अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप को सोमवार को एक बड़ा झटका तब लगा, जब एक संघीय अदालत ने ओरेगन राज्य के पोर्टलैंड शहर में संघीय सैनिकों की तैनाती पर रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि ट्रंप प्रशासन द्वारा की गई यह कार्रवाई “संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन” है और इससे नागरिकों की स्वतंत्रता एवं स्थानीय प्रशासन की शक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
अदालत का फैसला और कानूनी तर्क
पोर्टलैंड की संघीय अदालत ने अपने आदेश में कहा कि किसी राज्य या शहर में बिना उसकी अनुमति के सेना या संघीय बलों की तैनाती संघीय ढांचे की भावना के विपरीत है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि शांति-व्यवस्था बनाए रखना स्थानीय और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है, न कि केंद्र सरकार की।
न्यायाधीश एलेन पार्कर ने अपने निर्णय में लिखा, “संविधान नागरिकों को संघीय हस्तक्षेप से बचाने की गारंटी देता है। किसी शहर में असहमति या प्रदर्शन के नाम पर सेना की मौजूदगी नागरिक स्वतंत्रता के लिए खतरा बन सकती है।”
पृष्ठभूमि: प्रदर्शन और विवाद
यह मामला तब शुरू हुआ जब पोर्टलैंड में पिछले महीने पुलिस हिंसा और प्रवासी नीति के खिलाफ बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए। स्थिति नियंत्रण में लाने के लिए ट्रंप प्रशासन ने संघीय सुरक्षा बलों की तैनाती की थी, जिस पर स्थानीय प्रशासन ने कड़ी आपत्ति जताई।
ओरेगन की गवर्नर टीना कोटेक और पोर्टलैंड के मेयर ने संघीय बलों की मौजूदगी को “अनावश्यक हस्तक्षेप” बताते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उनका कहना था कि संघीय एजेंटों ने प्रदर्शनकारियों को बिना वारंट के हिरासत में लिया, जिससे मानवाधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हुआ।
ट्रंप की प्रतिक्रिया
अदालत के फैसले के बाद ट्रंप ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया दी और इसे “राजनीतिक पक्षपात से प्रेरित फैसला” बताया। उन्होंने कहा, “हमने केवल देश की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के लिए कदम उठाया था। अगर संघीय सरकार कार्रवाई नहीं करेगी, तो अराजकता फैल जाएगी।”
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अदालत का यह फैसला ट्रंप की कानून और व्यवस्था की सख्त छवि पर सीधा असर डाल सकता है, खासकर आगामी चुनावों से पहले।
राजनीतिक असर
यह निर्णय अमेरिकी राजनीति में संघीय बनाम राज्य अधिकारों की बहस को फिर से उभार सकता है। डेमोक्रेटिक नेताओं ने अदालत के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि यह फैसला “संविधान और नागरिक अधिकारों की जीत” है।
वहीं, ट्रंप समर्थक रिपब्लिकन नेताओं ने चेतावनी दी है कि इससे भविष्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में कठिनाई बढ़ सकती है।
पोर्टलैंड में सेना की तैनाती पर रोक लगाकर अदालत ने एक बार फिर अमेरिकी लोकतंत्र के उस सिद्धांत को मजबूती दी है, जिसमें राज्य की स्वायत्तता और नागरिक अधिकारों की रक्षा सर्वोच्च मानी जाती है। इस फैसले ने न केवल ट्रंप की राजनीतिक रणनीति को झटका दिया है, बल्कि आने वाले दिनों में संघीय हस्तक्षेप की सीमाओं पर भी नई बहस छेड़ दी है।