भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारतीय न्यायपालिका आज एक ऐतिहासिक संक्रमणकाल से गुजर रही है। बदलते समय, बढ़ते मामलों और जन अपेक्षाओं के बीच यह संस्था स्वयं को आधुनिक तकनीक, पारदर्शिता और दक्षता के समन्वय से सशक्त बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। न्याय प्रणाली में सुधार का यह दौर केवल डिजिटल परिवर्तन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य नागरिकों तक न्याय की सहज, त्वरित और निष्पक्ष पहुँच सुनिश्चित करना है। न्यायपालिका में ई-कोर्ट्स प्रोजेक्ट, वर्चुअल हियरिंग, ई-फाइलिंग पोर्टल और राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड जैसी पहलें इस बात का प्रमाण हैं कि भारतीय अदालतें अब तकनीक-आधारित प्रणाली की ओर अग्रसर हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान जब भौतिक अदालतें बंद थीं, तब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई ने न्याय की प्रक्रिया को गति दी और इसे एक नई दिशा प्रदान की। ई-कोर्ट्स प्रोजेक्ट के तहत अब तक देशभर की 18,000 से अधिक अदालतों का डिजिटलीकरण हो चुका है। इसके माध्यम से न केवल केस मॉनिटरिंग और दस्तावेजों की ऑनलाइन उपलब्धता संभव हुई है, बल्कि न्यायिक पारदर्शिता में भी अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। नागरिक अब अपने केस की स्थिति और अदालत के फैसले वेबसाइट या मोबाइल एप के जरिये जान सकते हैं—यह न्याय को सुलभ बनाने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है। लोकतंत्र में न्यायपालिका की विश्वसनीयता उसकी पारदर्शिता पर निर्भर करती है। इसी सोच के तहत अब सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालय अपने सभी निर्णयों, आदेशों और केस स्टेटस को सार्वजनिक पोर्टल्स पर साझा कर रहे हैं। इससे न केवल लोकतांत्रिक जवाबदेही बढ़ी है, बल्कि आम नागरिकों के बीच न्यायपालिका की छवि और सुदृढ़ हुई है। इसके अलावा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग से भी पारदर्शिता और दक्षता में वृद्धि हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने सुपेसनामक ए आई टूल लॉन्च किया है, जो न्यायाधीशों को केस डेटा के विश्लेषण और त्वरित निर्णय प्रक्रिया में मदद करता है। ए आई और डेटा एनालिटिक्स के प्रयोग से लंबित मामलों की पहचान, उनकी प्राथमिकता तय करने और देरी के कारणों का विश्लेषण करना अब आसान हो गया है। न्यायपालिका के डिजिटल रूपांतरण के साथ-साथ बुनियादी अवसंरचना और मानव संसाधन को सशक्त बनाना भी उतना ही आवश्यक है। भारत में वर्तमान में 3.5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से अधिकांश निचली अदालतों में हैं। इसका प्रमुख कारण न्यायाधीशों की कमी और भौतिक सुविधाओं की अनुपलब्धता है। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर अदालतों का आधुनिकीकरण कर रही हैं। फास्ट ट्रैक कोर्ट्स, महिला और बाल अपराधों के लिए विशेष न्यायालय तथा ट्रायल कोर्ट स्तर पर बेहतर तकनीकी सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। साथ ही न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और प्रशिक्षण के माध्यम से उन्हें नई तकनीकों से परिचित कराने पर भी जोर दिया जा रहा है। न्याय तभी सार्थक है जब वह हर व्यक्ति तक समान रूप से पहुँचे। इस दिशा में ग्राम न्यायालयों, लोक अदालतों और मध्यस्थता केंद्रों की भूमिका महत्वपूर्ण बन गई है। विकेंद्रीकृत न्यायिक ढांचे ने ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में लोगों के लिए न्याय की पहुँच को आसान बनाया है। “ई-लोक अदालत” जैसी पहलें इस दिशा में बड़ी सफलता साबित हुई हैं। केवल 2024 में आयोजित ई-लोक अदालतों के माध्यम से लाखों विवादों का निपटारा डिजिटल माध्यम से हुआ, जिससे समय, संसाधन और धन—तीनों की बचत हुई। यह न केवल न्याय की गति को बढ़ाता है, बल्कि लोगों के भीतर न्याय प्रणाली के प्रति विश्वास भी बढ़ाता है। तकनीक ने निश्चित रूप से न्याय की प्रक्रिया को तेज किया है, लेकिन न्यायपालिका के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती है—गति और निष्पक्षता के बीच संतुलन बनाए रखना। न्याय का मूल उद्देश्य केवल शीघ्र फैसला देना नहीं, बल्कि निष्पक्ष निर्णय सुनिश्चित करना भी है। डिजिटल प्रक्रियाओं पर अत्यधिक निर्भरता कभी-कभी मानवीय संवेदनशीलता को कम कर सकती है। इसलिए यह जरूरी है कि तकनीक को एक सहायक उपकरण के रूप में देखा जाए, न कि न्यायिक विवेक के विकल्प के रूप में। न्यायाधीशों की विवेकशीलता, मानवीय समझ और संवेदनशील दृष्टिकोण को तकनीकी सुधारों के साथ समानांतर रखा जाना चाहिए। भारतीय संविधान न्यायपालिका को लोकतंत्र का तीसरा और सबसे शक्तिशाली स्तंभ मानता है। यह न केवल संविधान की मर्यादाओं की रक्षा करती है, बल्कि नागरिक अधिकारों की सुरक्षा और विधि के शासन को सुनिश्चित करती है। जब न्यायपालिका स्वयं को तकनीक, पारदर्शिता और दक्षता के माध्यम से सशक्त बना रही है, तब यह केवल एक संस्था का सुधार नहीं बल्कि लोकतंत्र की आत्मा को और अधिक मजबूत बनाने की प्रक्रिया है। आज न्यायपालिका न केवल निर्णय दे रही है, बल्कि नागरिकों के बीच विश्वास, समानता और न्याय की भावना को भी सुदृढ़ कर रही है। यही कारण है कि कहा गया है— “एक सशक्त न्यायपालिका केवल निर्णय ही नहीं देती, बल्कि एक राष्ट्र का विश्वास भी निर्मित करती है।” भारत की न्यायपालिका इस दिशा में दृढ़ कदमों से आगे बढ़ रही है—जहां न्याय न केवल समय पर मिलेगा, बल्कि हर नागरिक के लिए समान और सुलभ भी होगा।