Monday, November 10, 2025
BREAKING
Weather: गुजरात में बाढ़ से हाहाकार, अब तक 30 लोगों की मौत; दिल्ली-एनसीआर में भारी बारिश की चेतावनी जारी दैनिक राशिफल 13 अगस्त, 2024 Hindenburg Research Report: विनोद अदाणी की तरह सेबी चीफ माधबी और उनके पति धवल बुच ने विदेशी फंड में पैसा लगाया Hindus in Bangladesh: मर जाएंगे, बांग्लादेश नहीं छोड़ेंगे... ढाका में हजारों हिंदुओं ने किया प्रदर्शन, हमलों के खिलाफ उठाई आवाज, रखी चार मांग Russia v/s Ukraine: पहली बार रूसी क्षेत्र में घुसी यूक्रेनी सेना!, क्रेमलिन में हाहाकार; दोनों पक्षों में हो रहा भीषण युद्ध Bangladesh Government Crisis:बांग्लादेश में शेख हसीना का तख्तापलट, सेना की कार्रवाई में 56 की मौत; पूरे देश में अराजकता का माहौल, शेख हसीना के लिए NSA डोभाल ने बनाया एग्जिट प्लान, बौखलाया पाकिस्तान! तीज त्यौहार हमारी सांस्कृतिक विरासत, इन्हें रखें सहेज कर- मुख्यमंत्री Himachal Weather: श्रीखंड में फटा बादल, यात्रा पर गए 300 लोग फंसे, प्रदेश में 114 सड़कें बंद, मौसम विभाग ने 7 अगस्त को भारी बारिश का जारी किया अलर्ट Shimla Flood: एक ही परिवार के 16 सदस्य लापता,Kedarnath Dham: दो शव मिले, 700 से अधिक यात्री केदारनाथ में फंसे Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी की सब-कैटेगरी में आरक्षण को दी मंज़ूरी

संपादकीय

Bihar Elections 2025: Public opinion drowned in caste songs, real issues marginalized: बिहार चुनाव 2025: जातीय गानों में डूबा जनमत, असली मुद्दे हुए हाशिए पर

