भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
आज जब जलवायु परिवर्तन मानव सभ्यता के लिए अस्तित्व का प्रश्न बन चुका है, तब दुनिया का ध्यान केवल बड़े देशों की नीतियों पर नहीं, बल्कि शहरों की भूमिका पर भी केंद्रित हो गया है। इसी पृष्ठभूमि में “एराइज़ सिटीज़ फोरम 2025” में जारी “दिल्ली घोषणापत्र 2025” ने एक नया इतिहास रचा है। इसका नारा — “भारत से बेलेम तक” — इस विचार का प्रतीक है कि जलवायु न्याय की वैश्विक यात्रा अब दक्षिणी गोलार्ध के शहरों से होकर गुज़रेगी। यह घोषणापत्र उन शहरों का सामूहिक संदेश है जो कह रहे हैं — “हम केवल जलवायु परिवर्तन के पीड़ित नहीं, बल्कि समाधान का हिस्सा हैं।” इस प्रकार, दिल्ली घोषणापत्र 2025 वैश्विक शहरी कूटनीति में एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ बन गया है, जो यह दर्शाता है कि एक सतत, जलवायु-सुरक्षित भविष्य की नींव शहरों से ही रखी जाएगी। दिल्ली में आयोजित एराइज़ सिटीज़ फोरम 2025 में एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के 60 से अधिक शहरों के मेयर, नीति-निर्माता, पर्यावरणविद और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए। इसका उद्देश्य था— “जलवायु निर्णय-निर्माण में स्थानीय सरकारों और शहरों की भागीदारी को सशक्त बनाना।” सम्मेलन के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि जलवायु संकट का वास्तविक प्रभाव सबसे अधिक शहरी इलाकों पर पड़ता है। बाढ़, प्रदूषण, जल संकट, और गर्मी की लहरें शहरों के अस्तित्व को चुनौती दे रही हैं। इसलिए, यदि दुनिया को बचाना है तो हमें “ग्लोबल पॉलिसी” नहीं बल्कि “लोकल एक्शन” की ओर बढ़ना होगा। दिल्ली घोषणापत्र 2025 इसी सोच की परिणति है — यह बताता है कि वैश्विक जलवायु नीति में शहरों को साझेदार नहीं बल्कि नेता की भूमिका दी जानी चाहिए। “भारत से बेलेम तक” सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि दक्षिणी गोलार्ध के देशों की साझा यात्रा का प्रतीक है। यह यात्रा भारत के अनुभवों से शुरू होकर ब्राज़ील के बेलेम शहर तक जाती है, जहाँ संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है। दिल्ली घोषणापत्र इस बात पर बल देता है कि वैश्विक जलवायु नीतियों में केवल विकसित देशों की राय नहीं चलनी चाहिए। शहरों—विशेषकर विकासशील देशों के—को भी अपनी प्राथमिकताएँ और चुनौतियाँ साझा करने का समान अवसर मिलना चाहिए। इसका सबसे बड़ा उद्देश्य है —जलवायु शासन में समान प्रतिनिधित्व। घोषणापत्र मांग करता है कि सी ओ पी 30 बेलेम में “अर्बन क्लाइमेट एक्शन ट्रैक” जोड़ा जाए, जिसमें शहरों को सीधे नीति-निर्माण में शामिल किया जा सके। जलवायु संकट के सबसे प्रत्यक्ष प्रभाव शहरों में महसूस किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई या कोलकाता जैसे महानगर अब हीट स्ट्रेस, फलडिंग और पौल्यूशन से जूझ रहे हैं। इसके बावजूद, इन्हीं शहरों में समाधान की संभावना भी सबसे अधिक है। शहरी लचीलापन का अर्थ केवल आपदा से बचाव नहीं, बल्कि ऐसी संरचना बनाना है जो सामाजिक न्याय, आर्थिक अवसर और पर्यावरणीय संतुलन को साथ लेकर