भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों में सिर्फ एक ऐतिहासिक जीत शामिल नहीं है बल्कि यह राज्य के राजनीतिक समीकरणों में बड़े बदलाव का संकेत भी देता है। इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभाव सबसे विचित्र शार्क सामने आया। प्रचंड को मिली सफलता इस बात का प्रमाण है कि मोदी की व्यक्तिगत राय, उनके सहयोगियों पर जनता का विश्वास और केंद्र सरकार की छात्र परिषद की व्यापक भागीदारी ने चुनौती के बड़े वर्ग को प्रभावित किया है। लेकिन इस जीत के पीछे केवल मोदी गुट नहीं है, बल्कि अर्थशास्त्र, लोकतंत्र, नेतृत्व संकट, सामाजिक आधार का ढांचा और युवा एवं महिला वोटरों की साज़िशों में बदलाव भी बड़े पैमाने पर मौजूद हैं। मोदी ने लगभग 25 से अधिक रैलियों के बीच चुनावी प्रचार किया, जिसमें भारी भीड़ शामिल थी। उनके भाषणों ने बिहार में एक व्यापक राजनीतिक लहर का निर्माण किया। विकास, सुरक्षा और स्थिरता की ग्रामीण और शहरी छवि- युगल क्षेत्रों में असर दिख रहा है। केंद्र की मंजूरी—80 लोगों को मुफ्त राशन, 11 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन, लाखों परिवार के तहत प्रधानमंत्री आवास योजना—ने विशेष रूप से करोड़ों रुपये से गरीब, पिछड़े और महिलाओं की सूची तक सीधे पहुंच बनाई। बिहार में जया योजना से जुड़े आदिवासियों की संख्या 80 लाख से अधिक है, जो महिला वोट को कम से कम की ओर ले जाती है। दूसरी ओर विपक्ष, विशेष रूप से राजद और इस चुनाव में प्रभावी रणनीति बनाई जा रही है। राजद ने बेरोज़गारी और स्थानीय मठों को केंद्र में चुनावी लड़ाई की कोशिश की, लेकिन उनके संदेश में उन्होंने तीखापन और स्पष्टता नहीं दिखाई जो कि जिले को ऐतिहासिक रूप से प्रभावित कर सके। बुजुर्ग यादव का नेतृत्व कुछ युवाओं को आकर्षित जरूर करता है, लेकिन उनका चित्रण अभी भी कई पुस्तकालयों के लिए अधूरा है। सूची में नेतृत्व स्तर पर सामंजस्य का अभाव, सीट बँटवारे की छुट्टी और जमीनी संगठन की कमज़ोरी को नुकसान पहुँचता रहा। कांग्रेस की मौजूदगी और वामपंथियों की सीमित पकड़ ने उनके गठबंधन को और कमजोर कर दिया है। यादव वोट बैंक पर राजद की पकड़ लंबे समय से मजबूत बनी हुई है, लेकिन 2025 के चुनाव में भी इसमें गिरावट दिखाई दी। यादवों का एक वर्ग विशेषकर युवा, विकास, रोजगार और स्थिर सरकार के वादे की ओर आकर्षित हुआ। साथ ही उन्होंने ओबीसी और ईबीसी समुदाय में अपने समर्थन आधार का दायरा तय किया, जिन्होंने नामांकन के पारंपरिक मापदंडों को तय किया। यादव वोट का यह सूक्ष्म सा विभाजन भी कई मध्यवर्ती क्षेत्रों पर आधारित है। मुस्लिम गुट ने इस चुनाव में बड़े पैमाने पर समर्थकों को समर्थन दिया है, लेकिन मुस्लिम समर्थकों का प्रभाव सीमित क्षेत्रों तक ही केंद्रित है, जहां वे नाटकीय भूमिका निभा सकते थे। मुस्लिम वोट आपके-आप में स्थिरता नहीं थी क्योंकि बेरोजगारी ने अन्य सामाजिक समुदाय में पकड़ नहीं बनाई थी, लोकतंत्र जीत सुनिश्चित करने के लिए होती है। मुस्लिम वोट गठबंधन जरूर कर रहे हैं, लेकिन अल्पसंख्यकों के प्रतीकात्मक सामाजिक गठजोड़ की तुलना में उनका प्रभाव कम हो गया। महिला वोटरों की संख्या पुरुषों से अधिक होने के कारण इस ग्रुप में वोटरों की संख्या बेहद महत्वपूर्ण हो गई है। केंद्र सरकार की मंजूरी—उज्ज्वला, मुफ्त राशन, शौचालय, स्वास्थ्य बीमा और ग्रामीण सड़क संपर्क—ने महिलाओं के दैनिक जीवन में सीधा लाभ पहुंचाया। महिलाओं में सुरक्षा और स्थिरता की भावना मजबूत होने से उन्होंने बड़े पैमाने पर युवाओं का समर्थन किया। युवा पात्र भी इस चुनाव का महत्वपूर्ण वर्ग बना रहे हैं। बेरोज़गारी की लाभप्रदता पर ही चर्चा हो रही है, लेकिन इसे ठोस नीति और स्पष्ट रोडमैप के साथ पेश नहीं किया जा सका। युवाओं ने विश्वसनीय राष्ट्रीय स्तर पर स्थिर नेतृत्व और भविष्य की मजबूती पर भरोसा किया। डिजिटल इंडिया, कौशल विकास, काल्पनिक कहानियाँ और तकनीकी शिक्षा पर बल देने वाले मोदी के संदेश बच्चों के बीच स्थापित के साथ। इस चुनाव का एक बड़ा संदेश यह भी है कि श्रमिक वर्ग के युवाओं ने अपने सामाजिक गुटों से आगे की श्रमिक महिलाओं और युवाओं को अपने सामाजिक गुट में शामिल करने का एक ठोस प्रयास किया, जबकि जातीय समूहों और पारंपरिक वोटबैंकों के बीच ही चर्चा की गई। महादलित, अतिपिछड़ा और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग का भी नामांकन के कारण उनका साथ दिया जा रहा है। इस प्रकार का सामाजिक आधार बहु समाज बनाया गया, जबकि नामांकन का आधार कुछ ठोस तक सीमित रहा। बिहार का 2025 नामांकन स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि राज्य की राजनीति अब पारंपरिक जातिगत समूहों के समूह से धीरे-धीरे बाहर निकल रही है। अब व्यापक नेतृत्व, स्थिरता और परिभाषा के प्रत्यक्ष लाभ को अधिक महत्व दे रहे हैं। मोदी फैक्टर अभी भी भारतीय राजनीति में सबसे प्रभावशाली फैक्टर बना हुआ है और बिहार के इस आर्टिकल में इसे एक बार फिर साबित किया गया है। 2025 के चुनाव में केवल एक ही खिलाड़ी की बड़ी जीत नहीं है, बल्कि बिहार की राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत का संकेत भी है, जहां विकास, स्थिरता और नेतृत्व की मजबूत सफलता के साथ सबसे महत्वपूर्ण पद बने हैं।