भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत की जैव-अर्थव्यवस्था ऐसे समय में निर्णायक मोड़ पर खड़ी है, जब विज्ञान, नवाचार और नीति—तीनों मिलकर भविष्य की दिशा तय कर रहे हैं। देश में बायोटेक सेक्टर न केवल तेज़ी से विस्तार कर रहा है, बल्कि वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता भी लगातार मजबूत हो रही है। सशक्त वैज्ञानिक बुनियाद, व्यापक अनुसंधान नेटवर्क, तेजी से उभरते स्टार्टअप इकोसिस्टम और बायो ई 3 जैसे अग्रणी नीतिगत ढाँचे ने भारत को इस क्षेत्र में तेज़ी से आगे बढ़ने का अवसर दिया है। फिर भी, इस विकास को उस ऊँचाई तक पहुँचाने के लिए जहाँ भारत एक वैश्विक जैव-अग्रणी शक्ति बने, कई बड़े नीतिगत और संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है।सबसे अहम चुनौती नियामक प्रणाली को अधिक लचीला, वैज्ञानिक और समयबद्ध बनाने की है। बायोटेक्नोलॉजी आज अत्यधिक नवाचार-चालित क्षेत्र बन चुका है, जहाँ नई तकनीकें, विधियाँ और मॉलिक्यूल तेजी से विकसित होते हैं। ऐसे में धीमी और जटिल मंजूरी प्रक्रिया नवाचार की गति को कम कर देती है। भारत को ऐसे रेगुलेटरी सुधारों की जरूरत है, जो जोखिमों का जिम्मेदारी से आकलन करते हुए नवाचार को बढ़ावा दें। विज्ञान-आधारित, पारदर्शी और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर आधारित दिशा-निर्देश बायोटेक उद्योग को नई ऊँचाइयों पर ले जा सकते हैं। इसके अलावा, जीन एडिटिंग, सिंथेटिक बायोलॉजी, बायोलॉजिक्स और जीनोमिक डेटा जैसे क्षेत्रों के लिए अलग से आधुनिक नियामक संरचना विकसित करना बेहद महत्वपूर्ण है।वित्तीय पूँजी तक सहज पहुँच भी इस क्षेत्र की एक प्रमुख आवश्यकता बनी हुई है। भारत में बायोटेक स्टार्टअप्स की संख्या बीते वर्षों में कई गुना बढ़ी है, लेकिन शुरुआती चरण की फंडिंग और स्केल-अप फंडिंग अभी भी सीमित है। बायोटेक में अनुसंधान व विकास लागत अधिक होती है और जोखिम भी अन्य सेक्टर्स की तुलना में ज्यादा रहता है। इसलिए, वेंचर कैपिटल निवेश, सरकारी सहायता, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप और विशेष फंडिंग तंत्र बायोटेक सेक्टर को मजबूती दे सकते हैं। यदि भारत इस दिशा में व्यवस्थित रणनीति अपनाए, तो यह क्षेत्र तेज़ी से वैश्विक निवेश आकर्षित कर सकता है और कई यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स उभर सकते हैं।इसके साथ ही, विश्वस्तरीय जैव-निर्माण अवसंरचना का निर्माण समय की सबसे बड़ी मांग है। वैश्विक बाजार में बायोलॉजिक्स, वैक्सीन, सेल-थेरैपी, जीन-थेरैपी और सिंथेटिक बायोलॉजी उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। भारत के पास दवा उत्पादन का विशाल अनुभव है, लेकिन बायोमैन्युफैक्चरिंग के उच्च तकनीकी स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए नई उत्पादन सुविधाओं, हाई-थ्रूपुट लैब्स, उन्नत परीक्षण केंद्रों और स्केल-अप इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता है। यदि देश बड़े पैमाने पर बायोलॉजिकल उत्पादन को अपनाता है, तो वह विश्व के सबसे बड़े बायोमैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में उभर सकता है, जिससे निर्यात, रोजगार और तकनीकी आत्मनिर्भरता में व्यापक वृद्धि होगी।भारत की जैव-अर्थव्यवस्था का एक और महत्वपूर्ण स्तंभ है—मानव संसाधन और वैज्ञानिक प्रतिभा का विकास। देश के पास युवाओं की विशाल आबादी है, लेकिन वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए उन्हें विश्वस्तरीय तकनीकी प्रशिक्षण देना आवश्यक है। बायोइंजीनियरिंग, जीनोमिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा साइंस और कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता भारत के बायोटेक भविष्य को गति दे सकती है। विश्वविद्यालयों और उद्योग के बीच और मजबूत समन्वय, कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये बेहतर पारिश्रमिक भारत को एक प्रतिभा-समृद्ध शक्ति में बदल सकते हैं।जीनोमिक सॉवरेनिटी भविष्य की रणनीतिक जरूरत है। जीनोमिक डेटा आधुनिक स्वास्थ्य व्यवस्था, पर्सनलाइज्ड मेडिसिन, कृषि में सुधार, जलवायु-उन्मुख समाधान और राष्ट्रीय सुरक्षा तक के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बन चुका है। भारत को अपनी जीनोमिक तकनीक, डेटा सुरक्षा ढाँचे, नैतिक दिशानिर्देश और डेटा स्वामित्व नीति को मजबूत करना होगा। यह न केवल अनुसंधान क्षमता बढ़ाएगा, बल्कि भारत को वैश्विक जीनोमिक इकोसिस्टम में एक निर्णायक आवाज देगा।भारत की जैव-अर्थव्यवस्था अब उस चरण में प्रवेश कर चुकी है, जहाँ लगातार रणनीतिक निवेश, उत्पादन क्षमता का विस्तार, अनुसंधान को बढ़ावा और मजबूत नीति ढाँचा एक बड़े बदलाव का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। विशेषज्ञों का आकलन है कि यदि भारत इन दिशाओं में निरंतर प्रगति बनाए रखता है, तो वह केवल एक जैव-प्रौद्योगिकी साझेदार देश नहीं, बल्कि नवाचार के वैश्विक नेता के रूप में स्थापित हो सकता है। मौजूदा गति को देखते हुए, भारत वर्ष 2047 तक 1.2 ट्रिलियन डॉलर की जैव-अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करने की मजबूत स्थिति में है। यह न केवल देश की आर्थिक शक्ति को कई गुना बढ़ाएगा, बल्कि वैश्विक जैव-प्रौद्योगिकी जगत में भारत की भूमिका को भी स्थायी रूप से बदल देगा।भारत के लिए यह क्षण विज्ञान आधारित विकास, उद्यमिता, तकनीकी आत्मनिर्भरता और भविष्य की आर्थिक संरचना को पुनर्परिभाषित करने का अवसर है। यदि ये परिवर्तनकारी कदम समय पर और प्रभावी ढंग से उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में भारत जैव-अर्थव्यवस्था की दुनिया में नई दिशा और नई ऊँचाई तय कर सकता है।