चले। दिल्ली घोषणापत्र के अनुसार — “शहर केवल ईंट और कंक्रीट का समूह नहीं, बल्कि जीवित पारिस्थितिकी तंत्र हैं। इनके स्वास्थ्य पर ही मानव सभ्यता की स्थिरता निर्भर करती है।” दिल्ली ने पिछले कुछ वर्षों में कई ऐसी पहलें की हैं जो वैश्विक मंच पर प्रेरणा का स्रोत बनी हैं — जैसे सोलर रूफटॉप मिशन, इलेक्ट्रिक बसें, हरित भवन नीति और यमुना पुनर्जीवन परियोजना । इन्हीं प्रयासों ने दिल्ली को सस्टेनेबल सिटीज़ नेटवर्क का प्रमुख सदस्य बनाया है। फोरम में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के अनुभवों से अन्य एशियाई शहरों को अनुकूलन योजनाओं के निर्माण में सीधा मार्गदर्शन मिल सकता है। दिल्ली घोषणापत्र 2025 में तीन मुख्य प्रस्ताव रखे गए—जलवायु न्याय:विकसित देशों से अपेक्षा की गई कि वे न केवल अपने उत्सर्जन घटाएँ बल्कि विकासशील शहरों को तकनीकी, वित्तीय और संस्थागत सहयोग दें।शहरी जलवायु वित्त तंत्र:शहरों को सीधे ग्रीन फंड्स और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कोषों तक पहुँच मिले ताकि स्थानीय परियोजनाएँ बिना नौकरशाही बाधाओं के लागू हो सकें।समान प्रतिनिधित्व: सी ओ पी और अन्य जलवायु सम्मेलनों में शहरों को औपचारिक प्रतिनिधि का दर्जा दिया जाए। घोषणापत्र में भविष्य के लिए कुछ ठोस कदम सुझाए गए हैं— ग्रीन मोबिलिटी: सार्वजनिक परिवहन को इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन आधारित बनाना।शहरी वनों का विस्तार: शहरों के भीतर अर्बन फॉरेस्टिंग ज़ोन तैयार करना।सर्कुलर इकॉनमी: अपशिष्ट पुनर्चक्रण, पुनः उपयोग और ‘ज़ीरो वेस्ट’ मॉडल अपनाना।जल संरक्षण: वर्षा जल संचयन और ग्रे वाटर रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देना।सामुदायिक भागीदारी: नागरिकों, युवाओं और स्थानीय संगठनों को नीति-निर्माण में शामिल करना।इन सभी कदमों का उद्देश्य है एक ऐसा शहरी ढाँचा तैयार करना जो जलवायु परिवर्तन के झटकों को सहने के साथ-साथ समावेशी और न्यायसंगत भी हो। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक जलवायु कूटनीति में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका को मज़बूत किया है। अब दिल्ली घोषणापत्र इसी नेतृत्व को स्थानीय स्तर तक ले आता है। यह बताता है कि जलवायु न्याय केवल अंतरराष्ट्रीय समझौतों से नहीं, बल्कि नगर निकायों, स्थानीय शासन और नागरिक समाज की सक्रिय भागीदारी से संभव होगा। ‘दिल्ली से बेलेम’ दरअसल एक प्रतीकात्मक यात्रा है — जहाँ दिल्ली, जो आज जलवायु संकट का केंद्र है, वही भविष्य के समाधान की दिशा भी दिखा रही है। जब बेलेम (ब्राज़ील) में सी ओ पी 30 का आयोजन होगा, तब दिल्ली घोषणापत्र एक प्रेरक दस्तावेज़ के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। यह दुनिया को यह याद दिलाएगा कि “शहर अब जलवायु संघर्ष के मोहरे नहीं, बल्कि उसके परिवर्तन के नायक हैं।” अंत में कह सकते हैं कि दिल्ली घोषणापत्र 2025 हमें यह सिखाता है कि जलवायु संकट का समाधान तभी संभव है जब नीति-निर्माण स्थानीय स्तर से शुरू हो। यह दस्तावेज़ केवल घोषणाओं का संग्रह नहीं, बल्कि एक विचारधारा है।