अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर दुनिया भर में हलचल मचा दी है। हाल ही में दिए गए बयान में उन्होंने कहा कि अगर वे दोबारा सत्ता में आते हैं, तो अमेरिका “जल्द ही परमाणु परीक्षण शुरू करेगा।” यह बयान ऐसे समय आया है जब दुनिया पहले से ही परमाणु तनाव और वैश्विक अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। ट्रंप का यह दावा न केवल परमाणु अप्रसार संधि (NPT) की भावना पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि अमेरिका-रूस-चीन के बीच शस्त्र प्रतिस्पर्धा को और भड़का सकता है।
ट्रंप ने अपने बयान में कहा, “अमेरिका को अपनी परमाणु ताकत फिर से दिखाने की जरूरत है। अगर हम पीछे हटे, तो चीन और रूस हमें निगल जाएंगे।” उनके इस बयान को अमेरिकी राजनीतिक विश्लेषक चुनावी बयानबाजी बता रहे हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक यह वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है।
🌍 कौन-से देशों के पास हैं सबसे ज़्यादा परमाणु हथियार?
2025 की SIPRI (Stockholm International Peace Research Institute) रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के नौ देशों के पास कुल मिलाकर लगभग 12,500 से अधिक परमाणु हथियार हैं। इनमें से करीब 9,600 सक्रिय स्टॉकपाइल में हैं।
| देश | अनुमानित परमाणु हथियार | प्रमुख परीक्षण इतिहास | 
| रूस | 5,580 | सबसे अधिक परीक्षण और तैनाती क्षमता | 
| अमेरिका | 5,044 | उच्च तकनीकी डिलीवरी सिस्टम | 
| चीन | 500+ | तीव्र गति से शस्त्र वृद्धि जारी | 
| फ्रांस | 290 | स्वतंत्र परमाणु नीति | 
| ब्रिटेन | 225 | सीमित लेकिन उन्नत क्षमता | 
| पाकिस्तान | 170 | भारत के मुकाबले की रणनीति | 
| भारत | 164 | “नो फर्स्ट यूज़” नीति | 
| इज़राइल | 90 (अनौपचारिक) | आधिकारिक रूप से पुष्टि नहीं | 
| उत्तर कोरिया | 50+ | लगातार परीक्षण जारी | 
 
 
⚠️ बढ़ती परमाणु प्रतिस्पर्धा
विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन युद्ध, ताइवान विवाद और मध्य पूर्व की अस्थिरता के बीच नए परमाणु युग की शुरुआत हो चुकी है। अमेरिका और रूस ने पिछले कुछ वर्षों में कई शस्त्र नियंत्रण संधियों से दूरी बना ली है। ट्रंप के बयान से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि वॉशिंगटन अब "डिटरेंस पॉलिसी" की ओर लौटना चाहता है।
हाल ही में चीन ने भी अपने हाइपरसोनिक न्यूक्लियर मिसाइल प्रोग्राम को तेज किया है, जबकि रूस ने “Poseidon” जैसे अंडरवाटर न्यूक्लियर टॉरपीडो की क्षमता दिखाई। विशेषज्ञों के अनुसार, यह प्रतिस्पर्धा भविष्य में छोटे देशों के लिए खतरा बन सकती है, क्योंकि परमाणु शक्ति का संतुलन लगातार बदल रहा है।
🔍 भारत का दृष्टिकोण
भारत ने हमेशा परमाणु हथियारों को रक्षा और निवारक नीति (Deterrence Policy) के रूप में देखा है। भारत “नो फर्स्ट यूज़” की नीति का पालन करता है और लगातार वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण की वकालत करता रहा है।
ट्रंप के बयान ने एक बार फिर उस बहस को जिंदा कर दिया है — क्या दुनिया फिर से परमाणु युग में प्रवेश कर रही है? विशेषज्ञों के अनुसार, अगर बड़ी शक्तियाँ राजनीतिक लाभ के लिए परीक्षणों की राह पकड़ती हैं, तो वैश्विक शांति और स्थिरता पर गंभीर खतरा मंडराएगा।