भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता आज सिर्फ एक नीतिगत लक्ष्य नहीं, बल्कि एक व्यापक राष्ट्रीय संकल्प के रूप में उभर रही है। वैश्विक आर्थिक अस्थिरता, भू-राजनीतिक तनाव, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और तकनीकी प्रभुत्व की होड़ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी देश बाहरी निर्भरता के सहारे दीर्घकालीन विकास सुनिश्चित नहीं कर सकता। इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रतिपादित “आत्मनिर्भर भारत” का विचार 21वीं सदी के भारत का परिवर्तनकारी रोडमैप बनकर सामने आया है। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा है कि आत्मनिर्भरता समय की आवश्यकता है और यह एक विकसित भारत की आधारशिला है—एक ऐसा भारत जो नवाचार में अग्रणी हो, उत्पादन में सशक्त हो, तकनीक में स्वावलंबी हो और नागरिकों को आर्थिक अवसरों से पूर्णतः सशक्त कर सके। भारत का लक्ष्य वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का है। यह लक्ष्य तभी प्राप्त हो सकता है जब आर्थिक संरचना को इस प्रकार पुनर्गठित किया जाए कि उत्पादन क्षमता, कौशल विकास, नवाचार, अवसंरचना, सामाजिक सुरक्षा और वैश्विक स्पर्धात्मकता का विस्तार समानांतर रूप से हो। सबसे पहली आवश्यकता श्रम सुधारों की मजबूती की है। देश की विशाल युवा आबादी तभी एक सशक्त आर्थिक शक्ति में परिवर्तित हो सकती है जब श्रम बाजार लचीला, सुरक्षित और निवेशकों के लिये अनुकूल हो। लंबे समय से चली आ रही जटिल श्रम नीतियों के कारण उद्योगों में प्रतिस्पर्धा की क्षमता प्रभावित होती रही है। इसलिए श्रम कानूनों का सरलीकरण, रोजगार सृजन को बढ़ावा देने वाली नीतियों का विस्तार और कार्यस्थल सुरक्षा व कौशल उन्नयन पर अधिक निवेश आर्थिक गति को तेज करेगा। भूमि अधिग्रहण भी लंबे समय से विकास परियोजनाओं की प्रगति में बाधा रहा है। उद्योगों और अवसंरचना परियोजनाओं के लिये भूमि उपलब्धता की प्रक्रिया अभी भी कई स्तरों पर अटक जाती है। यदि भूमि अधिग्रहण को अधिक पारदर्शी, त्वरित और जन-सहभागी तरीके से संपादित किया जाए, तो निवेश प्रवाह बढ़ेगा और परियोजनाओं का समय पर क्रियान्वयन संभव होगा। इसके समानांतर भारत को नियामक ढांचे को सरल बनाना होगा। देश की ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ रैंकिंग में सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी कई क्षेत्रों में अनावश्यक अनुमति, जटिल प्रक्रियाएं और प्रशासनिक देरी निवेशकों की गति को धीमा करती हैं। नियमों को तर्कसंगत बनाना, सिंगल-विंडो सिस्टम को मजबूती देना और डिजिटल शासन को अनिवार्य रूप से लागू करना यही सुधार सुनिश्चित करेंगे। देश की अर्थव्यवस्था का बड़ा आधार एमएसएमई क्षेत्र है, जो कुल रोजगार का लगभग 30% से अधिक योगदान करता है और विनिर्माण गतिविधियों की रीढ़ माना जाता है। इस क्षेत्र को मजबूत किए बिना आत्मनिर्भरता का लक्ष्य अधूरा है। एमएसएमई अक्सर पूंजी की कमी, क्रेडिट गारंटी की अनुपलब्धता, तकनीकी पिछड़ेपन और बाजार विस्तार की चुनौतियों से जूझते हैं। इसलिए वित्तपोषण को सरल बनाना, डिजिटल ऋण सुविधाओं का विस्तार, तकनीकी उन्नयन का समर्थन और वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं से जुड़ाव इस क्षेत्र को आत्मनिर्भर भारत का प्रमुख वाहक बना सकते हैं। यदि MSMEs को विश्वस्तरीय गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धात्मकता