भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
लैटिन अमेरिका आज वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था के नए समीकरणों में एक उभरता हुआ क्षेत्र बन चुका है, जो भारत जैसे विकासशील राष्ट्रों के लिए सामरिक, आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। ऊर्जा, खाद्य और खनिज सुरक्षा में लैटिन अमेरिकी देशों की भूमिका भारत के लिए निर्णायक है। ऐसे समय में जब विश्व व्यवस्था एक नए बहुध्रुवीय ढाँचे की ओर अग्रसर है, भारत और लैटिन अमेरिका के बीच गहराता सहयोग न केवल पारस्परिक हितों की पूर्ति करता है बल्कि एक संतुलित और सतत वैश्विक व्यवस्था के निर्माण की दिशा में भी ठोस कदम साबित हो सकता है। भारत और लैटिन अमेरिका के रिश्ते ऐतिहासिक रूप से सांस्कृतिक और राजनीतिक समानताओं पर आधारित रहे हैं। दोनों ही क्षेत्र औपनिवेशिक शोषण से उभरकर आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हुए हैं। लोकतंत्र, बहुलवाद और सामाजिक न्याय जैसे मूल्यों ने इन संबंधों को एक साझा आधार प्रदान किया है। आज यह संबंध केवल कूटनीति तक सीमित नहीं, बल्कि व्यापार, ऊर्जा, शिक्षा, विज्ञान, पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य के क्षेत्रों तक फैल चुके हैं। भारत के ‘ग्लोबल साउथ’ दृष्टिकोण में लैटिन अमेरिका एक स्वाभाविक साझेदार है, जो दक्षिण-दक्षिण सहयोग की नई परिभाषा गढ़ रहा है।आर्थिक मोर्चे पर भारत और लैटिन अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्ते पिछले दो दशकों में उल्लेखनीय रूप से बढ़े हैं। ब्राज़ील, मैक्सिको, चिली, कोलंबिया और पेरू जैसे देशों के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार 2024 तक 50 अरब डॉलर से अधिक पहुँच चुका है। भारत लैटिन अमेरिका से मुख्यतः कच्चा तेल, सोना, सोयाबीन, तांबा और लिथियम जैसी आवश्यक सामग्रियाँ आयात करता है, जबकि दवाइयाँ, ऑटो पार्ट्स, मशीनरी, वस्त्र और आईटी सेवाएँ निर्यात करता है। यह आपसी व्यापारिक संरचना दोनों अर्थव्यवस्थाओं के लिए परस्पर पूरक साबित हो रही है।ऊर्जा सुरक्षा के संदर्भ में लैटिन अमेरिका भारत के लिए रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वेनेज़ुएला और ब्राज़ील जैसे देश विश्व के शीर्ष तेल उत्पादकों में शामिल हैं, वहीं चिली, अर्जेंटीना और बोलीविया जैसे देशों के पास लिथियम और तांबे जैसे खनिजों के विशाल भंडार हैं। यह खनिज भारत की हरित ऊर्जा नीति और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी कार्यक्रमों के लिए आवश्यक हैं। भारत अपनी ऊर्जा आपूर्ति में विविधता लाने के लिए लैटिन अमेरिका को एक स्थायी और विश्वसनीय स्रोत के रूप में देख रहा है।पर्यावरणीय दृष्टि से भी दोनों क्षेत्रों के बीच साझेदारी का महत्त्व लगातार बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता संरक्षण और सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भारत और लैटिन अमेरिका समान सोच रखते हैं। ब्राज़ील का अमेज़न वर्षावन और भारत की जैव विविधता विश्व के पर्यावरणीय संतुलन के लिए अनिवार्य हैं। संयुक्त पहल के माध्यम से दोनों क्षेत्र जलवायु वित्त, स्वच्छ ऊर्जा तकनीक और कार्बन न्यूट्रल विकास की दिशा में एक साथ कार्य कर सकते हैं।कूटनीतिक दृष्टि से भारत ने हाल के वर्षों में लैटिन अमेरिका के साथ अपने संवाद को और गहरा किया है। प्रधानमंत्री स्तर के दौरों, द्विपक्षीय समझौतों और बहुपक्षीय मंचों पर बढ़ती भागीदारी ने इन संबंधों को नई ऊर्जा दी है। भारत ने “ग्लोबल साउथ समिट” और जी 20 जैसे मंचों पर लैटिन अमेरिकी देशों को एक समान भागीदार के रूप में देखा है। वहीं, लैटिन अमेरिकी देशों ने भी भारत को एक तकनीकी, औद्योगिक और मानवीय शक्ति के रूप में मान्यता दी है, जो पश्चिमी देशों के विकल्प के रूप में उभर सकता है।भारत के लिए लैटिन अमेरिका का महत्त्व केवल संसाधनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक रणनीतिक संतुलन का भी प्रतीक है। जब वैश्विक राजनीति अमेरिका, चीन और रूस के बीच खिंचाव का केंद्र बनी हुई है, तब लैटिन अमेरिका के साथ गहरे संबंध भारत को स्वतंत्र और बहुध्रुवीय विदेश नीति बनाए रखने में मदद करते हैं। यह सहयोग वैश्विक दक्षिण के भीतर राजनीतिक एकता को भी सुदृढ़ करता है, जिससे विकासशील देशों की सामूहिक आवाज़ अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में और मज़बूत बनती है।सांस्कृतिक और जनसंपर्क स्तर पर भी भारत–लैटिन अमेरिका रिश्तों का विस्तार हुआ है। योग, भारतीय सिनेमा, आयुर्वेद और शिक्षा के क्षेत्र में भारत की लोकप्रियता वहाँ लगातार बढ़ रही है। वहीं लैटिन अमेरिकी संगीत, साहित्य और कला भारतीय युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं। इन सांस्कृतिक आदान-प्रदानों से दोनों समाजों के बीच गहरी मानवीय समझ और आपसी विश्वास का वातावरण बन रहा है।भविष्य की दृष्टि से यह आवश्यक है कि भारत और लैटिन अमेरिका के बीच संपर्क और अधिक संस्थागत और व्यापक बनाया जाए। परिवहन, निवेश और अनुसंधान सहयोग के नए तंत्र विकसित किए जाएँ। डिजिटल कनेक्टिविटी, अंतरिक्ष अनुसंधान, कृषि नवाचार और जलवायु लचीलापन जैसे क्षेत्रों में संयुक्त परियोजनाएँ दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध होंगी। भारत को चाहिए कि वह लैटिन अमेरिकी देशों में अपने दूतावासों, व्यापारिक मिशनों और सांस्कृतिक केंद्रों की संख्या बढ़ाए ताकि क्षेत्रीय जुड़ाव को और मज़बूती मिले।अंततः, भारत–लैटिन अमेरिका संबंध केवल द्विपक्षीय हितों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि एक साझा वैश्विक दृष्टि के प्रतीक हैं — ऐसी दृष्टि जो शक्ति-संतुलन, समावेशी विकास और सतत् पर्यावरण पर आधारित है। इस साझेदारी का सशक्तीकरण भारत की “विश्वगुरु” और “विश्वसहयोगी” की भूमिका को और प्रामाणिक बनाएगा। यदि दोनों क्षेत्र आर्थिक, तकनीकी और मानवीय मोर्चे पर एकजुट होकर काम करें, तो यह सहयोग वैश्विक दक्षिण की नई आवाज़ के रूप में उभरेगा और विश्व राजनीति में न्यायपूर्ण, बहुध्रुवीय एवं स्थायी संतुलन स्थापित करने की दिशा में ऐतिहासिक योगदान देगा।