भारत ने रूस और बेलारूस की संयुक्त सैन्य कवायद में शामिल होकर एक बार फिर अमेरिका की बेचैनी बढ़ा दी है। इस ड्रिल की खास बात यह रही कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन स्वयं ग्राउंड-जीरो पर मौजूद रहे और उन्होंने सेना का मनोबल बढ़ाया। भारत की भागीदारी को सामरिक दृष्टि से बेहद अहम माना जा रहा है, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक भू-राजनीति नई करवट ले रही है।
सैन्य अभ्यास का महत्व
रूस और बेलारूस की यह संयुक्त कवायद पूर्वी यूरोप में आयोजित की गई है। इसमें ड्रोन, मिसाइल और एडवांस्ड हथियारों का परीक्षण किया जा रहा है। रूस का दावा है कि यह अभ्यास किसी विशेष देश के खिलाफ नहीं है, बल्कि अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने के लिए है। हालांकि पश्चिमी जगत इसे नाटो के खिलाफ शक्ति-प्रदर्शन के रूप में देख रहा है। भारत का इस ड्रिल में शामिल होना अमेरिका और यूरोप के लिए कूटनीतिक संदेश माना जा रहा है।
भारत की रणनीति
भारत ने लंबे समय से "रणनीतिक स्वायत्तता" की नीति अपनाई है। एक ओर वह अमेरिका के साथ रक्षा समझौते और आर्थिक सहयोग को मजबूत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर रूस जैसे पुराने साझेदारों से संबंध बनाए रखना भी उसके लिए जरूरी है। भारत की सेना का कहना है कि ऐसे बहुपक्षीय अभ्यासों से उसके जवानों को अलग-अलग परिस्थितियों में प्रशिक्षण मिलता है और युद्धक क्षमता बढ़ती है।
पुतिन की मौजूदगी
ड्रिल के पहले ही दिन राष्ट्रपति पुतिन ने खुद ग्राउंड-जीरो पर पहुंचकर सैनिकों से बातचीत की। उन्होंने रूसी सेना की नई तकनीकों का निरीक्षण किया और बेलारूस के अधिकारियों के साथ मिलकर रणनीति पर चर्चा की। पुतिन की इस उपस्थिति को पश्चिमी देशों के लिए सीधा संदेश माना जा रहा है कि रूस अपने सहयोगियों के साथ मिलकर हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार है।
अमेरिका की प्रतिक्रिया
अमेरिका ने भारत की इस भागीदारी पर अप्रत्यक्ष तौर पर नाराजगी जताई है। वॉशिंगटन का कहना है कि लोकतांत्रिक देशों को ऐसे अभ्यासों से दूरी बनाए रखनी चाहिए, जिनमें रूस शामिल हो। विश्लेषकों का मानना है कि यूक्रेन युद्ध और बढ़ते नाटो-रूस तनाव के बीच भारत का यह कदम अमेरिका-भारत संबंधों में असहजता पैदा कर सकता है।
विशेषज्ञों की राय
विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि भारत एक संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है। उसके लिए रूस अब भी हथियारों और ऊर्जा का बड़ा स्रोत है, जबकि अमेरिका आर्थिक और तकनीकी साझेदार है। ऐसे में भारत किसी एक पक्ष के साथ पूरी तरह खड़ा नहीं हो सकता। यही कारण है कि उसने रूस-बेलारूस की ड्रिल में भी हिस्सा लिया और क्वाड जैसे मंच पर भी सक्रिय बना हुआ है।
कुल मिलाकर, भारत का यह कदम बताता है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए बहुध्रुवीय कूटनीति की राह पर आगे बढ़ रहा है। रूस-बेलारूस की सैन्य कवायद में भागीदारी न केवल सामरिक प्रशिक्षण का हिस्सा है, बल्कि यह संदेश भी देती है कि भारत वैश्विक शक्ति समीकरण में स्वतंत्र भूमिका निभाना चाहता है।