कानपुर की विश्वप्रसिद्ध चमड़ा उद्योग पर बड़ा संकट मंडरा रहा है। अमेरिका द्वारा चमड़ा और उससे बने उत्पादों पर आयात शुल्क (टैरिफ) बढ़ाने के फैसले से करीब 2,000 करोड़ रुपये का निर्यात ठप हो गया है। इस कदम का सीधा लाभ चीन और पाकिस्तान जैसे प्रतिस्पर्धी देशों को मिल रहा है, जो अब अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों की जगह तेजी से पकड़ बना रहे हैं।
चमड़ा निर्यातक परिषद और उद्योग से जुड़े कारोबारियों के अनुसार, अमेरिका में आयात शुल्क 10% से बढ़ाकर औसतन 25% कर दिया गया है, जिससे भारतीय उत्पाद महंगे हो गए हैं। नतीजतन, अमेरिकी खरीदार अब सस्ते विकल्पों के लिए चीन, पाकिस्तान, वियतनाम और बांग्लादेश का रुख कर रहे हैं।
कानपुर, जो भारत के चमड़ा निर्यात का बड़ा केंद्र है, वहां के उद्योगपति इसे पिछले दो दशकों का सबसे बड़ा झटका बता रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक, कानपुर से होने वाले कुल चमड़ा निर्यात का लगभग 35% हिस्सा अमेरिका जाता था। अब टैरिफ बढ़ने के बाद ऑर्डर रद्द हो रहे हैं और तैयार माल गोदामों में पड़ा है।
व्यापारियों का कहना है कि यह संकट न केवल निर्यात आय को प्रभावित कर रहा है, बल्कि हजारों कामगारों की आजीविका पर भी खतरा पैदा कर रहा है। कानपुर के चमड़ा उद्योग में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 10 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। ऑर्डर घटने से उत्पादन कम होगा और कई छोटी इकाइयों के बंद होने की आशंका है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत सरकार को जल्द ही अमेरिका से कूटनीतिक और व्यापारिक स्तर पर बातचीत कर समाधान निकालना चाहिए। इसके अलावा, नए बाजार तलाशने और उत्पाद विविधीकरण पर जोर देने की भी जरूरत है, ताकि एक ही देश पर निर्भरता कम हो।
अंतरराष्ट्रीय बाजार विश्लेषकों का कहना है कि चीन और पाकिस्तान पहले से ही अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धी दामों पर उत्पाद उपलब्ध करा रहे थे। अब टैरिफ बढ़ने से उन्हें और बढ़त मिल गई है, जिससे भारत की हिस्सेदारी तेजी से घट सकती है।