इटली में अब बुर्का और नकाब पहनने पर कड़ी पाबंदी लगाने की तैयारी चल रही है। प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की सरकार ने संसद में एक नया प्रस्ताव पेश किया है, जिसके तहत सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढकने वाले परिधान—चाहे वह बुर्का हो या नकाब—को प्रतिबंधित किया जाएगा। इस कानून का उल्लंघन करने वालों पर 3 लाख यूरो तक का जुर्माना और छह महीने की कैद का प्रावधान रखा गया है।
सरकार का कहना है कि यह कदम “राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक एकीकरण” के लिए उठाया जा रहा है। मेलोनी ने बयान में कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढकने की अनुमति देना सुरक्षा एजेंसियों के लिए पहचान प्रक्रिया को कठिन बनाता है। उनका तर्क है कि यह कानून धर्म विशेष के खिलाफ नहीं है, बल्कि हर नागरिक पर समान रूप से लागू होगा।
हालांकि, विपक्ष और मानवाधिकार संगठनों ने इस प्रस्ताव को “इस्लामोफोबिक नीति” बताते हुए कड़ा विरोध किया है। आलोचकों का कहना है कि इस कानून से इटली में रह रहीं मुस्लिम महिलाओं के धार्मिक अधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन होगा। यूरोपीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस प्रस्ताव को लेकर चिंता जताई है और इसे “धार्मिक भेदभाव” से जुड़ा मुद्दा बताया है।
जानकारों का मानना है कि मेलोनी सरकार का यह कदम आगामी स्थानीय चुनावों से पहले दक्षिणपंथी मतदाताओं को साधने की कोशिश है। इटली में पिछले कुछ वर्षों से प्रवासियों और मुस्लिम समुदाय को लेकर राजनीतिक बहस तेज रही है। इससे पहले फ्रांस, बेल्जियम, डेनमार्क और नीदरलैंड भी सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का और नकाब पर प्रतिबंध लगा चुके हैं, जिससे यूरोप में “धार्मिक परिधान बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा” की बहस फिर उभर आई है।
इटली के गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश में लगभग 16 लाख मुस्लिम नागरिक रहते हैं, जिनमें से बड़ी संख्या प्रवासी समुदाय से जुड़ी है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह कानून पारित हो जाता है, तो इसका असर न केवल मुस्लिम महिलाओं पर बल्कि यूरोपीय संघ की धार्मिक स्वतंत्रता नीतियों पर भी पड़ेगा।
अब पूरा ध्यान इटली की संसद पर है, जहां यह प्रस्ताव अगले सप्ताह चर्चा के लिए रखा जाएगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि यूरोप में धर्म और पहचान की राजनीति के बीच यह कानून किस दिशा में जाता है।