सऊदी अरब और पाकिस्तान ने हाल ही में एक अहम रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसे कई अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक विशेषज्ञ भारत के लिए एक बड़ा झटका मान रहे हैं। इस समझौते के तहत दोनों देशों ने रक्षा सहयोग, सैन्य प्रशिक्षण, हथियारों के आदान-प्रदान और संयुक्त अभ्यास को नए स्तर तक ले जाने का निर्णय लिया है।
समझौते की मुख्य बातें
रियाद में हुए इस समझौते के अनुसार, सऊदी अरब पाकिस्तान को न केवल आर्थिक सहयोग देगा बल्कि उसकी रक्षा क्षमताओं को भी मजबूत करेगा। इसमें आधुनिक हथियारों की आपूर्ति, सैन्य उपकरणों का साझा उपयोग और पाकिस्तानी सैनिकों को प्रशिक्षण देने का वादा किया गया है। साथ ही, दोनों देशों ने आतंकवाद-रोधी अभियानों और समुद्री सुरक्षा को लेकर भी सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई है।
भारत के लिए क्यों चिंता?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह समझौता दक्षिण एशिया में भारत की रणनीतिक बढ़त को चुनौती दे सकता है। पाकिस्तान लंबे समय से आर्थिक संकट से जूझ रहा है और रक्षा क्षेत्र में उसकी निर्भरता बाहरी सहयोग पर रही है। सऊदी अरब जैसे संपन्न और प्रभावशाली देश का समर्थन पाकिस्तान की सैन्य शक्ति को बढ़ावा देगा।
भारत को चिंता इस बात की है कि इस गठजोड़ के जरिए पाकिस्तान को खाड़ी क्षेत्र से न केवल वित्तीय मदद मिलेगी बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक ताकत भी हासिल होगी।
सऊदी की रणनीति
सऊदी अरब इस कदम को अपने क्षेत्रीय हितों के विस्तार के तौर पर देख रहा है। ईरान के साथ तनावपूर्ण रिश्तों और पश्चिम एशिया में बदलते समीकरणों के बीच रियाद अपने सहयोगियों की संख्या बढ़ाना चाहता है। पाकिस्तान के साथ रक्षा साझेदारी करके सऊदी अरब एक सुरक्षा ढाल तैयार करना चाहता है, जिसमें उसे सैन्य बल और रणनीतिक सहयोग मिल सके।
भारत की कूटनीतिक चुनौती
भारत ने बीते वर्षों में सऊदी अरब के साथ ऊर्जा, व्यापार और सुरक्षा के मोर्चे पर घनिष्ठ संबंध बनाए हैं। लेकिन पाकिस्तान के साथ यह नया रक्षा समझौता भारत-सऊदी रिश्तों में संतुलन की परीक्षा साबित हो सकता है। भारत को आशंका है कि पाकिस्तान इस समर्थन का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों में कर सकता है, खासकर कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर।
विशेषज्ञों की राय
अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विश्लेषकों का कहना है कि भारत को इस परिस्थिति में संतुलित कूटनीति अपनानी होगी। सऊदी अरब और भारत के बीच मजबूत आर्थिक संबंध हैं और भारत पश्चिम एशिया की राजनीति में एक अहम भागीदार है। लेकिन अगर पाकिस्तान–सऊदी गठजोड़ गहरा होता है तो यह भारत की सुरक्षा और कूटनीतिक रणनीति के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है।
भारत के सामने अब यह चुनौती है कि वह सऊदी अरब के साथ अपने रिश्तों को और मजबूत बनाए और साथ ही पाकिस्तान को मिलने वाले इस समर्थन का प्रभाव कम करने की कोशिश करे। इसके लिए भारत को कूटनीतिक स्तर पर सक्रिय रहना होगा और खाड़ी देशों के साथ अपने सामरिक संबंधों को और गहरा करना होगा।