दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण एक बार फिर गंभीर स्तर पर पहुंच गया है। सुबह से ही आसमान में धुंध की मोटी परत और हवा में घुला ज़हर लोगों को घरों में कैद होने पर मजबूर कर रहा है। एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) कई इलाकों में ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी में दर्ज किया गया है, जिससे बच्चों, बुजुर्गों और पहले से बीमार लोगों की सेहत पर सीधा खतरा मंडरा रहा है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि देश के शीर्ष चिकित्सा संस्थान AIIMS और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर गहरी चिंता जताई है।
डॉक्टरों के अनुसार, प्रदूषित हवा के कारण सांस संबंधी बीमारियां, आंखों में जलन, सिरदर्द और हृदय रोगियों की परेशानियां तेजी से बढ़ रही हैं। AIIMS की रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे समय तक इस स्तर के प्रदूषण में रहने से फेफड़ों की कार्यक्षमता पर स्थायी असर पड़ सकता है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि प्रदूषण अब केवल पर्यावरण का नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य का गंभीर संकट बन चुका है।
इस बीच एक और बड़ा खुलासा सामने आया है। दिल्ली में करीब 30 लाख वाहन ऐसे हैं, जो पिछले एक साल या उससे अधिक समय से बिना वैध PUC (Pollution Under Control) सर्टिफिकेट के सड़कों पर दौड़ रहे हैं। यह आंकड़ा सामने आने के बाद प्रशासन और अदालत दोनों सख्त रुख अपनाते नजर आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित विभागों से जवाब मांगा है कि नियमों के बावजूद इतने बड़े पैमाने पर लापरवाही कैसे हो रही है।
नए आदेश के तहत बिना PUC सर्टिफिकेट चल रहे वाहनों पर सख्त कार्रवाई के संकेत दिए गए हैं। इसमें भारी जुर्माना, वाहन जब्ती और डिजिटल सिस्टम के जरिए ऐसे वाहनों की पहचान कर उन्हें सड़क से हटाने की योजना शामिल है। सरकार का मानना है कि वाहनों से निकलने वाला धुआं दिल्ली के प्रदूषण का एक बड़ा कारण है और इस पर नियंत्रण किए बिना हालात में सुधार संभव नहीं।
प्रदूषण की मार सिर्फ आम नागरिकों तक सीमित नहीं है। स्कूलों में बच्चों की गतिविधियां सीमित की जा रही हैं, कई जगहों पर बाहरी खेलों पर रोक लगाई गई है और लोग मास्क पहनने को मजबूर हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक निर्माण कार्यों पर नियंत्रण, पराली प्रबंधन, औद्योगिक उत्सर्जन और वाहन प्रदूषण पर एक साथ सख्ती नहीं की जाएगी, तब तक दिल्ली-एनसीआर को इस जहरीली हवा से राहत नहीं मिलेगी।
कुल मिलाकर, दिल्ली की हवा ने एक बार फिर चेतावनी दे दी है। अदालत की सख्ती और नए आदेश आने वाले दिनों में हालात बदल सकते हैं, लेकिन इसके लिए प्रशासन के साथ-साथ आम लोगों की जिम्मेदारी भी उतनी ही अहम है। नियमों का पालन और पर्यावरण के प्रति जागरूकता ही इस संकट से निकलने का एकमात्र रास्ता है।