भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
उत्तर भारत की हवा एक बार फिर गंभीर स्थिति में पहुंच गई है। नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 2025 की सर्दियों की शुरुआत के साथ ही दिल्ली भारत का “सबसे प्रदूषित राज्य/क्षेत्र” बनकर उभरा है। चंडीगढ़ और हरियाणा की हवा भी बेहद खराब श्रेणी में दर्ज की गई है। वायु गुणवत्ता सूचकांक के ताजा आंकड़े बताते हैं कि पराली धुएं, वाहनों के उत्सर्जन, औद्योगिक गतिविधियों, निर्माण धूल और मौसमीय परिस्थितियों के संयुक्त प्रभाव ने हवा को इस कदर जहरीला बना दिया है कि स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा की श्रेणी तक बताना शुरू कर दिया है। रिपोर्ट के सामने आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गहरी चिंता व्यक्त की और अधिकारियों को आपात स्तर पर समाधान के उपाय तेज करने को कहा है। दिल्ली में नवंबर 2025 के तीसरे सप्ताह में औसत ए क्यू आई 450 के पार दर्ज हुआ, जो “गंभीर” श्रेणी से भी ऊपर है। कई इलाकों में पी एम 2.5 का स्तर डबल्यू एच ओ के सुरक्षित मानक से 25–30 गुना ज्यादा पाया गया। इसका सबसे अधिक प्रभाव बुजुर्गों, बच्चों और सांस की बीमारी से जूझ रहे मरीजों पर देखा जा रहा है। अस्पतालों में सांस फूलने, अस्थमा अटैक, आंखों में जलन और एलर्जी के मामलों में तेज बढ़ोतरी दर्ज हुई है। हालात इतने खराब हैं कि कई स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाओं का विकल्प अपनाना शुरू कर दिया है। वहीं चंडीगढ़, जिसे देश के सबसे स्वच्छ शहरों में गिना जाता था, इस बार वायु प्रदूषण की मार से अछूता नहीं रहा। शहर का ए क्यू आई कई दिनों तक 300–330 के बीच रहा, जो “बहुत खराब” श्रेणी में आता है। विशेषज्ञों का मानना है कि हरियाणा और पंजाब से आने वाले पराली धुएं का दबाव, ट्रैफिक उत्सर्जन और ठंड बढ़ने के साथ हवा की गति कम होने ने स्थिति को बिगाड़ा है। हरियाणा के गुरुग्राम, फरीदाबाद और बहादुरगढ़ जैसे औद्योगिक शहरों में ए क्यू आई 380 से 420 के बीच रिकॉर्ड किया गया, जिसे खतरनाक माना जाता है। यह परिदृश्य बताता है कि समस्या अब सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं रही बल्कि पूरे एन सी आर और ट्राइसिटी बेल्ट की हवा बराबर दूषित हो चुकी है। केंद्र सरकार और राज्यों के बीच समन्वय की कमी इस संकट को और गहरा कर रही है। पिछले छह वर्षों से ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान लागू है, लेकिन रिपोर्ट कई कमियों की ओर इशारा करती है—जैसे धूल नियंत्रण में ढिलाई, औद्योगिक प्लांटों की निगरानी में कमी, वाहन संबंधित प्रतिबंधों का सही पालन न होना और पराली प्रबंधन की नाकामी। इस साल पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में अपेक्षा से कम गिरावट आई, जिसके कारण हवा में पी एम 2.5 का स्तर लगातार बढ़ता गया। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक किसानों को मशीनें, वैकल्पिक फसल चक्र प्रोत्साहन और मुआवजे की स्पष्ट व प्रभावी व्यवस्था नहीं दी जाएगी, तब तक पराली से छुटकारा पाना संभव नहीं है। रिपोर्ट के सामने आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने उच्चस्तरीय बैठक में चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि प्रदूषण अब केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय चुनौती है, जिसे वैज्ञानिक समाधान, तकनीक और राज्यों के बीच मजबूत साझेदारी से ही हल किया जा सकता है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को अगले एक सप्ताह में राहत उपायों की विस्तृत कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं। इसमें बड़े शहरों में इलेक्ट्रिक बसों की संख्या बढ़ाने, औद्योगिक उत्सर्जन पर कड़ी निगरानी, धूल नियंत्रण तकनीक अनिवार्य करने और पराली जलाने के खिलाफ त्वरित कार्रवाई के प्रावधान शामिल किए जा सकते हैं।इसके अलावा प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह भी संकेत दिया है कि सरकार प्रदूषण से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय ‘एयर क्वालिटी मिशन 2.0’ पर काम कर रही है, जिसमें नई तकनीकों का उपयोग, उपग्रह निगरानी, स्मार्ट सेंसर नेटवर्क और स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाएगी।विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली-एन सी आर की स्थिति तब तक नियंत्रित नहीं होगी, जब तक वाहनों की संख्या पर सीमित नियंत्रण, कार-फ्री ज़ोन, सार्वजनिक परिवहन में बड़े पैमाने पर सुधार और ईंधन नीति में कड़ाई नहीं लाई जाती। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली के कुल प्रदूषण में 36% हिस्सेदारी सिर्फ वाहनों की है। इसके बाद औद्योगिक गतिविधियाँ और निर्माण धूल बड़ी वजह के तौर पर पहचानी गई हैं।चंडीगढ़ प्रशासन ने इस सप्ताह कड़े कदमों की घोषणा की है। ईंट भट्टों में प्रदूषण नियंत्रण उपकरण अनिवार्य किए गए हैं, खुले में जलाने पर जुर्माना बढ़ा दिया गया है और रात के समय ट्रकों की आवाजाही सीमित करने के निर्देश दिए गए हैं। हरियाणा सरकार ने भी 24 घंटे की एंटी-स्मॉग पेट्रोलिंग यूनिट्स तैनात करने और औद्योगिक इलाकों में फॉगिंग सिस्टम शुरू करने की योजना बनाई है।अंततः यह प्रदूषण संकट सिर्फ सरकारी नीतियों पर निर्भर नहीं है। यह समाज-व्यवस्था, उद्योग, कृषि और नागरिक जिम्मेदारियों का संयुक्त मामला है। प्रदूषण को लेकर हमारी लापरवाही अब सीधे स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है।अगर जल्द, सख्त और वैज्ञानिक कदम न उठाए गए, तो उत्तर भारत की हवा आने वाले वर्षों में और अधिक घातक हो सकती है। प्रधानमंत्री की चिंता यही संकेत देती है कि यह समस्या अब लाल बत्ती जलाकर चेतावनी देने के स्तर पर पहुंच चुकी है—और यदि अब भी सुधार नहीं हुआ, तो आने वाली पीढ़ियों को साफ हवा सिर्फ इतिहास की किताबों में ही नज़र आएगी।