भारत और ब्रिटेन के बीच आर्थिक साझेदारी अब नए मुकाम पर पहुंच गई है। हालिया समझौतों और निवेश प्रस्तावों के जरिए भारत न केवल ब्रिटेन का एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार बन गया है, बल्कि उसकी डगमगाती अर्थव्यवस्था के लिए भी एक सहारा साबित हो रहा है। भारतीय कंपनियों द्वारा किए जा रहे करोड़ों पाउंड के निवेश से ब्रिटेन में हजारों नई नौकरियां सृजित होने की संभावना है।
लंदन में आयोजित “यूके-इंडिया बिजनेस समिट 2025” के दौरान दोनों देशों के बीच कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। भारतीय कंपनियों ने ऊर्जा, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य और हरित बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में भारी निवेश की घोषणा की है। विशेष रूप से टाटा ग्रुप, इंफोसिस, रिलायंस और विप्रो जैसी कंपनियों ने ब्रिटेन में अपने प्रोजेक्ट्स का विस्तार करने का निर्णय लिया है। टाटा मोटर्स का इलेक्ट्रिक व्हीकल यूनिट विस्तार और रिलायंस की हरित हाइड्रोजन परियोजना से हजारों लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है।
ब्रिटेन की सरकार ने इन निवेशों का स्वागत करते हुए कहा है कि भारत इस समय देश के “आर्थिक पुनर्निर्माण का सबसे विश्वसनीय साझेदार” बन गया है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय निवेश से न केवल स्थानीय रोजगार बढ़ेगा, बल्कि दोनों देशों के बीच तकनीकी और औद्योगिक सहयोग भी मजबूत होगा।
विश्लेषकों का कहना है कि ब्रेक्ज़िट के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को स्थिरता की सख्त जरूरत थी, और ऐसे में भारतीय निवेश एक राहत के रूप में आया है। वहीं, भारत के लिए यह साझेदारी यूरोपीय बाजारों तक पहुंच बढ़ाने और अपनी तकनीकी कंपनियों के वैश्विक विस्तार का अवसर दे रही है।
भारत और ब्रिटेन के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर बातचीत भी अंतिम चरण में है। इसके लागू होने के बाद दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश में तेजी आने की संभावना है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले पांच वर्षों में भारत का ब्रिटेन में कुल निवेश 20 अरब पाउंड से अधिक हो सकता है।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह साबित कर दिया है कि वैश्विक आर्थिक समीकरणों में भारत अब केवल एक उभरती अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि एक “वैश्विक निवेश शक्ति” के रूप में अपनी पहचान मजबूत कर रहा है — और इस बार इसका सबसे बड़ा लाभ ब्रिटेन को मिलने वाला है।