November 09, 2025 08:18 PM

भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़       

बिहार की राजनीति में हमेशा से सामाजिक पहलू और जातीय पहचान के पहलू- घूमती रहती है, लेकिन इस बार के विधानसभा चुनावों में यह प्रवृत्ति पहले से कहीं ज्यादा तेजी के रूप में सामने आई है। एक ओर जनता की मूल समस्याएँ हैं - रोज़गार, पलायन, बाढ़ राहत, स्वास्थ्य व्यवस्था और शिक्षा - जैसे मुद्दे बार-बार जहाँ जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर झीलों के मैदानों में "जनजातीय प्रवासी" और "पहचान की राजनीति के सुरों" की गूंज ने मोरक्को को पूरी तरह से बदल दिया है। दिलचस्प बात यह है कि कोई भी राजनीतिक दल इस जातीय जनजाति से खुद को दूर नहीं रखना चाहता। इस बार बिहार में चुनावी प्रचार के लिए पारंपरिक नारियों या विकास के वादों की जगह जातीय विविधता का बोलबाला है। ये गाने अब सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं रह गए हैं, बल्कि लाजवाब को प्रभावित करने वाले एक शक्तिशाली राजनीतिक उपकरण बन गए हैं। अलग-अलग जातीय समुदाय के गौरव, सम्मान और पहचान के आधार पर इन अवशेषों ने जनता की भावनाओं को सीधे तौर पर लिया है। "हमारा नेता हमारा मान" या "हमारे जाट का गौरव" जैसे बोल अब रोबोटिक्स मैसेज बन गए हैं। हर पार्टी अपने सामाजिक आधार को साधने के लिए "कस्टम वैलिडाइज़ म्यूज़िक स्पैनिश" चला रही है, ताकि भावनाओं की यह राजनीति में समानता हो सके। जमीनी हकीकत के गायब होने और सार्वभौमिक राजनीति के हावी होने का असर साफ दिख रहा है। पांच दस्तावेजों के दस्तावेज हैं कि बिहार की बेरोजगारी दर अब भी राष्ट्रीय औसत से अधिक है। लाखों युवा रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं। हर साल मधुमेह राज्य और उद्योग जीवन दोनों को नुकसान पहुंचाता है। स्वास्थ्य सुविधाएँ सीमित हैं, जबकि शिक्षा व्यवस्था में सुधार की राह लंबी है। लेकिन इन अहम दस्तावेजों पर कोई ठोस बहस नहीं हो रही। इसके बजाय जातीय सम्मान के समर्थकों और नारियों ने बहस को अपने व्यवसाय में ले लिया है। गाली-गलौज के भाषणों से सोशल मीडिया प्रचार तक, हर जगह जातीय प्रतीकवाद और सांस्कृतिक गौरव का रंग चढ़ा हुआ है। कई राजनीतिक सिद्धांतों का मानना है कि जातीय गाने बिहार की लोक संस्कृति का हिस्सा हैं, जो लोगों की अस्मिता और परंपरा को महत्व देते हैं। लेकिन जब लोक संस्कृति का राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग किया जाता है, तो यह "लोक संस्कृति का राजनीतिक दोहन" बन जाता है। एल्युमीनियम पॉलिटिकल ने यह समझ लिया है कि सांस्कृतिक पहचान के लिए एल्युमीनियम का ज़रिया है, और यह एल्युमीनियम का सीधा प्रभाव मतदान पर है। इसी कारण से अब हर दल अपने "सांस्कृतिक प्रचारक" और "स्थानीय कलाकारों" को मंच पर उभार रहा है, ताकि जातीय गौरव के नाम पर समर्थन दिया जा सके। