अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक हलकों में इस समय अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और मौजूदा चुनावी दावेदार डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं। हाल के बयानों और प्रस्तावित विदेश नीतियों ने वैश्विक सुरक्षा विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है। उनका मानना है कि ट्रंप अपने राजनीतिक लाभ के लिए ऐसे कदम उठा रहे हैं, जो परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की संभावना को बढ़ा सकते हैं। कई विशेषज्ञों ने तो यहां तक कह दिया है कि ट्रंप “आग से खेल रहे हैं” और उनके फैसलों से दुनिया एक नए हथियारों की होड़ में फंस सकती है।
परमाणु संधियों से पीछे हटने के संकेत
ट्रंप पहले भी अपने कार्यकाल में अमेरिका को कुछ महत्वपूर्ण हथियार नियंत्रण संधियों से अलग कर चुके हैं, जैसे INF संधि और ईरान परमाणु समझौता। अब उनके ताजा बयानों से संकेत मिल रहा है कि यदि वे सत्ता में लौटते हैं तो रूस, चीन और उत्तर कोरिया के साथ हथियार नियंत्रण वार्ताओं में कठोर रुख अपनाएंगे। उन्होंने कहा है कि अमेरिका को “अपने दुश्मनों पर तकनीकी और सैन्य बढ़त बनाए रखनी होगी, चाहे इसके लिए हथियारों का विस्तार ही क्यों न करना पड़े।”
रूस-यूक्रेन और एशिया में तनाव
ट्रंप ने यूक्रेन युद्ध में अमेरिका की भूमिका को लेकर मिश्रित संकेत दिए हैं। एक ओर उन्होंने युद्ध जल्दी खत्म कराने की बात कही है, वहीं दूसरी ओर रूस पर दबाव बनाने के लिए सैन्य ताकत के इस्तेमाल की चेतावनी भी दी है। एशिया में चीन और उत्तर कोरिया को लेकर उनका आक्रामक रुख पहले से ही तनावपूर्ण माहौल को और भड़का सकता है। दक्षिण चीन सागर, ताइवान और कोरियाई प्रायद्वीप पर उनकी बयानबाजी से हालात विस्फोटक हो सकते हैं।
विशेषज्ञों की चेतावनी
अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति का मतलब वैश्विक सहयोग से दूरी और एकतरफा फैसलों में वृद्धि है। इससे बहुपक्षीय कूटनीति कमजोर होगी और बड़े परमाणु शक्तियों के बीच विश्वास की खाई और गहरी हो जाएगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि संवाद और विश्वास बहाली की प्रक्रिया कमजोर होती है, तो परमाणु हथियारों के आकस्मिक इस्तेमाल का खतरा बढ़ जाता है।
दुनिया के लिए संभावित खतरे
ट्रंप की कठोर नीतियों से हथियारों की होड़ तेज हो सकती है, जिससे रक्षा बजट में इजाफा होगा और सामाजिक-आर्थिक विकास पर असर पड़ेगा। यदि अमेरिका, रूस और चीन जैसे देश अपने परमाणु शस्त्रागार का विस्तार करते हैं, तो अन्य देश भी सुरक्षा की खातिर हथियार जुटाने की दौड़ में शामिल हो सकते हैं। यह परिदृश्य वैश्विक स्थिरता के लिए बेहद खतरनाक है।
ट्रंप के राजनीतिक एजेंडे और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के बीच टकराव साफ नजर आ रहा है। जहां उनके समर्थक इसे अमेरिकी शक्ति और प्रतिष्ठा बनाए रखने का तरीका मानते हैं, वहीं आलोचकों का कहना है कि यह दुनिया को एक खतरनाक मोड़ पर ले जाने वाला कदम है। यदि भविष्य में संवाद, समझौते और पारदर्शिता को प्राथमिकता नहीं दी गई, तो ट्रंप की नीतियां सचमुच परमाणु युद्ध के खतरे को और करीब ला सकती हैं।