भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच रक्षा और समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में हाल ही में हुई घोषणाएँ दोनों देशों के रणनीतिक और आर्थिक हितों को नई ऊँचाइयों पर ले जाने के संकेत हैं। समुद्री सुरक्षा केंद्र, इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम की साझेदारी, और मिसाइल डील्स जैसे प्रमुख समझौते सफलता की राह खोल रहे हैं—विशेषकर भारत के आत्मनिर्भर भारत और क्षेत्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से। आइये अगर हुए समझौतों पर गौर करें तो इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन प्रणाली का समझौता-28 नवंबर 2024 को पोर्ट्समौथ, यू के में भारत और ब्रिटेन ने एक स्टेटमैंट ऑफ इंटेंट पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत इंटीग्रेटेड फुल इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम को भारत की नौसेना के भविष्य के जहाजों के लिए डिज़ाइन, विकास और उत्पादन किया जाएगा। इस प्रणाली का प्रयोग विशेष रूप से भारत के एल पी डीज़ में किया जाना है। लाइट वेट मल्टीरोल मिजाइल की डील-अक्टूबर 2025 में, ब्रिटेन ने भारत को पौंड 350 मिलियन की डील की है जिसमें थेल्स यूके द्वारा बने लाइटवेट मल्टीरोल मिसाइलें और लॉन्चर शामिल हैं। इस सौदे से ब्रिटेन में नौकरियाँ सुरक्षित होंगी और भारत को एयर-डिफेंस क्षमताएँ बढ़ेंगी। अग्रिम शॉर्ट-रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल फसिलिटी और अन्य एयर सुरक्षा मिसाइलों का निर्माण व परीक्षण भारत में स्थापित करने की योजना भी है। भारत के बी डी एल और एम बी डी ए मिलकर हैदराबाद में इस प्रकार की फसिलिटी स्थापित करेंगे। हालांकि “समुद्री सुरक्षा केंद्र” जैसा कोई विशेष नाम अभी नहीं किरण पर सार्वजनिक रूप से घोषित हुआ है, पर भारत-ब्रिटेन ने नौ-सैन्य अभ्यास, रक्षा-उद्योग सहयोग, और इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी के माध्यम से समुद्री सुरक्षा एवं रणनीतिक भागीदारी को मजबूती देने का व्यापक फैसला किया है। अब बात करते हैं कि आखिर ये सौदे क्यों महत्वपूर्ण हैं? तकनीकी आत्मनिर्भरता: इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम को भारत में विकसित करना इनोवेशन को बढ़ावा देगा, नौसेना के लिए उच्च स्तरीय प्रौद्योगिकी हासिल होगी, और विदेशी निर्भरता कम होगी। शोर में कमी एवं गुप्त संचालन: इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन जहाज़ों में पारंपरिक इंजन तुलना में कम आवाज़ उत्पन्न करते हैं। ये विशेषता गुप्त मिशन और समुद्री निगरानी के लिए निर्णायक है। ईंधन एवं परिचालन लागत में बचत: संबद्ध प्रणालियों जैसे जनरेटर, इंजन आदि का कुशल डिजाइन और बेहतर ऊर्जा प्रबंधन-आप्रेशनल फलेक्सेबिल्टी कम खर्च करेगा। रक्षा उद्योग को प्रोत्साहन: उद्योगों को जोड़ने, औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने व स्थानीय कौशल विकसित करने में मदद मिलेगी। क्षेत्रीय /भौगोलिक रणनीति: हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती नौसैनिक मौजूदगी के बीच भारत को अपनी समुद्री सुरक्षा ताकत बढ़ानी होगी। हालाँकि ये सौदे बहुत सकारात्मक हैं, उन्हें सफलतापूर्वक लागू करने के लिए कुछ चुनौतियाँ हैं: तकनीकी हस्तांतरण एवं आत्म-निर्भर उत्पादन: सिर्फ समझौता करना पर्याप्त नहीं; उच्च गुणवत्ता, समय पर उत्पादन, रखरखाव, परीक्षण इत्यादि का पूरा चक्र भारत में सक्षम होना चाहिए। इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण और परीक्षण सुविधाएँ: इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन और मिसाइल निर्माण / परीक्षण के लिए भौतिक एवं मौलिक सुविधाएँ चाहिए