सुप्रीम कोर्ट ने असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़न्स (NRC) से जुड़े एक अहम मामले की सुनवाई के दौरान साफ किया कि आधार कार्ड और वोटर आईडी को नागरिकता का अंतिम प्रमाण नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि ये दस्तावेज़ केवल पहचान पत्र हैं, लेकिन इनसे किसी व्यक्ति की भारतीय नागरिकता स्वतः सिद्ध नहीं होती।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह टिप्पणी असम की मतदाता सूची और NRC प्रक्रिया में पाई गई गड़बड़ियों पर हुई सुनवाई के दौरान की। अदालत ने स्पष्ट किया कि नागरिकता साबित करने के लिए कानूनी दस्तावेज़ और उचित प्रक्रिया ही मान्य होगी, न कि केवल पहचान पत्र।
इस दौरान चुनाव आयोग (EC) ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि असम की ड्राफ्ट मतदाता सूची में जो त्रुटियां और विसंगतियां सामने आई हैं, उन्हें समय रहते सुधारा जाएगा। आयोग के वकील ने कहा कि ड्राफ्ट सूची में पाई गई तकनीकी और डेटा एंट्री से जुड़ी गलतियों को ठीक करने की प्रक्रिया चल रही है, ताकि अंतिम सूची सटीक और निष्पक्ष हो।
अदालत में पेश हुई रिपोर्ट के अनुसार, ड्राफ्ट मतदाता सूची में कुछ ऐसे नाम शामिल पाए गए जो NRC में "अवैध प्रवासी" के रूप में चिह्नित थे, वहीं कुछ पात्र नागरिकों के नाम सूची से बाहर रह गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नाराज़गी जताते हुए चुनाव आयोग और राज्य प्रशासन से समन्वय बनाकर स्थिति सुधारने के निर्देश दिए।
पीठ ने यह भी कहा कि मतदाता सूची की शुद्धता लोकतांत्रिक प्रक्रिया की नींव है, और इसमें किसी भी प्रकार की त्रुटि जन-विश्वास को नुकसान पहुंचा सकती है। अदालत ने संबंधित अधिकारियों को पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
इस मामले का सीधा संबंध असम में नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया और NRC अपडेट से है, जो लंबे समय से विवाद और कानूनी चुनौतियों के बीच रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भविष्य में देशभर में पहचान पत्रों और नागरिकता प्रमाणन को लेकर कानूनी व्याख्या पर असर डाल सकती है।