भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत का लोकतंत्र अपनी विविधता और जनसंख्या की विशालता के कारण विश्व में अद्वितीय है। यहां हर पांच वर्ष में होने वाले आम चुनावों में करोड़ों नागरिक भाग लेते हैं। यह प्रक्रिया केवल मतदान तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसकी सफलता का पहला और सबसे बुनियादी आधार है – मतदाता सूची की शुद्धता। यदि मतदाता सूची में त्रुटियां हों, नाम छूट जाएं या डुप्लीकेट प्रविष्टियां बनी रहें, तो यह चुनावी निष्पक्षता और मतदाता विश्वास दोनों को प्रभावित करता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मतदाता सूची में असमानताएँ न केवल मतगणना को जटिल बनाती हैं बल्कि मतदान के अनुमानों में व्यवस्थित त्रुटि भी पैदा करती हैं। अक्सर देखा गया है कि नामों की गलत प्रविष्टि, मृतकों के नाम हटाने में देरी, एक ही मतदाता का अलग-अलग स्थानों पर दर्ज होना या असमर्थित दस्तावेजों के आधार पर नाम जोड़ना चुनावी पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न लगा देता है। इससे मतदान प्रतिशत के आकलन में नीचे की ओर पूर्वाग्रह उत्पन्न होता है, जो वास्तविक जन-इच्छा को दर्शाने में बाधक है। उदाहरण के लिए, कई राज्यों में चुनावों से ठीक पहले बड़ी संख्या में मतदाता सूची से नाम हटने या जुड़ने की घटनाएं सुर्खियों में आती हैं। कुछ मामलों में यह राजनीतिक हस्तक्षेप का परिणाम होता है तो कई बार यह प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा होता है। दोनों ही स्थितियाँ लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर सीधा प्रहार करती हैं। भारत का निर्वाचन आयोग संविधान द्वारा स्वायत्त संस्था है, जिसका दायित्व केवल चुनाव कराना ही नहीं, बल्कि उसे निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना भी है। मतदाता सूची का नियमित और गहन पुनरीक्षण इस दिशा में सबसे अहम कदम है। आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर नागरिक को मतदान का अधिकार समान रूप से प्राप्त हो और कोई भी तकनीकी या प्रशासनिक बाधा उसकी भागीदारी में अड़चन न बने। मौजूदा चुनौतियों की बात करें तो दस्तावेज संबंधी कमियां – ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में आज भी कई नागरिकों के पास मानक पहचान पत्र या स्थायी पते का दस्तावेज उपलब्ध नहीं होता। इससे उनके नाम मतदाता सूची में दर्ज कराने में कठिनाई आती है। डुप्लीकेट प्रविष्टियां – एक ही व्यक्ति का नाम अलग-अलग क्षेत्रों या बूथों में बार-बार दर्ज हो जाना एक आम समस्या है। यह न केवल गणना को कठिन बनाता है, बल्कि फर्जी मतदान की आशंका भी बढ़ाता है। राजनीतिक हस्तक्षेप – चुनावों के समय मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने को लेकर राजनीतिक दबाव देखा जाता है। इससे सूची की निष्पक्षता संदिग्ध हो जाती है। तकनीकी ढांचा – डिजिटल युग में भी कई बार सूचनाओं का सही एकीकरण और अपडेट नहीं हो पाता, जिससे नागरिकों को नाम सुधार या स्थानांतरण के लिए लंबे समय तक परेशान होना पड़ता है। इस चुनौती से निपटने के लिए निर्वाचन आयोग को बहुआयामी कदम उठाने होंगे: सरल सत्यापन प्रक्रिया: नागरिकों को अपने दस्तावेज आसानी से जमा करने और सत्यापित कराने का विकल्प दिया जाना चाहिए। ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों तरह के माध्यम सरल और पारदर्शी हों। बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण: आधार या अन्य विश्वसनीय पहचान प्रणालियों के साथ मतदाता सूची का एकीकरण डुप्लीकेट प्रविष्टियों को खत्म करने में कारगर हो सकता है। इससे फर्जी मतदान की संभावना भी घटेगी। सार्वजनिक जागरूकता अभियान: कई बार मतदाता स्वयं अपने नाम में हुई त्रुटियों से अनजान रहते हैं। नियमित जागरूकता अभियानों के माध्यम से लोगों को समय-समय पर अपने विवरण की जांच और सुधार के लिए प्रेरित किया जा सकता है। विश्वसनीय सर प्रक्रिया: चुनावी सुधारों का हिस्सा बने "स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन को चरणबद्ध और सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। इसमें हर प्रविष्टि की जमीनी सत्यापन और नागरिकों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हो। प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल: मोबाइल ऐप्स और पोर्टल्स के जरिए लोगों को अपने नाम की स्थिति जानने, सुधार के लिए आवेदन करने और बदलाव की प्रगति ट्रैक करने की सुविधा दी जा सकती है। मतदाता सूची की शुद्धता केवल प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं है, यह लोकतंत्र की आत्मा से जुड़ा हुआ विषय है। यदि कोई नागरिक मतदान के दिन बूथ पर जाकर यह पाए कि उसका नाम सूची से गायब है, तो उसका लोकतांत्रिक विश्वास टूट जाता है। यही कारण है कि सूची का पारदर्शी और समयबद्ध पुनरीक्षण लोकतंत्र की मजबूती के लिए उतना ही जरूरी है, जितना कि निष्पक्ष मतदान। लोकतंत्र की नींव नागरिकों के विश्वास पर टिकी होती है। यदि मतदाता को यह भरोसा हो कि उसका वोट दर्ज होगा और उसकी राय का सम्मान होगा, तभी चुनावी प्रक्रिया को वास्तविक जनादेश का प्रतिबिंब कहा जा सकता है। अंत में कह सकते हैं कि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र के लिए यह बेहद जरूरी है कि मतदाता सूची पूरी तरह से सटीक, पारदर्शी और अद्यतन हो। दस्तावेजी कमियों, डुप्लीकेट प्रविष्टियों और राजनीतिक हस्तक्षेप जैसी चुनौतियाँ लोकतंत्र की साख को कमजोर करती हैं। निर्वाचन आयोग को समयबद्ध और व्यवस्थित सुधारात्मक कदम उठाकर यह सुनिश्चित करना होगा कि हर योग्य नागरिक को उसका संवैधानिक अधिकार – मतदान – सहज और निष्पक्ष रूप से प्राप्त हो। आज जरूरत इस बात की है कि मतदाता सूची को मात्र चुनावी औपचारिकता न मानकर लोकतांत्रिक सहभागिता का आधार स्तंभ समझा जाए। तभी भारत का लोकतंत्र अपनी वास्तविक शक्ति और वैश्विक पहचान को और अधिक मजबूती से स्थापित कर सकेगा।