महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों अजित पवार और उनके बेटे पार्थ पवार का नाम सुर्खियों में है। मामला पुणे की एक बहुमूल्य जमीन सौदे से जुड़ा है, जिसकी कीमत करीब 1800 करोड़ रुपए बताई जा रही है, लेकिन कथित तौर पर इसे मात्र 300 करोड़ में बेचे जाने का आरोप लगा है। इस सौदे में पार्थ पवार की भूमिका को लेकर विपक्ष ने गंभीर सवाल उठाए हैं। विवाद बढ़ने पर उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने सार्वजनिक रूप से इस पूरे प्रकरण से खुद को अलग बताते हुए कहा कि “जांच जो भी एजेंसी करे, हमें कोई आपत्ति नहीं है।”
जानकारी के मुताबिक, यह सौदा पुणे के बालवाड़ी क्षेत्र की एक प्रमुख संपत्ति से संबंधित है। रिपोर्ट्स के अनुसार, यह जमीन महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक (MSCB) से जुड़ी एक पुरानी डील का हिस्सा थी। आरोप है कि जमीन का मूल्यांकन जानबूझकर कम करके दिखाया गया ताकि इसे सस्ते दामों में खरीदा जा सके। विपक्ष का दावा है कि यह सौदा पार्थ पवार के प्रभाव में हुआ और इससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ।
अजित पवार, जो खुद लंबे समय से सहकारी बैंकों के मामलों से जुड़े रहे हैं, ने कहा कि “मैं प्रशासनिक और व्यक्तिगत रूप से इस जमीन लेनदेन से जुड़ा नहीं हूं। पारदर्शिता के लिए जांच आवश्यक है।” वहीं भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने इस प्रकरण पर एनसीपी (अजित गुट) पर निशाना साधते हुए कहा कि सत्ता के दुरुपयोग से करोड़ों की सरकारी जमीन औने-पौने दाम में बेची गई।
पार्थ पवार ने भी आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उन्होंने कहा कि यह सौदा पूरी तरह कानूनी प्रक्रिया के तहत हुआ और इसमें किसी तरह की अनियमितता नहीं की गई। हालांकि विपक्ष का कहना है कि यदि सब कुछ पारदर्शी था तो 1800 करोड़ की जमीन को 300 करोड़ में क्यों बेचा गया।
इस विवाद ने न केवल पवार परिवार को राजनीतिक संकट में डाल दिया है बल्कि महा एनसीपी में अंदरूनी असहजता भी बढ़ा दी है। राज्य सरकार ने अब इस सौदे की जांच के संकेत दिए हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि जांच किस दिशा में जाती है और क्या पार्थ पवार को कानूनी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा या यह मामला राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित रहेगा।