देश की ग्रामीण रोजगार व्यवस्था को लेकर एक बार फिर राजनीतिक और वैचारिक टकराव सामने आ गया है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) और प्रस्तावित ‘जी राम जी’ मॉडल को लेकर उत्तर और दक्षिण भारत के बीच बहस तेज हो गई है। जहां केंद्र सरकार और कुछ उत्तर भारतीय राज्य मनरेगा में बदलाव या उसके विकल्प की बात कर रहे हैं, वहीं दक्षिणी राज्यों ने इसे ग्रामीण गरीबों के लिए जीवनरेखा बताते हुए किसी भी तरह की कटौती का विरोध किया है।
मनरेगा की शुरुआत ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सुरक्षा, पलायन रोकने और बुनियादी ढांचे के विकास के उद्देश्य से की गई थी। वर्षों से यह योजना खासकर सूखा-प्रभावित और आर्थिक रूप से कमजोर इलाकों में लाखों परिवारों के लिए सहारा बनी हुई है। दक्षिण भारत के कई राज्य—जैसे तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक—मनरेगा के प्रभावी क्रियान्वयन का उदाहरण देते रहे हैं। इन राज्यों का तर्क है कि यह योजना न केवल रोजगार देती है, बल्कि महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में भी अहम भूमिका निभाती है।
इसके उलट उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में मनरेगा को लेकर शिकायतें भी सामने आती रही हैं। भ्रष्टाचार, फर्जी जॉब कार्ड और काम की गुणवत्ता पर सवाल उठते रहे हैं। इन्हीं चुनौतियों के बीच ‘जी राम जी’ जैसे नए मॉडल की चर्चा शुरू हुई है, जिसे कौशल-आधारित रोजगार, स्थानीय जरूरतों और निजी भागीदारी से जोड़ने की बात कही जा रही है। समर्थकों का दावा है कि इससे उत्पादकता बढ़ेगी और सरकारी खर्च का बेहतर उपयोग हो सकेगा।
हालांकि दक्षिणी राज्यों को आशंका है कि मनरेगा के स्थान पर नया ढांचा लाने से गरीब मजदूरों की न्यूनतम रोजगार गारंटी कमजोर पड़ सकती है। उनका कहना है कि मनरेगा केवल रोजगार योजना नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा का माध्यम है। इसे पूरी तरह बदले बिना सुधारों पर ध्यान देना ज्यादा व्यावहारिक होगा।
यह विवाद केवल नीति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें क्षेत्रीय असंतुलन और राजनीतिक दृष्टिकोण भी जुड़ गए हैं। उत्तर-दक्षिण विभाजन की यह बहस बताती है कि देश में एक समान नीति लागू करना कितना जटिल है। विशेषज्ञों का मानना है कि समाधान किसी एक योजना को खारिज करने में नहीं, बल्कि क्षेत्रीय जरूरतों के अनुसार लचीले सुधारों में है।
आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि केंद्र सरकार किस तरह संतुलन बनाती है—क्या मनरेगा को मजबूत करते हुए नए प्रयोग जोड़े जाएंगे या ‘जी राम जी’ जैसे मॉडल को धीरे-धीरे लागू किया जाएगा। फिलहाल, यह बहस ग्रामीण भारत की दिशा तय करने वाली बड़ी राजनीतिक बहस बन चुकी है।