बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने राज्य की राजनीति में बड़ा मोड़ ला दिया है। इस बार एनडीए ने प्रचंड बहुमत हासिल कर सत्ता में वापसी कर ली है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जोड़ी फिर से निर्णायक साबित हुई। लंबे समय बाद ऐसा हुआ है जब चुनावी परिणामों ने बिहार के राजनीतिक नक्शे को पूरी तरह नया रूप दे दिया है।
एनडीए की इस शानदार जीत के पीछे कई अहम कारण बताए जा रहे हैं। मोदी और नीतीश के संयुक्त नेतृत्व ने ग्रामीण और शहरी—दोनों वर्गों में मजबूत पकड़ बनाई। रोजगार, सड़क, बिजली, आधारभूत सुविधाओं और कानून-व्यवस्था को लेकर मतदाताओं की अपेक्षाएँ काफी थीं, और चुनाव प्रचार में इस जोड़ी ने इन्हीं मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। परिणामस्वरूप, एनडीए ने कई पिछली कमजोर सीटों पर भी अप्रत्याशित बढ़त हासिल की।
विपक्ष के लिए यह चुनाव निराशाजनक रहा। महागठबंधन आंतरिक खींचतान, सीट शेयरिंग विवाद और सीमित चुनावी रणनीति के कारण मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर पाया। जनसभाओं में भी विपक्ष का प्रभाव कमजोर दिखा। तेजस्वी यादव की कोशिशों के बावजूद गठबंधन ग्रामीण इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर सका, जिसका सीधा लाभ एनडीए को मिला।
इस बार युवाओं और महिला मतदाताओं ने बड़ी संख्या में मतदान किया, जो एनडीए के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ। महिलाओं को लक्षित कर चलाई गई कई कल्याणकारी योजनाओं ने वोटों का बड़ा आधार बनाया, जबकि युवा वर्ग विकास और रोजगार के वादों के पक्ष में दिखाई दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में यह परिणाम केवल सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि राजनीतिक सोच में आए बदलाव का संकेत भी है। मतदाता अब स्थिरता, सुरक्षा और आर्थिक अवसरों को प्राथमिकता दे रहे हैं। मोदी-नीतीश की जोड़ी ने इन्हीं बिंदुओं पर भरोसा जीतने में सफलता पाई।
चुनाव परिणाम सामने आने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि सरकार अगले पांच साल विकास कार्यों की गति को दोगुना करेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने भी बिहार की जनता को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह जनादेश “नई आकांक्षाओं वाला बिहार” निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगा।
कुल मिलाकर, 2025 के चुनाव ने साबित कर दिया कि बिहार की राजनीति नए दौर में प्रवेश कर चुकी है, जहाँ नेतृत्व, विकास और भरोसे का संतुलन ही चुनावी सफलता की कुंजी है।