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने इस प्रवृत्ति को और गहराई दी है। यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जातीय उत्पादन की बाढ़ देखी जा रही है। हर जाति समूह के लिए अलग-अलग गाने तैयार किए जा रहे हैं- कहीं यादव पहचान को बढ़ावा-चाकर पेश किया जा रहा है, तो कहीं कुशवाहा, भूमिहार, पासपोर्ट या ब्राह्मण गौरव के गीत प्रचारित किए जा रहे हैं। यह डिजिटल प्रचार अब गांव-गांव तक पहुंच गया है, जहां मोबाइल इंटरनेट ने गांवों के आंकड़े तक "अपनी जाट का गाना" पहुंचा दिया है। राजनीतिक आईटी सेल अब केवल घोषितपत्र या पोस्टर बनाने तक ही सीमित नहीं है। वे जातीय आधार पर संगीत रणनीतियाँ तैयार कर रहे हैं। अफ़्रीका की भाषा, लहज़ा और संगीत एक ही जाति या समुदाय की पसंद के अनुसार ढाला जा रहा है। उदाहरण के लिए, जहां यादव या कोइरी लेक की संख्या अधिक है, वहां नीना की पहचान और गौरव से जुड़े स्रोत का प्रचार किया जा रहा है। यह एक प्रकार की "भावनात्मक माइक्रो-टारगेटिंग" बन गई है, जिसमें गरीबों को उनकी जातीय पहचान के साथ-साथ अंतिम वोट बैंक को भी मजबूत किया जा रहा है। विकास की जगह "पहचान" की राजनीति की लोकतांत्रिक दृष्टि से बनी है। "विकास" शब्द अब ज्यादातर भाषणों में एक नारा बनकर रह गया है। रोजगार, कृषि सुधार, शिक्षा या मधुमेह प्रबंधन जैसे मधुमेह पर गहन चर्चा नहीं। इसके बजाय राजनीतिक दल जातीय अस्मिता की उलझनें हैं- कौन अपनी जाति को अधिक सम्मान दिला सकता है, कौन अपने सामाजिक आधार को अधिक कट्टरपंथी बना सकता है। इस पहचान आधारित राजनीति ने बिहार के लोकतंत्र को सीमित कर दिया है, जहां नागरिक पहले जाति के प्रतिनिधि और बाद में राज्य के नागरिक बन गये हैं। चुनावी लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व होता है, लेकिन जब मतदान की भावना और जातीय पहचान तय होती है, तो यह लोकतांत्रिक भावना के विरुद्ध होती है। अलेक्सा को अपलोड किया जाएगा कि जातीय गौरव के गीत सुनकर वे वास्तविक जिज्ञासा से ध्यान भटका रहे हैं। बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सांख्यिकी के बिना किसी भी समाज की स्थायी प्रगति संभव नहीं है। इसलिए जरूरी है कि अपने वोट को महत्व दें और यह तय करें कि बिहार के भविष्य की पहचान राजनीति में नहीं, बल्कि विकास की दिशा में हो। लोकतंत्र में निरंतरता तब होती है जब नीति, योजना और जनता के जीवन से जुड़े मुद्दों पर सहमति संवाद हो। यदि जातीय बौद्धों का प्रयोग केवल सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के रूप में किया जाता है, तो यह स्वागतयोग्य है, लेकिन जब भी अलौकिक को प्रकाश के उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है, तो यह लोकतंत्र की बुनियाद को नष्ट कर देता है। बिहार को आज ऐसी राजनीतिक चर्चा की जरूरत है, जो "गौरव" की बजाय "गौरवशाली भविष्य" की बात करे, जहां रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और रोजगार विषय हो। बिहार के आदिवासी अब वयस्क हो चुके हैं। वे कई बार सत्ता परिवर्तन के माध्यम से बेहतर शासन की आशा रखते हैं। लेकिन जब चुनाव में "जातीय सुरों की राजनीति" में विवाद होता है, तो विकास की सच्ची आवाज उठती है। अब समय है कि राजनीतिक दल और मतदाता दोनों यह समझें कि बिहार की असली ताकत उसकी विविधता और एकता में है, न कि विभाजन में। दलों को गानों की बजाय योजनाओं की धुन पर और मतदाताओं को जातीय सुरों की जगह विकास की ताल पर कदम मिलाने की जरूरत है—तभी बिहार अपनी वास्तविक राजनीतिक परिपक्वता को साबित कर सकेगा।

