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संपादकीय

We won't improve: Delhi pollution warns ahead of Diwali: हम सुधरेंगे नहीं: दिल्ली में दिवाली से पहले ही प्रदूषण ने चेताया

October 18, 2025 06:33 PM

 भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़   

दिल्ली की हवा इस साल दिवाली से पहले ही चेतावनी की घंटी बजा रही है। राजधानी में वायु गुणवत्ता सूचकांक 380 पार कर गया है, और विशेषज्ञ इसे ‘बहुत खराब’ श्रेणी में बता रहे हैं। इसका मतलब है कि आम लोगों के लिए भी स्वास्थ्य जोखिम बढ़ गया है, जबकि संवेदनशील वर्ग—बच्चे, बुजुर्ग और श्वसन रोगी—सीधे तौर पर खतरे में हैं। सिस्टम का कामकाज देखने पर लगता है कि हम सुधार के नाम पर बस औपचारिकताएं निभा रहे हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, आनंद विहार में वायु गुणवत्ता सूचकांक 387 दर्ज किया गया, जबकि बवाना 312 तक पहुंच गया। ये आंकड़े सिर्फ संख्याएं नहीं हैं; यह उस सिस्टम की विफलता का संकेत हैं, जिसने हवा को प्रदूषण से सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी उठाई थी।नोएडा और गाजियाबाद में भी स्थिति कम चिंताजनक नहीं है। नोएडा के सेक्टर-125 में वायु गुणवत्ता सूचकांक 319, सेक्टर-116 में 290 और सेक्टर-62 में 244 तक पहुंच गया। गाजियाबाद के लोनी में 339, वसुंधरा में 287 और इंदिरापुरम में 298 दर्ज किया गया। ये आंकड़े जी आर ए पी के तहत आते हैं, जिसे प्रदूषण नियंत्रण की रूपरेखा माना जाता है।  लेकिन सवाल यही है— जी आर ए पी सिस्टम क्यों फेल हो रहा है? सड़कों की धुलाई, निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण और कूड़ा जलाने पर रोक जैसी पाबंदियां केवल कागज़ों में ही नजर आती हैं। जब हवा ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच जाती है, तब इसका मतलब है कि सिस्टम सिर्फ दिखावे के लिए काम कर रहा है, वास्तविक नियंत्रण में नहीं। जाने माने पल्मोनोलॉजिस्ट का कहना है कि “वायु गुणवत्ता सूचकांक में यह उछाल गंभीर स्वास्थ्य खतरे का संकेत है। सी ओ पी डी, अस्थमा या हृदय रोग वाले लोगों के लिए यह स्थिति जानलेवा हो सकती है। खांसी, सांस फूलना, बुखार, सीने में दर्द जैसी शिकायतें आम हो सकती हैं।” इस बार दिल्लीवासियों को एन-95 या डबल सर्जिकल मास्क पहनने की सख्त सलाह दी गई है। लेकिन मास्क केवल व्यक्तिगत उपाय हैं; सिस्टम की विफलता से हवा प्रदूषण मुक्त नहीं होती। यह स्थिति साबित करती है कि हमारी प्रदूषण नियंत्रण नीतियां और उनके क्रियान्वयन में गंभीर खामी है। हर साल की तरह इस बार भी दिवाली के समय पटाखों से प्रदूषण का स्तर और बढ़ेगा। विशेषज्ञों का अनुमान है कि हवा की स्थिति और बिगड़ सकती है। ठंडी हवाओं के कारण स्मॉग (धुंध) भी बढ़ेगा, जिससे वायु गुणवत्ता सूचकांक और ऊँचा दर्ज होगा। यानी सिस्टम अभी से ही अलर्ट मोड में नहीं है। अनुपालन में कमी: निर्माण स्थलों, ठोस कचरे और वाहनों पर नियम तो हैं, लेकिन उनके पालन की निगरानी कमज़ोर है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट की असमानता: अधिकांश लोग निजी वाहन ही इस्तेमाल करते हैं, जो प्रदूषण बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाता है। ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान का सीमित असर: यह सिर्फ फॉर्मैलिटी बनकर रह गया है, असल में प्रदूषण को रोकने में यह प्रभावहीन साबित हो रहा है। सामाजिक चेतना का अभाव: नागरिकों में प्रदूषण और इसके खतरों के प्रति जागरूकता अभी भी अधूरी है।यहां केवल मास्क और चेतावनी ही समाधान नहीं है। सिस्टम को सुधारना होगा।सख्त नियम और उनकी निगरानी: निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के लिए अत्याधुनिक उपकरण लगाना, कूड़ा जलाने पर रोक और उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्रवाई।सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा: निजी वाहन कम करना और इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता देना।सक्रिय ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान  मोड: जब वायु गुणवत्ता सूचकांक 300 से ऊपर जाए, तुरंत स्कूल बंद, निर्माण स्थलों की रोकथाम और वाहनों की निगरानी। नागरिक सहभागिता: लोग स्वयं अपने स्तर पर वाहन कम इस्तेमाल करें, पटाखों से बचें और मास्क का उपयोग करें। यदि वर्तमान सिस्टम यही चलता रहा, तो आने वाले वर्षों में दिल्लीवासियों की स्वास्थ्य स्थिति गंभीर खतरे में होगी। बच्चों और बुजुर्गों में श्वसन संबंधी रोगों में वृद्धि, हृदय और फेफड़ों पर दीर्घकालिक असर और सामान्य जनजीवन पर प्रतिकूल प्रभाव दिखने लगेगा। सिर्फ मास्क और चेतावनी पर्याप्त नहीं हैं। सिस्टम को जवाबदेह बनाना होगा। नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना होगा। नागरिकों को सक्रिय भूमिका निभानी होगी। तभी हम दिल्ली की हवा को फिर से स्वच्छ और सुरक्षित बना पाएंगे। दिल्ली में हवा का लगातार खराब होना केवल पर्यावरण की समस्या नहीं है, बल्कि यह सिस्टम की विफलता का आइना है। हर साल वही कहानी—अधिकारियों की चेतावनी, उपायों की घोषणा और फिर वही धुंध, वही अस्वस्थता। सुधार तभी संभव है जब सिस्टम जवाबदेह होगा, नीतियों को सख्ती से लागू किया जाएगा और नागरिक जागरूकता से सहयोग देंगे। यह समय सिर्फ चेतावनी देने का नहीं है। यह समय वास्तविक कार्रवाई करने का है। अगर हमने अब भी नहीं सुधारा, तो आने वाली पीढ़ियों को यही धुंध और वही स्वास्थ्य संकट विरासत में मिलेगा।

 

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