भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत ने बीते कुछ दशकों में जनसंख्या नियंत्रण के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। जहां कभी तेजी से बढ़ती आबादी देश के संसाधनों पर दबाव डाल रही थी, वहीं अब जनसंख्या वृद्धि दर में धीरे-धीरे गिरावट देखने को मिल रही है। भारत सरकार ने 2021 में चीन को पछाड़कर विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश का स्थान प्राप्त किया, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि "जनसंख्या का आकार नहीं, उसकी गुणवत्ता" ही असली विकास का आधार होना चाहिए। जनसंख्या नीति के क्षेत्र में भारत ने अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया है—केवल जनसंख्या वृद्धि को रोकना ही नहीं, बल्कि इसे ऐसे सामाजिक-आर्थिक ढांचे में ढालना है जो देश की उत्पादक क्षमता, मानव संसाधन और जीवन स्तर को ऊंचा उठाए। भारत की राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 इस दिशा में मील का पत्थर मानी जाती है। इसमें 2045 तक देश में "स्थिर जनसंख्या" प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया था। नीति ने परिवार नियोजन को केवल जन्म नियंत्रण के रूप में नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, लैंगिक समानता और आर्थिक अवसरों से जुड़ी सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में प्रस्तुत किया। सरकार द्वारा लागू किए गए विभिन्न कार्यक्रम — जैसे मिशन परिवार विकास, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, और आयुष्मान भारत योजना — ने मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को घटाने, महिलाओं की प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने, और किशोरावस्था शिक्षा को प्रोत्साहित करने में मदद की है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर अब 2.0 तक पहुंच गई है, जो "प्रतिस्थापन स्तर" से भी कम है। यह एक संकेत है कि भारत अब "जनसंख्या स्थिरीकरण" की दिशा में अग्रसर है। आज भारत के सामने चुनौती यह नहीं कि जनसंख्या को कैसे रोका जाए, बल्कि यह कि मौजूदा जनसंख्या की शिक्षा, कौशल और स्वास्थ्य को कैसे बेहतर बनाया जाए। "जनसंख्या नियंत्रण" शब्द अब अपने पुराने अर्थों से आगे बढ़ चुका है। यह अब "जनसंख्या प्रबंधन" और "मानव संसाधन निवेश" का रूप ले चुका है। भारत को "जनसांख्यिकीय लाभांश" का जो अवसर मिला है—जहां युवाओं की संख्या सबसे अधिक है—वह तभी सार्थक होगा जब इस युवा वर्ग को गुणवत्ता-आधारित शिक्षा, रोजगार और कौशल विकास के अवसर मिलें। कई विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और महिलाओं की शिक्षा ही जनसंख्या स्थिरीकरण के सबसे प्रभावी उपकरण हैं। जहां साक्षर और आर्थिक रूप से सशक्त महिलाएं अपने परिवारों के आकार के बारे में अधिक जागरूक और निर्णयक्षम होती हैं, वहीं स्वास्थ्य अवसंरचना की मजबूती से मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में गिरावट आती है। भारत सरकार ने 2025 तक "किशोर एवं प्रजनन स्वास्थ्य के सार्वभौमिक अधिकार" को सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा है, जिसमें ग्रामीण और पिछड़े इलाकों तक सस्ती एवं सुरक्षित स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाना प्राथमिकता है। जनसंख्या नीति में महिलाओं का सशक्तिकरण सबसे निर्णायक तत्व है। शिक्षित, आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिलाएं परिवार नियोजन और बच्चों के पालन-पोषण के प्रति ज्यादा जिम्मेदार रवैया अपनाती हैं। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, ‘सुकन्या समृद्धि योजना’, और ‘प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना’ जैसे कार्यक्रम न केवल महिला सशक्तिकरण के प्रतीक हैं, बल्कि दीर्घकालिक रूप से जनसंख्या वृद्धि नियंत्रण में भी सहायक सिद्ध हो रहे हैं। विश्व के कई देशों—विशेषकर अफ्रीका और दक्षिण एशिया के राष्ट्रों—के लिए भारत का मॉडल एक प्रेरणा बन सकता है। जहां चीन ने कठोर "एक बच्चे की नीति" अपनाई थी, वहीं भारत ने लोकतांत्रिक और स्वैच्छिक दृष्टिकोण को चुना, जो मानवाधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करता है। भारत की नीतियां यह दर्शाती हैं कि जनसंख्या नियंत्रण केवल सरकारी आदेशों से नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता, शिक्षा और समानता के माध्यम से ही संभव है। हालांकि उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं, पर चुनौतियाँ अभी भी गंभीर हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी परिवार नियोजन साधनों की पहुंच सीमित है। कई राज्यों में बाल विवाह और किशोर मातृत्व की दर चिंताजनक रूप से ऊंची है। स्वास्थ्य बजट का सीमित होना और जनसंख्या शिक्षा पर निवेश की कमी भी नीति के सफल क्रियान्वयन में बाधक है। इसके अतिरिक्त, कुछ राजनीतिक दलों द्वारा जनसंख्या नियंत्रण को धार्मिक या जनसंख्यिकीय संतुलन के रूप में प्रस्तुत करने से नीति का वैज्ञानिक और सामाजिक स्वरूप प्रभावित होता है। भारत अब उस दौर में है जहां "कम जनसंख्या" नहीं बल्कि "कुशल जनसंख्या" विकास की कुंजी है। जनसंख्या वृद्धि दर को कम करना केवल पहला कदम है, जबकि असली लक्ष्य है — ऐसी मानव शक्ति तैयार करना जो ज्ञान, स्वास्थ्य, नवाचार और उत्पादकता के माध्यम से भारत को "विकसित राष्ट्र" बनाने में योगदान दे सके। अतः भारत की जनसंख्या नीति को अब मात्र संख्या घटाने की रणनीति से आगे बढ़कर गुणवत्ता आधारित विकास की समग्र नीति के रूप में लागू किया जाना चाहिए। यह न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक संतुलित और मानवीय जनसंख्या दृष्टिकोण का उदाहरण प्रस्तुत करेगा।