस और जेडीएस नेताओं ने सवाल किया है कि आखिर धर्मस्थल में इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत कैसे हुई और उनके शव बिना जांच के क्यों दफनाए गए?
मानवाधिकार आयोग की सक्रियता
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार और पुलिस महानिदेशक से 15 दिनों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। आयोग का कहना है कि यह मामला न केवल प्रशासनिक चूक का है, बल्कि यह मानवाधिकारों का उल्लंघन भी हो सकता है।