भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
दीपावली भारतीय संस्कृति का सबसे उज्ज्वल और व्यापक रूप से मनाया जाने वाला पर्व है, जिसकी आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्ता सदियों से कायम है। इस रोशनी के त्योहार को वैश्विक पहचान तब और मजबूत मिली जब यूनेस्को ने इसे अपनी अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल किया। यह कदम न केवल भारत की जीवंत परंपराओं को सम्मान देता है, बल्कि दुनिया को बताता है कि दीपावली सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि सामूहिक आनंद, मानवीय मूल्यों और सभ्यतागत चेतना का उत्सव है। प्रधानमंत्री ने इस मौके पर कहा कि दीपावली भारत की सभ्यता, उसके सांस्कृतिक वैभव और आध्यात्मिक चेतना की आत्मा है। उनके अनुसार, यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश, असत्य पर सत्य और नकारात्मकता पर सकारात्मकता की जीत का संदेश देता है। उन्होंने इसे भारत की सह-अस्तित्व की विचारधारा, सामाजिक सामंजस्य और समृद्ध लोक परम्पराओं का प्रतीक बताया। यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में किसी परंपरा का शामिल होना यह दर्शाता है कि वह परंपरा मानवता की साझा विरासत है और उसे संरक्षित करना वैश्विक समुदाय की जिम्मेदारी है। दीपावली का शामिल होना भारत के सांस्कृतिक प्रभाव और उसकी सभ्यतागत शक्ति को रेखांकित करता है। दुनिया के दर्जनों देशों में बसे भारतीय समुदाय दशकों से इस त्योहार को मनाते आए हैं, और अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे विरासत के रूप में मान्यता मिलना वैश्विक सांस्कृतिक संवाद को और मजबूत बनाता है। यह मान्यता भारत की ‘सॉफ्ट पावर’ को भी मजबूती देती है। योग, आयुर्वेद, कुंभ मेला, पारंपरिक नृत्य और संगीत की तरह अब दीपावली भी भारत की पहचान का एक महत्वपूर्ण आयाम बन गई है। यह उस सांस्कृतिक निरंतरता का उत्सव है जो समय, भूगोल, भाषा और धर्म की सीमाओं से परे लोगों को जोड़ती है। दीपावली का मूल संदेश ही मानवता को दिशा देने वाला है। यह त्योहार अज्ञान के अंधकार को ज्ञान के प्रकाश से मिटाने का प्रतीक है। तेल के दीये सिर्फ घर को ही नहीं, मन को भी रोशन करते हैं। यह त्योहार लोगों को स्मरण कराता है कि जीवन में प्रकाश का कोई विकल्प नहीं—चाहे वह आशा का हो, ज्ञान का हो या सद्भाव का। भारतीय समाज में दीपावली की परंपराएं परिवारों को जोड़ती हैं। सफाई, सजावट, खरीदारी, पूजा, दीप प्रज्ज्वलन और मिठाइयों का वितरण—इन सबमें सामाजिक सामंजस्य की भावना छिपी है। यह वह वक्त है जब परिवार, पड़ोसी और समुदाय एकजुट होकर खुशियां बांटते हैं। इसके अलावा, दीपावली का आर्थिक महत्व भी अत्यंत बड़ा है। भारत में यह पर्व सबसे बड़े व्यवसायिक सीजन के रूप में जाना जाता है। छोटे दुकानदारों, कारीगरों, मिट्टी के दीये बनाने वालों और हस्तशिल्प से जुड़े लोगों के लिए दीपावली का समय वर्षभर की आय का आधार होता है। यूनेस्को की मान्यता इन पारंपरिक कारीगरों को वैश्विक स्तर पर नई पहचान दिलाने में मदद कर सकती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि दीपावली सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं बल्कि भारत की आत्मा का हिस्सा है। यह त्योहार सदैव से भारतीय समाज के ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के दर्शन को मजबूत करता आया है। उन्होंने इस मान्यता को 140 करोड़ भारतीयों की सामूहिक सांस्कृतिक शक्ति की जीत बताया। उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया भर में दीपावली की बढ़ती लोकप्रियता भारत की बढ़ती वैश्विक स्वीकार्यता का संकेत है। विविधताओं से भरे आधुनिक विश्व में दीपावली जैसे त्योहार सार्वभौमिक मूल्यों—शांति, सद्भाव, करुणा और सह-अस्तित्व—का संदेश देते हैं। सालों से अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, सिंगापुर और कई अन्य देशों में दीपावली सार्वजनिक तौर पर मनाई जाती रही है। कई संसद भवनों, टाउन हॉल्स और प्रतिष्ठित स्थलों पर दीपावली समारोह होते हैं। टाइम्स स्क्वायर से लेकर मेलबर्न, सिंगापुर से लेकर दुबई तक—दीपावली ने दुनिया के मंच पर अपना स्थान बना लिया है। यूनेस्को की मान्यता इस वैश्विक उत्सव को आधिकारिक संरक्षण और संवर्धन का दायरा देती है। इससे शोध, सांस्कृतिक पर्यटन, डॉक्यूमेंटेशन और पारंपरिक कला-कौशल को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नए अवसर मिलेंगे। दीपावली का यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल होना भारत के सांस्कृतिक इतिहास का महत्वपूर्ण क्षण है। यह सिर्फ त्योहार की मान्यता नहीं, बल्कि उस सभ्यता, दर्शन और जीवन-शैली का सम्मान है जिसने हजारों वर्षों से मानवता को प्रकाश का संदेश दिया है। प्रधानमंत्री के शब्दों में, दीपावली भारत की आत्मा है—और अब यह आत्मा पूरी दुनिया को रोशन कर रही है।