अमेरिकी राजनीति में व्यापारिक संरक्षणवाद की गूंज एक बार फिर तेज़ हो गई है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जिन्होंने हाल ही में दवाइयों पर 100% टैरिफ लगाकर वैश्विक फार्मा कंपनियों को झटका दिया था, अब नये टैरिफ की तैयारी में जुट गए हैं। इस बार निशाने पर रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़े सेक्टर हैं—लैपटॉप, घरेलू उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स और यहां तक कि टूथब्रश तक।
रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप प्रशासन का मानना है कि चीन और एशियाई देशों से आयातित उत्पाद अमेरिकी उद्योग के लिए खतरा बन रहे हैं। उनका तर्क है कि स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने और अमेरिकी नौकरियों को सुरक्षित रखने के लिए कड़े टैरिफ ज़रूरी हैं।
अगर ये नए टैरिफ लागू होते हैं, तो सबसे बड़ा असर उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा। लैपटॉप और स्मार्ट डिवाइस जैसे गैजेट्स, जो अब तक अपेक्षाकृत सस्ते दामों में उपलब्ध थे, उनकी कीमतों में तेज़ उछाल देखने को मिल सकता है। वहीं टूथब्रश, रसोई उपकरण और अन्य घरेलू सामान भी आम लोगों के लिए महंगे हो सकते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह रणनीति चुनावी राजनीति से भी जुड़ी हो सकती है। ट्रंप अमेरिकी मतदाताओं के सामने खुद को "अमेरिकी उद्योग के संरक्षक" के रूप में पेश करना चाहते हैं। लेकिन आलोचकों का तर्क है कि इन कदमों से महंगाई और बढ़ेगी, जिससे आम उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
वैश्विक स्तर पर भी इस नीति के असर को लेकर चिंता जताई जा रही है। चीन और अन्य देशों से आयात पर रोक लगाने से अंतरराष्ट्रीय व्यापार संतुलन प्रभावित होगा। भारत जैसे देशों के लिए भी यह स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है, क्योंकि कई सेक्टर अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिकी बाज़ार पर निर्भर हैं।
फिलहाल, ट्रंप ने संकेत दिए हैं कि फार्मा टैरिफ के बाद वे धीरे-धीरे अन्य सेक्टरों पर भी ऐसे कदम उठाएंगे। उद्योग जगत और उपभोक्ता संगठनों की निगाहें अब व्हाइट हाउस की आधिकारिक घोषणा पर टिकी हैं।
अगर ये टैरिफ हकीकत बने, तो यह न केवल अमेरिकी घरेलू बाज़ार बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन को भी झटका दे सकता है। सवाल यह है कि क्या स्थानीय उद्योग को बचाने की कोशिश में ट्रंप उपभोक्ताओं और विश्व व्यापार को नई मुश्किलों में डाल देंगे?