भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
पिछले कुछ हफ़्तों में मध्यप्रदेश और राजस्थान से ऐसी दिल दहला देने वाली ख़बरें आई हैं जिनसे पूरे देश में सनसनी फैल गयी है — “कफ सिरप” नामक खांसी की दवा ने मासूम बच्चों की जान ले ली है। छिंदवाड़ा, भरतपुर, सीकर जैसे जिलों में कुल मिलाकर 11 से 20 बच्चों की मौत हुई है, जिनमें अधिकांश मामले किडनी फेलियर जैसी गम्भीर शारीरिक अवस्थाओं के कारण सामने आये। यह सिर्फ एक स्वास्थ्य संकट नहीं, बल्कि सरकार, औषधि कंपनियों और नियंत्रक तंत्र की जवाबदेही की परीक्षा है। यदि सतर्कता नहीं बढ़ाई गयी, तो ऐसी घटनाएँ सार्वजनिक विश्वास को तोड़ देंगी और बच्चों की ज़िंदगियाँ हमेशा के लिए बदल जाएँगी। याद रहे मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में “कोल्ड्रिफ सिरप” नामक कफ सिरप के सेवन से 9 बच्चों की जान गयी, जबकि राजस्थान के भरतपुर व सीकर में मिलाकर 2 और 3 और मामलों की खबर है। प्रारंभिक जांच रिपोर्टों में “डायथिलीन ग्लाइकोल” नामक जहरीले रसायन की उपस्थिति पायी गयी है, जिसकी मात्रा निर्धारित सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक थी। सरकार ने “कोल्ड्रिफ सिरप” को प्रतिबंधित किया है और कई राज्य सरकारों ने इसकी बिक्री व वितरण पर रोक लगायी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एडवाइजरी जारी की है कि 2 साल से कम आयु के बच्चों को कोई खांसी-सर्दी की सिरप दवाएं ना दी जाएँ, और पाँच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए ऐसी दवाएँ तभी दी जाएँ जब डॉक्टर की जांच के बाद अत्यावश्यक हो। यहां कई स्तरों पर जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए:दवा निर्माता और कंपनी-दोषी निर्धारित बैचों में गुणवत्ता और सामग्री नियंत्रण की अवहेलना हुई। जितने नमूने लिये गए हैं उनमें कई में संदूषक मिले, विशेष रूप से डी ई जी जो गुर्दे को बुरी तरह प्रभावित करता है। दवा नियंत्रण विभाग और राज्य सरकारें-मुफ्त दवाओं की योजना में शामिल दवाएँ कई बार ब्लैकलिस्टेड हो चुकी थीं या गुणवत्ता परीक्षण में फेल हुई थीं, फिर भी इस्तेमाल में लाई गयीं। राजस्थान में ‘केसन फार्मा’ कंपनी की दवाओं पर कई प्रश्न खड़े हैं। सरकारी अस्पतालों, पी एच सी, सी एच सी आदि में दवा वितरण और निगरानी प्रणाली में कमज़ोरियाँ नजर आई हैं। जहाँ चिकित्सकों ने निर्धारित प्रोटोकॉल के मुताबिक काम करना चाहिए था, वहाँ संभव है वे दबाव या सुविधा की दृष्टि से संदिग्ध सिरप लिखने या देने में शामिल हो गए हों। लेकिन डॉक्टरों को दोष देना आसान है; बड़े स्तर पर व्यवस्था और नियंत्रण अपेक्षाकृत कमज़ोर रही है। ड्रग इंस्पेक्टरों और औषधि नियंत्रण विभागों की निगरानी, दवाओं की गुणवत्ता परीक्षणों की पारदर्शिता, दोषी पर कार्रवाई — इन सभी में देरी हुई है। उल्लेखनीय है कि कुछ मामलों में कंपनी को “क्लीन चिट” दी गयी है जबकि आम जनता और विशेषज्ञ रिपोर्टों ने गंभीर विसंगतियों की ओर इशारा