Monday, October 13, 2025
BREAKING
Weather: गुजरात में बाढ़ से हाहाकार, अब तक 30 लोगों की मौत; दिल्ली-एनसीआर में भारी बारिश की चेतावनी जारी दैनिक राशिफल 13 अगस्त, 2024 Hindenburg Research Report: विनोद अदाणी की तरह सेबी चीफ माधबी और उनके पति धवल बुच ने विदेशी फंड में पैसा लगाया Hindus in Bangladesh: मर जाएंगे, बांग्लादेश नहीं छोड़ेंगे... ढाका में हजारों हिंदुओं ने किया प्रदर्शन, हमलों के खिलाफ उठाई आवाज, रखी चार मांग Russia v/s Ukraine: पहली बार रूसी क्षेत्र में घुसी यूक्रेनी सेना!, क्रेमलिन में हाहाकार; दोनों पक्षों में हो रहा भीषण युद्ध Bangladesh Government Crisis:बांग्लादेश में शेख हसीना का तख्तापलट, सेना की कार्रवाई में 56 की मौत; पूरे देश में अराजकता का माहौल, शेख हसीना के लिए NSA डोभाल ने बनाया एग्जिट प्लान, बौखलाया पाकिस्तान! तीज त्यौहार हमारी सांस्कृतिक विरासत, इन्हें रखें सहेज कर- मुख्यमंत्री Himachal Weather: श्रीखंड में फटा बादल, यात्रा पर गए 300 लोग फंसे, प्रदेश में 114 सड़कें बंद, मौसम विभाग ने 7 अगस्त को भारी बारिश का जारी किया अलर्ट Shimla Flood: एक ही परिवार के 16 सदस्य लापता,Kedarnath Dham: दो शव मिले, 700 से अधिक यात्री केदारनाथ में फंसे Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी की सब-कैटेगरी में आरक्षण को दी मंज़ूरी

संपादकीय

Life or dignity? India's sensitive battle on euthanasia: जीवन या गरिमा? इच्छामृत्यु पर भारत की संवेदनशील जंग

