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संपादकीय

The world is watching Delhi's toxic air: Foreign advisories and the Beijing model have raised concerns.: दिल्ली की जहरीली हवा पर दुनिया की नजर: विदेशी एडवाइजरी और बीजिंग मॉडल ने बढ़ाई चिंता

December 18, 2025 12:13 AM

भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़    

उत्तर भारत, विशेषकर दिल्ली-एनसीआर, एक बार फिर गंभीर वायु प्रदूषण की चपेट में है। सर्दियों की दस्तक के साथ ही राजधानी और आसपास के इलाकों में घना, जहरीला स्मॉग छा गया है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि वायु गुणवत्ता सूचकांक लगातार ‘बहुत खराब’ श्रेणी में बना हुआ है। दृश्यता कम हो गई है, सांस लेना दूभर हो रहा है और अस्पतालों में श्वसन संबंधी मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। इसी पृष्ठभूमि में सिंगापुर, ब्रिटेन और कनाडा ने उत्तर भारत में बिगड़ती वायु गुणवत्ता को लेकर अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी की है, जिसने इस समस्या को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिर से सुर्खियों में ला दिया है।इन देशों की ओर से जारी एडवाइजरी में साफ तौर पर कहा गया है कि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। बच्चों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और पहले से श्वसन या हृदय रोग से पीड़ित लोगों को विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी गई है। खुले में शारीरिक गतिविधियों से बचने, मास्क के उपयोग और आवश्यक होने पर ही बाहर निकलने जैसी हिदायतें दी गई हैं। यह पहली बार नहीं है जब विदेशी सरकारों ने दिल्ली के प्रदूषण को लेकर अपने नागरिकों को सतर्क किया हो, लेकिन बार-बार ऐसी चेतावनियाँ भारत की पर्यावरणीय चुनौतियों पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं।दिल्ली की हवा हर साल सर्दियों में क्यों बिगड़ जाती है, इसके कारण अब किसी से छिपे नहीं हैं। वाहनों से निकलने वाला धुआँ, निर्माण गतिविधियों से उड़ती धूल, औद्योगिक उत्सर्जन, कचरा जलाना और पराली जलाने से उठने वाला धुआँ मिलकर स्थिति को विस्फोटक बना देते हैं। इसके साथ ही मौसम की भूमिका भी अहम होती है। ठंडी हवा, कम गति वाली हवाएँ और तापमान में उलटाव (टेम्परेचर इनवर्ज़न) प्रदूषकों को जमीन के पास ही फँसा देते हैं, जिससे स्मॉग की मोटी परत बन जाती है।इस पूरे घटनाक्रम के बीच चीनी दूतावास के प्रवक्ता की टिप्पणी ने भी ध्यान खींचा है। उन्होंने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए बीजिंग द्वारा अपनाए गए उपायों की जानकारी साझा की। बीजिंग भी कभी दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाता था, लेकिन बीते एक दशक में चीन ने सख्त नीतियों और तकनीकी हस्तक्षेपों के जरिए हालात में उल्लेखनीय सुधार किया है। कोयले पर निर्भरता घटाना, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देना, उद्योगों पर कड़े उत्सर्जन मानक लागू करना, पुराने और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को हटाना तथा रीयल-टाइम मॉनिटरिंग जैसी पहलें इसमें शामिल रहीं।बीजिंग का उदाहरण बताता है कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत हो और नीतियों का ईमानदारी से क्रियान्वयन किया जाए, तो वायु प्रदूषण जैसी जटिल समस्या पर भी काबू पाया जा सकता है। हालांकि यह भी सच है कि भारत और चीन की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ अलग हैं, लेकिन स्वच्छ हवा को लेकर नागरिकों के स्वास्थ्य की चिंता सार्वभौमिक है। दिल्ली में भी ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान, ऑड-ईवन जैसी योजनाएँ और निर्माण गतिविधियों पर अस्थायी रोक जैसे कदम उठाए जाते हैं, पर ये अक्सर तात्कालिक और संकट-केंद्रित दिखाई देते हैं।समस्या यह है कि वायु प्रदूषण से निपटने के प्रयास अभी भी दीर्घकालिक और समन्वित रणनीति के बजाय अस्थायी समाधान तक सीमित हैं। पराली जलाने का मुद्दा हर साल सामने आता है, लेकिन किसानों को व्यवहारिक और आर्थिक रूप से टिकाऊ विकल्प उपलब्ध कराने में अब भी कमी है। सार्वजनिक परिवहन को सशक्त करने, इलेक्ट्रिक वाहनों को व्यापक स्तर पर अपनाने और शहरी नियोजन में पर्यावरणीय मानकों को प्राथमिकता देने की रफ्तार अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुँच पाई है।विदेशी एडवाइजरी को केवल छवि पर आघात के रूप में देखने के बजाय इसे चेतावनी की तरह लिया जाना चाहिए। यह संकेत है कि वायु प्रदूषण अब सिर्फ स्थानीय या राष्ट्रीय समस्या नहीं रहा, बल्कि वैश्विक चिंता का विषय बन चुका है। खराब हवा का असर पर्यटन, निवेश और अंतरराष्ट्रीय आयोजनों पर भी पड़ता है। इससे भारत की सॉफ्ट पावर और वैश्विक छवि प्रभावित होती है, जिसका दीर्घकालिक आर्थिक और कूटनीतिक असर हो सकता है।अंततः सवाल यह है कि क्या हम हर साल इसी तरह स्मॉग के मौसम का इंतजार करते रहेंगे और फिर आपातकालीन उपायों से हालात संभालने की कोशिश करेंगे, या फिर स्थायी समाधान की ओर बढ़ेंगे। स्वच्छ हवा किसी विलासिता का विषय नहीं, बल्कि नागरिकों का मौलिक अधिकार है। केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ उद्योगों, किसानों और आम नागरिकों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। चीन सहित अन्य देशों के अनुभव बताते हैं कि कठिन फैसले लेने से ही बदलाव आता है। दिल्ली की जहरीली हवा केवल एक मौसम की समस्या नहीं, बल्कि नीति, नियोजन और प्राथमिकताओं की परीक्षा है। जब तक स्वच्छ पर्यावरण को विकास की मूल शर्त नहीं माना जाएगा, तब तक हर सर्दी में स्मॉग और हर साल विदेशी एडवाइजरी हमारी हकीकत को आईना दिखाती रहेगी।

 

 

 

 

 

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