किया है। अब गौर करते हैं उन कदमों की जो उक्त हालातों में उठाये जाने चाहिएं। सरकार के पास अवसर है कि वह इस तरह की त्रासदी को एक बार के लिए स्थायी रूप से समाप्त करे। नीचे कुछ सख्त उपाय हैं जो तुरंत लागू होने चाहिए: सख्त गुणवत्ता मानक लागू करना-दवा निर्माण प्रक्रियाएँ सख्त रूप से लागू हों। प्रयोगशालाएँ स्वतंत्र एवं विश्वसनीय हों; नमूनों की नियमित जांच हो; जहरीले पदार्थों की सीमा निर्धारित हो और उसकी निगरानी हो। स्वत: प्रतिबंध और बैन-प्रक्रिया की पारदर्शिता-यदि कोई सिरप किसी बैच के कारण ब्लैकलिस्ट हो जाता है, तो उसी निर्माता की अन्य दवाएँ तुरंत जांच में लगें या बैन हों। समयबद्ध कार्रवाई सुनिश्चित हो। अधिसूचनाएँ सार्वजनिक होनी चाहिए। चिकित्सकों एवं अस्पतालों की जवाबदेही-डॉक्टर और स्वास्थ्य केंद्र दवाएँ लिखते/शिफारिश करते समय गुणवत्ता निरीक्षण रिपोर्ट देखें। विशेषकर मुफ्त दवाएँ या सार्वजनिक हेल्थ प्रोग्राम द्वारा वितरित दवाएँ। कम उम्र के बच्चों को विशेष सावधानी से दवाएँ देने की नीति हो। सरकारी योजनाओं में पारदर्शी वितरण-मुफ्त वितरण योजना, पी एच सी, सी एच सी, जिला अस्पतालों आदि में जो भी दवाएँ पहुंचती हैं उनका ट्रैकिंग सिस्टम हो; हर बैच की समीक्षा, स्टॉक का लेखा-जोखा, समय-समय पर आनुवंशिक/विषैले परीक्षण कराया जाए। कानूनी कार्रवाई और सज़ा-दोषी कंपनियों और व्यक्तियों पर सज़ा निश्चित हो — सिर्फ जुर्माना नहीं, बल्कि गंभीर उल्लंघन के मामलों में जेल की कार्रवाई की व्यवस्था की जाए। औषधि अधिनियम और ड्रग नियमावली का पूरी तरह पालन हो, और संशोधन किया जाए यदि वर्तमान कानून पर्याप्त प्रभावी नहीं हैं। जन जागरूकता और अभिभावकों की शिक्षा-जनता, विशेषकर माता-पिताओं को यह जानकारी हो कि किस सिरप का उपयोग सुरक्षित है, किन परिस्थितियों में खांसी-सर्दी की दवा देना चाहिए, और कब डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। घरेलू उपचार, और गैर-जरूरी दवाओं से बचने की सलाह बढ़ायी जाए। मासूम बच्चों की जानें खो जाना एक अपूर्ण वापसी है — ये जीवन कभी लौट कर नहीं आता। लेकिन यह त्रासदी इस बात की चेतावनी है कि यदि हम अभी नहीं जागे, तो ऐसी घटनाएँ बढ़ती जाएँगी। कफ सिरप नाम की सामान्य दवा में सुरक्षा और गुणवत्ता लोप होना — यह सिर्फ चिकित्सा त्रुटि नहीं, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक विफलता का संकेत है। सरकार का काम है कि वो सार्वजनिक स्वास्थ्य की परवाह करे, औषधि नियंत्रण प्रणाली को मज़बूत बनाए, जवाबदेही सुनिश्चित करे, और दोषियों को न्याय के कटघरे में लाए। यदि ये कदम नहीं उठाये गये, तो मात्र मृत संख्या नहीं बढ़ेगी, बल्कि विश्वास का सौदा टूटेगा। हमें अभी कार्रवाई करनी है — बच्चों के जीवन की रक्षा करना है, विज्ञान और मानवता की शक्ति को भरोसा देना है। सरकार को यह दिखाना होगा कि जब जनता की जान सवाल में हो, तो कानून अपने पूरे ज़ोर से काम करता है — न कि काग़ज़ों पर, बल्कि असली ज़िंदगी में।