होंगी, जैसे कि लैंड-बेस्ड टेस्टिंग फैसिलिटी आदि। आरक्षण / लॉजिस्टिक्स / मानक परीक्षण प्रक्रिया: नौसेना और रक्षा विभागों को नए प्रौद्योगिकी मानकों, आपूर्ति श्रृंखला, सुरक्षा मानदंडों आदि को सही तरीके से स्थापित करना होगा। रणनीतिक विश्वास और निरंतर भागीदारी: दोनों देशों को नीतिगत स्थिरता, साझेदारी की धारणा तथा रक्षा व्यापार में भरोसा बनाए रखना होगा। अब बात करते हैं इन समझौतों से दोनों देशों को मिलने वाले लाभ की। इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन तकनीक, मिसाइल डील और समुद्री सुरक्षा सहयोग पर हुए ये समझौते आने वाले वर्षों में हिंद-महासागर क्षेत्र की सामरिक दिशा तय कर सकते हैं। इन से भारत को होने वाले फायदों की बात करें तो ‘आत्मनिर्भर भारत’ रक्षा-उद्योग को गति मिलेगी। इस सहयोग से भारत में स्थानीय विनिर्माण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रोजगार सृजन के नए अवसर पैदा होंगे। नौसेना की क्षमताओं में वृद्धि-इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन प्रणाली का प्रयोग भविष्य में भारत के युद्धपोतों में किया जाएगा।यह प्रणाली जहाजों को अधिक ईंधन-दक्ष, शांत और गुप्त ऑपरेशन के लिए सक्षम बनाती है। नतीजतन, भारतीय नौसेना को चीन जैसी उभरती समुद्री शक्तियों की गतिविधियों पर बेहतर निगरानी रखने में सहायता मिलेगी। रोजगार और औद्योगिक विकास-मिसाइल और इलेक्ट्रिक सिस्टम्स के संयुक्त उत्पादन से हज़ारों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नौकरियाँ पैदा होंगी। भारत डायनेमिक्स लिमिटेड जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के साथ-साथ निजी क्षेत्र को भी रक्षा-उद्योग में निवेश के अवसर मिलेंगे। भू-रणनीतिक सुरक्षा-भारत के लिए यह साझेदारी हिंद-महासागर क्षेत्र में शक्ति-संतुलन का प्रतीक है। चीन की बढ़ती नौसेनिक मौजूदगी के बीच भारत-ब्रिटेन सहयोग भारत की सामरिक पहुँच और समुद्री निगरानी नेटवर्क को सुदृढ़ करेगा।अब बात करते हैं ब्रिटेन के लिए लाभ की। रक्षा-निर्यात में वृद्धि-ब्रिटेन को भारत जैसे विशाल बाजार तक पहुँच मिलेगी। रोजगार संरक्षण और औद्योगिक विकास-इस डील से ब्रिटेन में लगभग 6000 से अधिक नौकरियाँ सुरक्षित होंगी, जबकि स्थानीय उद्योगों को दीर्घकालिक ऑर्डर मिलेंगे। ब्रिटिश सरकार के लिए यह घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूती देने वाला कदम है।इंडो पेसिफिक रणनीति में भूमिका-ब्रिटेन अपनी इंडो पेसिफिक टिल्ट पॉलिसी के तहत भारत के साथ सहयोग बढ़ाना चाहता है। समुद्री सुरक्षा केंद्र और नौसेना अभ्यासों के ज़रिए वह इस क्षेत्र में अपनी रणनीतिक उपस्थिति दर्ज करा सकेगा। हरित-ऊर्जा रक्षा पहल- इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन तकनीक से ब्रिटेन अपने ग्रीन डिफेंस प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ा सकता है। यह तकनीक ईंधन की खपत घटाती है और कार्बन-उत्सर्जन कम करती है — जो ब्रिटेन की पर्यावरण नीति के अनुरूप है। साझा रणनीतिक लाभ की बात करें तो समुद्री सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता, रक्षा अनुसंधान एवं नवाचार, आतंकवाद-रोधी सहयोग और वैश्विक शक्ति-संतुलन में भूमिका शामिल हैं। आर्थिक व पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी ये फायदेमंद है। इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन प्रणाली ईंधन-दक्षता 20–25% तक बढ़ा सकती है, जिससे दीर्घकालिक परिचालन लागत में कमी आएगी। ग्रीन एनर्जी और “शांत इंजन” प्रणाली से नौसैनिक जहाज़ों का ध्वनिक प्रदूषण कम होगा।ब्रिटेन से भारत को मिल रही तकनीक “कार्बन-न्यूट्रल डिफेंस टेक्नोलॉजी” के क्षेत्र में भारत को अग्रणी बना सकती है।