दिल्ली-एनसीआर में पुराने वाहनों के चलने पर रोक को लेकर चल रही कानूनी बहस पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा निर्णय सुनाया है। अदालत ने साफ किया कि फिलहाल पुराने वाहनों के संचालन पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा, बल्कि उनका इस्तेमाल निर्धारित नियमों और प्रदूषण मानकों के तहत किया जा सकेगा।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला उस याचिका पर सुनाया, जिसमें दिल्ली-एनसीआर में 10 साल से पुराने डीजल और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहनों के इस्तेमाल पर रोक की मांग की गई थी। अदालत ने कहा कि केवल वाहन की उम्र को आधार बनाकर उस पर रोक नहीं लगाई जा सकती, जब तक कि वह प्रदूषण नियंत्रण मानकों का पालन कर रहा हो।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वे प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की पहचान और कार्रवाई के लिए वैज्ञानिक एवं पारदर्शी तंत्र विकसित करें। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि एनजीटी (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) के पुराने आदेश का पालन करते समय उचित लचीलापन और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जाए, ताकि आम नागरिकों पर अनावश्यक बोझ न पड़े।
पीठ ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण का उद्देश्य जनता की स्वास्थ्य सुरक्षा है, लेकिन इसमें नीति निर्धारण और कार्यान्वयन के दौरान संतुलन भी जरूरी है। अदालत ने सुझाव दिया कि फिटनेस टेस्ट, ग्रीन टैक्स, और नियमित प्रदूषण जांच को अनिवार्य कर पुराने लेकिन तकनीकी रूप से सक्षम वाहनों को सड़क पर चलने की अनुमति दी जा सकती है।
यह फैसला खास तौर पर उन लाखों वाहन मालिकों के लिए राहत लेकर आया है, जिनके वाहन उम्र के हिसाब से पुराने हैं लेकिन तकनीकी रूप से सही हालत में हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय वाहनों के कबाड़ में जाने की रफ्तार को धीमा करेगा और साथ ही प्रदूषण नियंत्रण के लिए अधिक वैज्ञानिक उपायों की ओर ध्यान केंद्रित करेगा।
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण लंबे समय से एक गंभीर समस्या रही है, जहां सर्दियों के दौरान प्रदूषण स्तर खतरनाक श्रेणी तक पहुंच जाता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय प्रदूषण नियंत्रण की रणनीति में संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाता है, जिसमें पर्यावरण और जनहित दोनों को ध्यान में रखा गया है।