October 08, 2025 08:39 PM

 भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़

भारत में इच्छामृत्यु पर चल रही बहस केवल जीवन और मृत्यु का प्रश्न नहीं, बल्कि मानवीय गरिमा, व्यक्तिगत स्वायत्तता और नैतिक मूल्यों के बीच संतुलन की जटिल खोज है। यह एक ऐसा मुद्दा है जहां कानून, चिकित्सा, धर्म, और संस्कृति — सभी के दृष्टिकोण एक-दूसरे से टकराते भी हैं और पूरक भी बनते हैं। इच्छामृत्यु का शाब्दिक अर्थ है — ‘स्वेच्छा से मृत्यु की अनुमति’। जब कोई असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति असहनीय पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए अपनी मृत्यु का विकल्प चुनता है, तो उसे इच्छामृत्यु कहा जाता है। इसके दो प्रमुख रूप हैं — सक्रिय और निष्क्रिय। सक्रिय इच्छामृत्यु में किसी व्यक्ति को जानबूझकर मृत्यु देने की प्रक्रिया शामिल होती है, जबकि निष्क्रिय इच्छामृत्यु में जीवन रक्षक उपकरणों को हटा देना या दवाओं का सेवन बंद कर देना शामिल है, जिससे प्राकृतिक रूप से मृत्यु हो सके। भारत में इच्छामृत्यु को लेकर न्यायपालिका ने धीरे-धीरे एक संवेदनशील और संतुलित रुख अपनाया है। वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा शानबाग बनाम भारत संघ मामले में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को सीमित परिस्थितियों में अनुमति दी थी। यह फैसला भारतीय समाज में पहली बार इस संवेदनशील विषय पर विधिक मान्यता की दिशा में बड़ा कदम साबित हुआ। इसके बाद 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में “जीवित वसीयत” या अग्रिम निर्देश को मान्यता दी। इस फैसले में कहा गया कि हर व्यक्ति को सम्मानपूर्वक मृत्यु का अधिकार है, और वह पहले से यह निर्देश दे सकता है कि असाध्य बीमारी की स्थिति में उसे कृत्रिम रूप से जीवित न रखा जाए। यह निर्णय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत “जीवन के अधिकार” की व्यापक व्याख्या के अंतर्गत दिया गया, जिसमें अब “गरिमामय मृत्यु” को भी शामिल माना गया है। भारत की विविध सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में जीवन को ईश्वर का दिया गया उपहार माना गया है। हिंदू दर्शन में आत्मा को अमर माना जाता है और मृत्यु को केवल एक अवस्था परिवर्तन के रूप में देखा जाता है। फिर भी, आत्महत्या या जानबूझकर मृत्यु को आमतौर पर ‘अधर्म’ माना गया है। बौद्ध धर्म करुणा और दुःख-निवारण पर जोर देता है, परंतु जानबूझकर मृत्यु को नैतिक रूप से अनुचित ठहराता है। ईसाई धर्म और इस्लाम दोनों जीवन को ईश्वर की इच्छा के अधीन मानते हैं और इच्छामृत्यु का विरोध करते हैं। ऐसे में भारतीय समाज में इच्छामृत्यु की स्वीकृति केवल विधिक प्रश्न नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनाओं से भी गहराई से जुड़ा है। इच्छामृत्यु के पक्षधर यह तर्क देते हैं कि व्यक्ति को अपने शरीर और जीवन पर अधिकार है। यदि वह असहनीय पीड़ा में है और चिकित्सा विज्ञान उसके जीवन की गुणवत्ता बहाल नहीं कर सकता, तो उसे मृत्यु चुनने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। इसे “स्वायत्तता का विस्तार” माना जाता है — यानी व्यक्ति का अपनी नियति पर नियंत्रण। वहीं विरोधी पक्ष का कहना है कि जीवन केवल व्यक्तिगत नहीं, सामाजिक संपत्ति भी है। व्यक्ति की मृत्यु का प्रभाव परिवार, समाज और संस्थाओं पर पड़ता है। साथ ही, भारत जैसे देश में जहां स्वास्थ्य सेवाओं में असमानता, आर्थिक विषमता और ग्रामीण-शहरी अंतर गहरा है, वहां इच्छामृत्यु का दुरुपयोग भी संभव है। गरीब या अकेले लोगों पर यह दबाव डाला जा सकता है कि वे “बोझ” बनने से बचने के लिए मृत्यु चुनें। भारत में इच्छामृत्यु की प्रक्रिया कानूनी रूप से अत्यंत जटिल है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद डॉक्टरों, अस्पतालों और परिवारों में इस विषय पर स्पष्टता का अभाव है। किसी मरीज की “जीवित वसीयत” को लागू करने के लिए कई स्तरों की स्वीकृति, न्यायिक हस्तक्षेप और चिकित्सकीय बोर्ड की पुष्टि आवश्यक होती है। इससे यह प्रक्रिया लंबी और भावनात्मक रूप से थकाने वाली बन जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, शिक्षा का अभाव और सामाजिक पूर्वाग्रह इसे और कठिन बना देते हैं। साथ ही, भारत में पैलेटिव केयर यानी रोगी की पीड़ा को कम करने वाली चिकित्सा सुविधाएं अभी सीमित हैं। यदि इस दिशा में सुधार हो, तो इच्छामृत्यु की आवश्यकता स्वाभाविक रूप से कम हो सकती है। दुनिया के कुछ देशों — जैसे नीदरलैंड, बेल्जियम, कनाडा और न्यूजीलैंड — में सक्रिय इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता मिली हुई है। वहीं जर्मनी, जापान और भारत जैसे देशों में निष्क्रिय इच्छामृत्यु सीमित रूप से स्वीकार्य है। इन देशों के अनुभव बताते हैं कि इच्छामृत्यु को स्वीकार करने से पहले सशक्त स्वास्थ्य तंत्र, पारदर्शी प्रक्रियाएं और सामाजिक जागरूकता आवश्यक हैं। महात्मा गांधी ने कहा था — “किसी भी समाज का सही मापदंड इस बात से पता चलता है कि वह अपने सबसे कमजोर सदस्यों के साथ कैसा व्यवहार करता है।” यही विचार इच्छामृत्यु के विमर्श का नैतिक केंद्र है। किसी असहाय, रोगग्रस्त व्यक्ति को उसकी पीड़ा से मुक्ति दिलाना एक संवेदनशील सामाजिक जिम्मेदारी भी है, परंतु यह जिम्मेदारी करुणा से प्रेरित होनी चाहिए, न कि आर्थिक या सामाजिक दबाव से। भारत में इच्छामृत्यु पर बहस अभी अधूरी है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसके लिए संवैधानिक रास्ता अवश्य खोला है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में पारदर्शिता, संवेदना और सामाजिक उत्तरदायित्व का समावेश आवश्यक है। भविष्य की दिशा यही हो सकती है कि सरकार और समाज दोनों मिलकर ऐसे ढांचे का निर्माण करें, जिसमें व्यक्ति की गरिमा, उसकी स्वायत्तता और सामाजिक मूल्यों के बीच संतुलन बना रहे। अंततः इच्छामृत्यु का प्रश्न केवल मृत्यु का नहीं, सम्मानपूर्वक जीवन जीने और उसी गरिमा के साथ विदा लेने के अधिकार का प्रश्न है।

Have something to say? Post your comment

और संपादकीय समाचार

From e-courts to e-justice: The digital revolution has begun in the Indian judiciary!: ई-कोर्ट्स से ई-न्याय तक: भारतीय न्यायपालिका में शुरू हुई डिजिटल क्रांति!

