नेपाल के बाद अब पाकिस्तान में भी ‘Gen Z प्रोटेस्ट’ की लहर उठी है। देश के विभिन्न शहरों में युवाओं ने आर्थिक संकट, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता के खिलाफ सड़कों पर उतरकर मौजूदा सत्ता तंत्र को खुली चुनौती दे दी है। सोशल मीडिया के जरिए संगठित यह आंदोलन पाकिस्तान की नई पीढ़ी के असंतोष और परिवर्तन की आकांक्षा का प्रतीक बनता जा रहा है।
इस आंदोलन की शुरुआत लाहौर और इस्लामाबाद के विश्वविद्यालयों से हुई, जब छात्रों ने महंगाई और शिक्षा में कटौती के खिलाफ प्रदर्शन किया। धीरे-धीरे यह विरोध कराची, पेशावर और मुल्तान तक फैल गया। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि सरकार युवाओं के लिए रोजगार सृजन, शिक्षा सुधार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करे। खास बात यह है कि इस आंदोलन की अगुवाई किसी राजनीतिक दल ने नहीं, बल्कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय छात्र संगठनों और स्वतंत्र युवा समूहों ने की है।
‘Gen Z प्रोटेस्ट’ नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इसमें भाग लेने वाले अधिकांश लोग 18 से 26 वर्ष की उम्र के हैं — यानी वही पीढ़ी जो डिजिटल युग में पली-बढ़ी है और वैश्विक बदलावों से जुड़ी हुई है। नेपाल में जिस तरह युवाओं ने पारंपरिक राजनीति को चुनौती देकर भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठाई थी, अब वैसा ही परिदृश्य पाकिस्तान में देखने को मिल रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान में लंबे समय से सैन्य और राजनीतिक ताकतों के बीच सत्ता संघर्ष ने जनता का भरोसा कमजोर किया है। आर्थिक अस्थिरता, विदेशी कर्ज़ में बढ़ोतरी और महंगाई ने आम नागरिकों का जीवन कठिन बना दिया है। ऐसे में युवाओं का यह उभार किसी एक दल या विचारधारा से नहीं, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की चाह से प्रेरित है।
सरकार ने शुरुआती दौर में इन प्रदर्शनों को ‘गैर-जिम्मेदाराना’ बताते हुए सख्ती दिखाई, लेकिन विरोध बढ़ने पर अधिकारियों ने संवाद का रुख अपनाने की बात कही है। कई विश्वविद्यालयों में इंटरनेट सेवाएं बाधित कर दी गईं, जबकि सोशल मीडिया पर ‘#GenZProtestPakistan’ ट्रेंड कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया और मानवाधिकार संगठनों ने इस आंदोलन पर चिंता और समर्थन दोनों जताए हैं।
नेपाल और पाकिस्तान के इन समानांतर आंदोलनों ने दक्षिण एशिया में युवाओं की राजनीतिक जागरूकता का नया अध्याय खोला है। यह केवल असंतोष का प्रदर्शन नहीं, बल्कि युवाओं की उस नई सोच का प्रतीक है जो पारदर्शिता, जवाबदेही और समान अवसरों की मांग कर रही है।
अगर यह आंदोलन शांतिपूर्ण और संगठित रूप से आगे बढ़ा तो यह पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सत्ता तंत्र इन युवाओं की आवाज़ सुनेगा या उन्हें भी दबाने की कोशिश करेगा, जैसा कि इतिहास में बार-बार होता आया है।