अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और 2024 के चुनावी विजेता डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर वैश्विक व्यापार की तस्वीर बदलने की ओर बढ़ते दिख रहे हैं। चीन पर पहले ही 50% तक के टैरिफ (आयात शुल्क) थोपने के बावजूद ट्रंप की आक्रामक नीति थमने का नाम नहीं ले रही। अब उन्होंने संकेत दिया है कि अमेरिका "बहुत जल्द सेकेंड्री सैंक्शन" (द्वितीयक प्रतिबंध) भी लागू करेगा, जिससे उन देशों और कंपनियों को भी नुकसान होगा जो चीन के साथ व्यापारिक साझेदारी कर रहे हैं।
ट्रंप ने एक टेलीविजन इंटरव्यू में कहा, "चीन हमारी अर्थव्यवस्था को वर्षों से नुकसान पहुंचा रहा है। अब वक्त आ गया है कि हम न केवल सीधे प्रतिबंध लगाएं, बल्कि उन सहयोगियों पर भी कार्रवाई करें जो चीन की मदद कर रहे हैं।"
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की यह रणनीति केवल चीन को ही नहीं, बल्कि वैश्विक आपूर्ति शृंखला, यूरोपीय और एशियाई बाजारों को भी झकझोर सकती है। सेकेंड्री सैंक्शन का मतलब यह है कि अगर कोई तीसरा देश चीन के साथ व्यापार करता है और अमेरिका के हितों के विरुद्ध जाता है, तो उस पर भी अमेरिकी प्रतिबंध लागू हो सकते हैं।
2025 की शुरुआत में ट्रंप ने चीन से आने वाले इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो, स्टील और टेक्नोलॉजी उत्पादों पर 50% तक टैरिफ लगाया था। हालांकि इसके बावजूद अमेरिकी व्यापार घाटे में कोई खास कमी नहीं आई और घरेलू उद्योगों में असंतोष बढ़ता गया। अब ट्रंप प्रशासन का मानना है कि "हार्ड पावर इकोनॉमिक पॉलिसी" के तहत सीधे दबाव के साथ-साथ अप्रत्यक्ष भागीदारों पर भी शिकंजा कसा जाए।
ट्रंप की यह नीति बाइडेन प्रशासन की कूटनीतिक नरमी से बिल्कुल उलट मानी जा रही है। जहां बाइडेन चीन के साथ टकराव से बचते हुए वैश्विक सहयोग का रास्ता तलाशते थे, वहीं ट्रंप “अमेरिका फर्स्ट” की नीति को एक बार फिर और अधिक तीखा बनाते दिख रहे हैं।
भारत जैसे देशों के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है। एक ओर भारत अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है, दूसरी ओर चीन के साथ भी व्यापारिक संबंध बने हुए हैं। यदि ट्रंप प्रशासन सेकेंड्री सैंक्शन लागू करता है, तो भारतीय कंपनियों को कड़ी सावधानी बरतनी होगी।
क्या ट्रंप का यह आर्थिक राष्ट्रवाद अमेरिका को मजबूती देगा या वैश्विक व्यापार में और अशांति लाएगा? यह सवाल अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चर्चा का विषय बन गया है।