मध्य पूर्व में लंबे समय से चल रहे ग़ज़ा संघर्ष को खत्म करने की दिशा में एक बार फिर कूटनीतिक प्रयास तेज़ हुए हैं। मिस्र की राजधानी काहिरा में इसराइल और हमास के प्रतिनिधि सोमवार देर रात पहुंचे, जहां दोनों पक्ष "ग़ज़ा पीस प्लान" पर अहम बातचीत में शामिल होंगे। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और क़तर इस वार्ता में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं। माना जा रहा है कि यह बैठक संघर्ष विराम के लिए संभावित रोडमैप तैयार करने की दिशा में निर्णायक साबित हो सकती है।
मिस्र की भूमिका बनी सेतु
मिस्र लंबे समय से इसराइल और हमास के बीच मध्यस्थ के रूप में सक्रिय है। 2024 के अंत में हुए संघर्ष के बाद से मिस्र कई बार दोनों पक्षों को एक मंच पर लाने की कोशिश कर चुका है। इस बार की बातचीत ‘ग़ज़ा पुनर्निर्माण और मानवीय राहत’ पर केंद्रित होगी। मिस्र के विदेश मंत्री सामेह शौकरी ने कहा कि काहिरा “स्थायी शांति और नागरिकों की सुरक्षा” के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है।
हमास की प्राथमिकताएं और इसराइल की शर्तें
हमास प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व राजनीतिक ब्यूरो के उपप्रमुख खालिद मशाल कर रहे हैं। उनका कहना है कि वार्ता का मुख्य उद्देश्य ग़ज़ा में नाकाबंदी समाप्त कराना और विस्थापित नागरिकों की वापसी सुनिश्चित करना है। वहीं, इसराइली प्रतिनिधियों ने स्पष्ट किया है कि किसी भी संघर्षविराम के लिए पहले हमास को अपने सभी बंधकों को रिहा करना होगा। इसराइल का रुख अब भी कठोर है, लेकिन वार्ता में भागीदारी से संकेत मिलता है कि वह भी समाधान की दिशा में कदम बढ़ाना चाहता है।
मानवीय संकट की गंभीर स्थिति
ग़ज़ा में हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, करीब 15 लाख लोग विस्थापित हैं और वहां खाद्य, पानी और दवाइयों की भारी कमी है। अस्पतालों में ईंधन संकट के कारण कई इकाइयाँ बंद होने के कगार पर हैं। मिस्र ने ग़ज़ा सीमा पर मानवीय सहायता केंद्र सक्रिय कर दिए हैं ताकि राहत सामग्री जल्द पहुंचाई जा सके।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगाहें काहिरा पर
अमेरिका और यूरोपीय संघ ने इस पहल का स्वागत किया है। व्हाइट हाउस ने बयान जारी कर कहा, “यह वार्ता स्थायी शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है।” वहीं, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतरेस ने कहा कि “अगर यह बातचीत सफल रही, तो ग़ज़ा में लंबे समय से चली आ रही हिंसा समाप्त होने की संभावना बनेगी।”
शांति की उम्मीदें और चुनौतियाँ
हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि यह वार्ता आसान नहीं होगी। दोनों पक्षों के बीच अविश्वास की गहरी खाई है और राजनीतिक दबाव भी भारी हैं। फिर भी काहिरा वार्ता से उम्मीदें जगी हैं कि शायद इस बार ग़ज़ा में स्थायी शांति का रास्ता निकल सके।