सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार के स्पेशल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट (SIR) मामले की सुनवाई के दौरान सख्त रुख अपनाया। अदालत ने साफ कहा कि यदि जांच या प्रक्रिया में किसी प्रकार की अनियमितता पाई जाती है तो पूरी प्रक्रिया को निरस्त करने में संकोच नहीं किया जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि न्यायालय का उद्देश्य केवल तथ्यों की सच्चाई सामने लाना है। यदि किसी स्तर पर प्रक्रिया पारदर्शी नहीं रही या निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं, तो अदालत स्थिति को सुधारने के लिए कठोर कदम उठाएगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में निष्पक्ष जांच और न्यायिक समीक्षा आवश्यक है, ताकि जनता का भरोसा बरकरार रह सके।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि बिहार में SIR से जुड़ी प्रक्रिया में गंभीर खामियां और पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया गया है। उन्होंने दावा किया कि जांच एजेंसियों ने मनमाने ढंग से काम किया, जिससे पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो गए हैं। इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह पूरे मामले की गहनता से समीक्षा करेगा और यदि आरोप सही पाए गए तो दोषियों पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।
पीठ ने राज्य सरकार और संबंधित एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे प्रक्रिया से जुड़े सभी दस्तावेज और रिकॉर्ड न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करें। साथ ही अदालत ने दो टूक कहा कि किसी भी जांच या रिपोर्ट का उद्देश्य केवल सच तक पहुँचना होना चाहिए, न कि किसी राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव में आना।
विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी बिहार में SIR से जुड़े पूरे विवाद पर बड़ा असर डाल सकती है। यदि गड़बड़ी के सबूत सामने आते हैं तो पूरी रिपोर्ट रद्द हो सकती है और नई जांच की प्रक्रिया शुरू करनी पड़ सकती है।
फिलहाल मामला विचाराधीन है और अगली सुनवाई की तारीख पर सभी पक्षों को विस्तृत जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है।
यह टिप्पणी न केवल बिहार बल्कि पूरे देश के लिए एक संदेश है कि किसी भी न्यायिक या प्रशासनिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।