प्रदान की जाए, तो भारत न सिर्फ घरेलू मांग पूरी कर सकेगा, बल्कि वैश्विक बाजार में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा पाएगा। शिक्षा और उद्योगिक आवश्यकताओं के बीच गहरा अंतर लंबे समय से देश की आर्थिक प्रगति में रुकावट रहा है। भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों और उद्योगों के बीच पर्याप्त समन्वय न होने से युवाओं में आवश्यक कौशलों की कमी रहती है। आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य के लिये जरूरी है कि शिक्षा प्रणाली को कौशल-आधारित, अनुसंधान-उन्मुख और नवाचार-केंद्रित बनाया जाए। नई शिक्षा नीति इस दिशा में व्यापक बदलाव का आधार बन सकती है, बशर्ते इसका क्रियान्वयन समान रूप से पूरे देश में प्रभावी तरीके से किया जाए। उद्योगों के साथ साझेदारी, अप्रेंटिसशिप कार्यक्रमों का विस्तार, स्टार्टअप इनक्यूबेशन केंद्रों का निर्माण और ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल शिक्षा के प्रसार से एक दक्ष और भविष्य-उन्मुख कार्यबल तैयार किया जा सकता है। नवाचार और स्वदेशी तकनीक आत्मनिर्भर भारत की आत्मा हैं। भारत ने डिजिटल भुगतान, अंतरिक्ष अनुसंधान और स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन अभी भी उच्च-प्रौद्योगिकी विनिर्माण, सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और हरित ऊर्जा में बाहरी निर्भरता बनी हुई है। यदि अनुसंधान एवं विकास पर सरकारी और निजी निवेश को बढ़ाया जाए, तो भारत वैश्विक तकनीकी दौड़ में अग्रणी स्थान प्राप्त कर सकता है। स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में पहले ही तेजी से बढ़ोतरी हुई है, लेकिन अनुसंधान-आधारित स्टार्टअप का विस्तार अभी भी सीमित है। नवाचार को बढ़ावा देने के लिये कर राहत, निवेश सहायता और विश्वविद्यालयों में मजबूत अनुसंधान संरचना की जरूरत है। आर्थिक आत्मनिर्भरता का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण घटक सामाजिक कल्याण है। जब तक समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास के लाभ नहीं पहुंचते, तब तक आत्मनिर्भरता अधूरी है। स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, रोजगार और महिला सशक्तीकरण पर केंद्रित कल्याण योजनाएं भारत के सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करती हैं। यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि समाज का हर वर्ग आर्थिक विकास में सहभागी बने और किसी भी प्रकार की असमानता विकास की रफ्तार को धीमा न कर सके। समावेशी विकास ही वह आधार है जिस पर आत्मनिर्भर भारत खड़ा होगा। इन सभी पहलुओं का एकीकृत और समन्वित क्रियान्वयन ही भारत को 2047 तक एक मजबूत, आत्मनिर्भर और विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित करेगा। भारत के पास जनसांख्यिकीय शक्ति, विशाल बाजार, तकनीकी संभावनाएं और वैश्विक नेतृत्व का अवसर मौजूद है। आवश्यकता सिर्फ इस बात की है कि सुधारों को समयबद्ध तरीके से आगे बढ़ाया जाए, संस्थागत प्रक्रियाओं को मजबूत किया जाए और नवाचार को भारत की विकास यात्रा का मुख्य आधार बनाया जाए। आत्मनिर्भर भारत कोई वैकल्पिक विकल्प नहीं, बल्कि भविष्य के भारत का अनिवार्य मार्ग है—एक ऐसा मार्ग जो देश को आर्थिक सशक्तिकरण, वैश्विक प्रतिस्पर्धा और स्थायी विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचा सकता है।