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संपादकीय

Indian police system awaits extensive reform: विस्तृत सुधार की बाट जोती भारतीय पुलिस व्यवस्था की मौजूदा जर्जर हालत

March 18, 2025 08:59 PM

 भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़

जी हां इस में कोई दो राय नहीं है कि पुलिस प्रशासन किसी भी देश की कानून व्यवस्था को बनाए रखने का महत्वपूर्ण अंग होता है। यह नागरिकों की सुरक्षा, अपराध नियंत्रण और शांति बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में पुलिस प्रणाली का इतिहास औपनिवेशिक काल से जुड़ा हुआ है, जब इसे ब्रिटिश सरकार द्वारा नागरिकों पर नियंत्रण रखने के लिए विकसित किया गया था। मगर यह भी सच है कि स्वतंत्रता के बाद भले ही  भारतीय पुलिस प्रणाली में कई सुधार हुए, लेकिन आज भी यह प्रणाली कई चुनौतियों से जूझ रही है और समय के साथ विस्तृत सुधार की मांग कर रही है। आइये बात करते हैं हमारी पुलिस व्यवस्था की मौजूदा स्थिती के बारे में। भारत में पुलिस प्रशासन भारतीय संविधान और पुलिस अधिनियम, 1861 के अंतर्गत संचालित होता है। देश में प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की अपनी अलग पुलिस व्यवस्था होती है, जिसे राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है। केंद्र सरकार की ओर से भी केंद्रीय जांच ब्यूरो, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, सीमा सुरक्षा बल, और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड जैसी एजेंसियां कार्यरत हैं। हालांकि, पुलिस प्रणाली में कई संरचनात्मक और क्रियात्मक समस्याएं मौजूद हैं, जिनके कारण यह पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो पाती। यह भी सच है कि भारत की पुलिस प्रणाली की कई प्रमुख समस्याएं हैं। जैसे भारत की पुलिस व्यवस्था अभी भी औपनिवेशिक युग की मानसिकता से ग्रस्त है, जहाँ पुलिस को नागरिकों के रक्षक के बजाय सत्ता का एक साधन माना जाता है। पुलिस बल को नियंत्रित करने वाला पुलिस अधिनियम, 1861 ब्रिटिश शासन द्वारा लागू किया गया था और यह अब भी कई मामलों में अप्रासंगिक बना हुआ है। भारत में पुलिस बल को आधुनिक सुविधाओं, प्रशिक्षण और तकनीकी उपकरणों की कमी का सामना करना पड़ता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति लाख नागरिकों पर पुलिसकर्मियों की संख्या विश्व मानकों से काफी कम है, जिससे पुलिस बल पर अत्यधिक कार्यभार पड़ता है। पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। रिश्वतखोरी, फर्जी मुकदमों की दर्जी, और प्रभावशाली लोगों को विशेष लाभ पहुँचाने जैसी घटनाएँ आम हैं। साथ ही, राजनीतिक दल अक्सर पुलिस बल का दुरुपयोग अपने लाभ के लिए करते हैं, जिससे इसकी निष्पक्षता प्रभावित होती है। भारत में पुलिस थानों में प्रताड़ना, हिरासत में मौतें, और गैर-कानूनी गिरफ्तारियाँ जैसी घटनाएँ अक्सर सामने आती हैं। पुलिसकर्मियों द्वारा अनावश्यक बल प्रयोग, फर्जी मुठभेड़, और बिना जांच-पड़ताल के गिरफ्तारियाँ आम समस्याएँ हैं, जो मानवाधिकारों का हनन करती हैं। अधिकांश पुलिसकर्मियों को समय-समय पर प्रशिक्षण नहीं मिलता है, जिससे वे नई तकनीकों और अपराध से निपटने के आधुनिक तरीकों से अनजान रहते हैं। साइबर क्राइम, आतंकवाद और संगठित अपराध जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए उन्नत प्रशिक्षण की जरूरत है। यही वजह है कि पुलिस प्रणाली में सुधार के लिए कई आवश्यक कदम उठाये जा सकते हैं। भारत में कई पुलिस सुधार आयोग गठित किए गए हैं, जैसे कि राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977-1981), रिबेरो समिति (1998), सोलि सोराबजी समिति (2005) आदि। इन समितियों ने पुलिस बल की स्वतंत्रता, जवाबदेही और दक्षता बढ़ाने के लिए कई सिफारिशें की थीं, लेकिन उन्हें पूरी तरह लागू नहीं किया गया। सरकार को इन सिफारिशों को प्राथमिकता देनी चाहिए। पुलिस बल को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने के लिए इसे राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त करना आवश्यक है। इसके लिए पुलिस प्रमुखों की नियुक्ति और स्थानांतरण में पारदर्शिता लाई जानी चाहिए और उनके कार्यकाल को सुरक्षित किया जाना चाहिए। अपराध नियंत्रण और जांच की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिए। कृत्रिम बुद्धिमत्ता ,  डेटा एनालिटिक्स, और डिजिटल निगरानी उपकरणों का समावेश पुलिस की कार्यप्रणाली को प्रभावी बना सकता है। पुलिस और जनता के बीच विश्वास की कमी को दूर करने के लिए सामुदायिक पुलिसिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। पुलिस को नागरिकों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने और उनके सहयोग से अपराध रोकने पर ध्यान देना चाहिए। पुलिसकर्मियों को उचित वेतन, सुविधाएं और सुरक्षित कार्य स्थितियां उपलब्ध करानी चाहिए ताकि वे बिना किसी दबाव के अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें। उन्हें मानसिक स्वास्थ्य और तनाव प्रबंधन के लिए भी उचित सहायता प्रदान करनी चाहिए। पुलिसकर्मियों को नियमित रूप से प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए, जिसमें अपराध की नवीनतम प्रवृत्तियों, साइबर अपराध, फॉरेंसिक विज्ञान, और मानवाधिकार कानूनों पर विशेष ध्यान दिया जाए। इससे पुलिस बल अधिक पेशेवर और संवेदनशील बनेगा। एक स्वतंत्र पुलिस शिकायत प्राधिकरण की स्थापना आवश्यक है, जहाँ नागरिक पुलिस की ज्यादतियों की शिकायत कर सकें और न्याय प्राप्त कर सकें। इससे पुलिस बल की जवाबदेही सुनिश्चित होगी। अंत में कह सकते हैं कि  हमारी पुलिस प्रणाली को प्रभावी, जवाबदेह और नागरिक केंद्रित बनाने के लिए व्यापक सुधारों की आवश्यकता है। पुलिस बल को आधुनिक उपकरणों से लैस करना, राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करना, नागरिकों के साथ संबंध सुधारना और पारदर्शिता बढ़ाना आवश्यक है। जब तक पुलिस प्रशासन को निष्पक्ष, सक्षम और मानवाधिकार-सम्मत नहीं बनाया जाएगा, तब तक देश की कानून-व्यवस्था और लोकतांत्रिक मूल्यों को पूरी तरह स्थापित करना कठिन होगा। सरकार, नागरिक समाज और पुलिस विभाग को मिलकर इन सुधारों को लागू करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि एक न्यायसंगत और सुरक्षित समाज की स्थापना हो सके।

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