हरियाणा में चर्चित IPS अधिकारी पूरन बिश्नोई आत्महत्या मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। मामले में अब बड़ा मोड़ आया है। राज्य सरकार की सिफारिश और न्यायिक जांच रिपोर्ट के आधार पर DGP शत्रुजीत कपूर सहित 14 पुलिस अधिकारियों पर मामला दर्ज किया गया है। यह कदम प्रशासनिक जवाबदेही और पुलिस विभाग के भीतर कथित उत्पीड़न के मामलों पर सख्त रुख के रूप में देखा जा रहा है।
पूरन बिश्नोई, जो हरियाणा पुलिस में एक तेजतर्रार और ईमानदार अधिकारी माने जाते थे, ने जून 2024 में रहस्यमय परिस्थितियों में आत्महत्या कर ली थी। उनके परिवार ने शुरुआत से ही आरोप लगाया था कि बिश्नोई को विभागीय उत्पीड़न, अनुचित तबादलों और वरिष्ठ अधिकारियों के मानसिक दबाव के चलते आत्महत्या करनी पड़ी। इस प्रकरण ने राज्य पुलिस और प्रशासनिक तंत्र की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए थे।
घटना की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (SIT) और न्यायिक आयोग ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि पूरन बिश्नोई को लगातार विभागीय दबाव और अनुचित व्यवहार का सामना करना पड़ा था। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि बिश्नोई को बार-बार चेतावनी और निलंबन की धमकियाँ दी गईं, जिससे उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया।
इन निष्कर्षों के बाद गृह विभाग ने DGP शत्रुजीत कपूर, दो ADGP, तीन SP और आठ अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत मामला दर्ज करने के आदेश दिए हैं।
इन अधिकारियों पर केस दर्ज
1. शत्रुजीत कपूर, डीजीपी हरियाणा
2. अमिताभढिल्लों, एडीजीपी
3. संजय कुमार, एडीजीपी, 1997 बैच
4. पंकज नैन, आईजीपी 2007 बैच
5. कला रामचंद्रन, आईपीएस, 1994 बैच
6. संदीप खिरवार, आईपीएस 1995 बैच
7. सिबाश कविराज, आईपीएस 1999 बैच
8. मनोज यादव, पूर्व डीजीपी, आईपीएस 1988 बैच
9. पीकेअग्रवाल, पूर्व डीजीपी, आईपीएस 1988 बैच
10. टीवीएसएन प्रसाद, आईएएस 1988 बैच
11. नरेंद्र बिजारणिया, एसपी रोहतक
12. राजीव अरोड़ा, पूर्व एसीएस
13. कुलिवंदर सिंह, आईजी मधुवन
14. माटा रवि किरन, एडीजीपी, करनाल रेंज
इसके साथ ही, राज्य सरकार ने इन अधिकारियों को फिलहाल प्रशासनिक पदों से हटाकर जांच पूरी होने तक छुट्टी पर भेज दिया है।
इस पूरे घटनाक्रम ने राज्य पुलिस की छवि पर गहरा असर डाला है। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा है और पुलिस विभाग में “भ्रष्टाचार और पक्षपात की संस्कृति” पर सवाल उठाए हैं। वहीं, अधिकारियों का कहना है कि उन्हें “राजनीतिक दबाव” के तहत फंसाया जा रहा है और जांच निष्पक्ष नहीं है।
पूरन बिश्नोई के परिवार ने इस कार्रवाई का स्वागत करते हुए कहा है कि “न्याय की दिशा में यह पहला कदम है।” उनके भाई ने बयान दिया कि “पूरन हमेशा अपने सिद्धांतों पर कायम रहे। अगर यह जांच पहले होती, तो शायद उनकी जान बचाई जा सकती थी।”
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला भारतीय पुलिस सेवा में बढ़ते मानसिक तनाव, अनुशासन और नेतृत्व के टकराव जैसे गहरे मुद्दों को उजागर करता है। इससे पहले भी देश के कई राज्यों में अधिकारियों द्वारा आत्महत्या के मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन ज्यादातर में उच्च अधिकारियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
अब देखना यह होगा कि इस बार जांच किस दिशा में जाती है—क्या यह केस न्याय की मिसाल बनेगा या फिर अन्य संवेदनशील मामलों की तरह धीरे-धीरे फाइलों में दब जाएगा।