From e-courts to e-justice: The digital revolution has begun in the Indian judiciary!: ई-कोर्ट्स से ई-न्याय तक: भारतीय न्यायपालिका में शुरू हुई डिजिटल क्रांति!

A golden era in agriculture has begun! Modi's ₹42,000 crore Diwali gift has become a source of hope for farmers!: खेती में सुनहरा युग शुरू ! मोदी का 42,000 करोड़ का दिवाली गिफ्ट बना किसानों की उम्मीद !

A golden era in agriculture has begun! Modi's ₹42,000 crore Diwali gift has become a source of hope for farmers!: खेती में सुनहरा युग शुरू ! मोदी का 42,000 करोड़ का दिवाली गिफ्ट बना किसानों की उम्मीद !

When faith became a weapon: It was not the shoes that attacked, but the soul of the Constitution!: जब आस्था बनी हथियार: जूते से नहीं, संविधान की आत्मा पर हुआ प्रहार !

When faith became a weapon: It was not the shoes that attacked, but the soul of the Constitution!: जब आस्था बनी हथियार: जूते से नहीं, संविधान की आत्मा पर हुआ प्रहार !

India-UK defence deal: From maritime security to missile power, a new era will dawn: भारत-यू के डिफेंस डील: समुद्री सुरक्षा से मिसाइल ताकत तक बनेगा नया युग

India-UK defence deal: From maritime security to missile power, a new era will dawn: भारत-यू के डिफेंस डील: समुद्री सुरक्षा से मिसाइल ताकत तक बनेगा नया युग

Centre's Diwali gift: 4 railway projects approved, benefiting 85 lakh people and creating employment for thousands: केंद्र का दीवाली तोहफा: 4 रेल परियोजनाओं को मंजूरी, 85 लाख लोगों को लाभ व हजारों को रोजगार

Centre's Diwali gift: 4 railway projects approved, benefiting 85 lakh people and creating employment for thousands: केंद्र का दीवाली तोहफा: 4 रेल परियोजनाओं को मंजूरी, 85 लाख लोगों को लाभ व हजारों को रोजगार

Cough syrup dominates the deaths of innocent people: Government must take strict action: मासूमों की मौत पर हावी होता कफ सिरप: सरकार उठाने होंगे सख्त कदम

Cough syrup dominates the deaths of innocent people: Government must take strict action: मासूमों की मौत पर हावी होता कफ सिरप: सरकार उठाने होंगे सख्त कदम

From Sri Lanka to Georgia, the boiling masses: Are democracy's roots being shaken?: श्रीलंका से जॉर्जिया तक उबलती जनता: क्या लोकतंत्र की जड़ें हिल रही हैं?

From Sri Lanka to Georgia, the boiling masses: Are democracy's roots being shaken?: श्रीलंका से जॉर्जिया तक उबलती जनता: क्या लोकतंत्र की जड़ें हिल रही हैं?

Agni Prime, BrahMos and 5th Gen jets... now the Indian Air Force will become the mighty power of Asia.: अग्नि प्राइम, ब्रह्मोस और 5वीं जेन जेट... अब इंडियन एयर फोर्स बनेगा एशिया का महाबली

Agni Prime, BrahMos and 5th Gen jets... now the Indian Air Force will become the mighty power of Asia.: अग्नि प्राइम, ब्रह्मोस और 5वीं जेन जेट... अब इंडियन एयर फोर्स बनेगा एशिया का महाबली

 Question on the value of every vote: Why is it necessary to clean up the voter list?: हर वोट की कीमत पर सवाल: क्यों जरूरी है मतदाता सूची की सफाई?

Question on the value of every vote: Why is it necessary to clean up the voter list?: हर वोट की कीमत पर सवाल: क्यों जरूरी है मतदाता सूची की सफाई?

Democracy's biggest challenge—the battle for accurate voter lists: लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौती—सटीक मतदाता सूची की जंग

Democracy's biggest challenge—the battle for accurate voter lists: लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौती—सटीक मतदाता सूची की जंग

By using our site, you agree to our Terms & Conditions and Disclaimer     Dismiss