दिल्ली-एनसीआर इस समय एक बार फिर “गैस चैंबर” में तब्दील हो चुका है। दीवाली से पहले ही वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है और अब इसी बीच वायरस के बढ़ते संक्रमण ने हालात और गंभीर बना दिए हैं। हाल ही में जारी एक स्वास्थ्य सर्वे में खुलासा हुआ है कि दिल्ली-एनसीआर के लगभग 75% घरों में कम से कम एक व्यक्ति बीमार है। अधिकांश लोग खांसी, गले में जलन, आंखों में जलन, बुखार, सिरदर्द और सांस लेने में दिक्कत जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
सर्वे के अनुसार, बीमार लोगों में बच्चों और बुजुर्गों की संख्या सबसे अधिक है। डॉक्टरों का कहना है कि बढ़ते प्रदूषण ने न केवल सांस संबंधी रोगों को बढ़ाया है बल्कि वायरल इंफेक्शन और एलर्जी के मामलों में भी 40% की वृद्धि देखी गई है। अस्पतालों में भीड़ बढ़ रही है, वहीं दवा दुकानों पर खांसी-जुकाम की दवाओं की मांग में अचानक उछाल आया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि हवा में मौजूद PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कण शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर रहे हैं, जिससे वायरस तेजी से फैल रहा है। प्रदूषण के कारण स्कूलों में उपस्थिति घट रही है और ऑफिस जाने वाले लोग भी मास्क और एयर प्यूरीफायर पर निर्भर हो चुके हैं।
दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) लगातार 400 से ऊपर दर्ज किया जा रहा है, जो “गंभीर” श्रेणी में आता है। पर्यावरण विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि तुरंत प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो स्वास्थ्य संकट और गहराएगा। सरकार ने ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) लागू करते हुए निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध और डीजल वाहनों की निगरानी के निर्देश जारी किए हैं।
डॉक्टरों की सलाह है कि लोग सुबह-शाम बाहर निकलने से बचें, घर में पौधे और एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें तथा पानी का पर्याप्त सेवन करें। साथ ही बच्चों और बुजुर्गों की विशेष देखभाल करने की अपील की गई है।
राजधानी में यह स्थिति एक बार फिर इस सवाल को जन्म देती है — आखिर कब दिल्ली-एनसीआर को इस दमघोंटू हवा से राहत मिलेगी?