Have something to say? Post your comment

और संपादकीय समाचार

Every Indian has the right to economic dignity: Will universal basic income transform India's social contract?: हर भारतीय को आर्थिक गरिमा का अधिकार: क्या सार्वभौमिक बुनियादी आय बदल देगी भारत का सामाजिक अनुबंध ?

Every Indian has the right to economic dignity: Will universal basic income transform India's social contract?: हर भारतीय को आर्थिक गरिमा का अधिकार: क्या सार्वभौमिक बुनियादी आय बदल देगी भारत का सामाजिक अनुबंध ?

62% of the wealth is held by just 1%: 62% संपत्ति सिर्फ 1% के पास: भारत के विकास मॉडल का भरपूर फायदा उठा रहे हैं अमीरजादे, गरीब अभी भी हाशिये पर !

62% of the wealth is held by just 1%: 62% संपत्ति सिर्फ 1% के पास: भारत के विकास मॉडल का भरपूर फायदा उठा रहे हैं अमीरजादे, गरीब अभी भी हाशिये पर !

Hinduja Group Chairman Gopichand Hinduja passes away: Indian industry stalwart passes away, marking the end of an era: हिंदुजा ग्रुप के चेयरमैन गोपीचंद हिंदुजा नहीं रहे: भारतीय उद्योग जगत के दिग्गज का निधन, एक युग का हुआ अंत

Hinduja Group Chairman Gopichand Hinduja passes away: Indian industry stalwart passes away, marking the end of an era: हिंदुजा ग्रुप के चेयरमैन गोपीचंद हिंदुजा नहीं रहे: भारतीय उद्योग जगत के दिग्गज का निधन, एक युग का हुआ अंत

The government's new PF scheme will provide huge benefits to employees – provident fund guarantee without penalty.:सरकार की नई पी एफ स्कीम से कर्मचारियों को मिलेगा बंपर फायदा — बिना जुर्माना मिलेगी भविष्य निधि की गारंटी

The government's new PF scheme will provide huge benefits to employees – provident fund guarantee without penalty.:सरकार की नई पी एफ स्कीम से कर्मचारियों को मिलेगा बंपर फायदा — बिना जुर्माना मिलेगी भविष्य निधि की गारंटी

People dying due to stampede in public places, silent governments and insensitive society, how many more lessons do we have to learn?: सार्वजनिक स्थलों पर भगदड़ से कुचल कर मरते लोग, मौन सरकारें और संवेदनहीन समाज, हमें और कितने सबक लेने बाकी ?

People dying due to stampede in public places, silent governments and insensitive society, how many more lessons do we have to learn?: सार्वजनिक स्थलों पर भगदड़ से कुचल कर मरते लोग, मौन सरकारें और संवेदनहीन समाज, हमें और कितने सबक लेने बाकी ?

After FASTag, now KYC hassle: Fear of toll tags being discontinued creates panic among vehicle owners: फास्टैग केवैसी के बाद अब केवाईवी का झंझट: टोल टैग बंद होने के डर से वाहन मालिकों में हड़कंप

After FASTag, now KYC hassle: Fear of toll tags being discontinued creates panic among vehicle owners: फास्टैग केवैसी के बाद अब केवाईवी का झंझट: टोल टैग बंद होने के डर से वाहन मालिकों में हड़कंप

Historic step in consumer protection: Callers will now display their real names, preventing false identities and fraud!: उपभोक्ता सुरक्षा में ऐतिहासिक कदम: अब फोन कॉल पर दिखेगा कॉलर का असली नाम, झूठी पहचान और ठगी पर लगेगी रोक !

Historic step in consumer protection: Callers will now display their real names, preventing false identities and fraud!: उपभोक्ता सुरक्षा में ऐतिहासिक कदम: अब फोन कॉल पर दिखेगा कॉलर का असली नाम, झूठी पहचान और ठगी पर लगेगी रोक !

Delhi suffocates in smog: Life is dwindling, GDP is sinking too: धुंध में दम तोड़ती दिल्ली: जिंदगी घट रही, जी डी पी भी डूब रही

Delhi suffocates in smog: Life is dwindling, GDP is sinking too: धुंध में दम तोड़ती दिल्ली: जिंदगी घट रही, जी डी पी भी डूब रही

The buzz of the SIR elections resonates across the country! Preparations for the first phase are complete in 10 states, and the Commission is gearing up.: देशभर में एस आई आर चुनाव की गूंज! 10 राज्यों में पहले चरण की तैयारियां पूरी, आयोग ने कसी कमर

The buzz of the SIR elections resonates across the country! Preparations for the first phase are complete in 10 states, and the Commission is gearing up.: देशभर में एस आई आर चुनाव की गूंज! 10 राज्यों में पहले चरण की तैयारियां पूरी, आयोग ने कसी कमर

Delhi Declaration 2025: A new revolution for cities in the global fight for climate justice! : दिल्ली घोषणापत्र 2025: जलवायु न्याय की वैश्विक जंग में शहरों की नई क्रांति!

Delhi Declaration 2025: A new revolution for cities in the global fight for climate justice! : दिल्ली घोषणापत्र 2025: जलवायु न्याय की वैश्विक जंग में शहरों की नई क्रांति!

By using our site, you agree to our Terms & Conditions and Disclaimer     Dismiss