भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत की सुरक्षा रणनीति इस समय ऐसे मुकाम पर खड़ी है जहाँ उसका हर कदम पड़ोसी मुल्कों को स्पष्ट संदेश देता है—भारत अब रक्षात्मक नहीं, बल्कि निर्णायक और आक्रामक क्षमता से लैस है। 5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट से लेकर "अग्नि प्राइम" मिसाइल, "ब्रह्मोस" सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल और अब "रैपिड मोबिलिटी कॉरिडोर" जैसे प्रोजेक्ट्स भारतीय वायुसेना को अगले दशक की सबसे सक्षम और तेज-तर्रार ताकत बना रहे हैं।बीते वर्षों में भारत ने केवल हवाई शक्ति पर ही जोर नहीं दिया बल्कि उसे थल शक्ति के साथ जोड़ने की दिशा में भी काम किया है। चीन के साथ लद्दाख से लेकर अरुणाचल के तवांग सेक्टर तक जारी तनातनी ने साफ कर दिया है कि केवल वायु शक्ति या केवल जमीनी बल से निर्णायक बढ़त नहीं मिल सकती। इसीलिए भारतीय वायुसेना और थलसेना ने साझा अभियानों के लिए कई नई योजनाओं को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है।"रैपिड मोबिलिटी कॉरिडोर" की योजना इन्हीं रणनीतियों में एक अहम पहल है। इसके तहत भारी-भरकम हथियार जैसे तोप, टैंक और एयर डिफेंस सिस्टम कुछ ही घंटों में लद्दाख, सिक्किम या तवांग जैसे संवेदनशील इलाकों में पहुंचाए जा सकेंगे। यानी जहां पहले रसद और हथियार पहुंचाने में दिनों का समय लगता था, अब वायुसेना की मदद से वही काम घंटों में संभव होगा। भारतीय वायुसेना अब पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों की ओर कदम बढ़ा चुकी है। इस कैटेगरी के जेट्स न केवल स्टील्थ (राडार से बचने की क्षमता) में माहिर होते हैं बल्कि उनकी रेंज, पेलोड और मारक क्षमता भी बेहद उन्नत होती है। अमेरिका के एफ-35 और रूस के सु-57 जैसी तकनीक की बराबरी करने के लिए भारत "एएमसीए" पर काम कर रहा है। यह जेट भारतीय आकाश को नई सुरक्षा परत देने के साथ ही दुश्मन के लिए मनोवैज्ञानिक दबाव भी बनाएगा। भारत की मिसाइल प्रणाली में "अग्नि प्राइम" मिसाइल एक क्रांतिकारी बदलाव है। यह दो-स्टेज, सॉलिड फ्यूल बैलिस्टिक मिसाइल 1000 से 2000 किलोमीटर तक की मारक क्षमता रखती है। हल्के वजन और आधुनिक नेविगेशन तकनीक से लैस यह मिसाइल समुद्र और जमीन दोनों प्लेटफॉर्म से लॉन्च हो सकती है। खास बात यह है कि इसकी सटीकता इतनी ज्यादा है कि दुश्मन का कोई भी अहम ठिकाना इसके सामने ज्यादा देर टिक नहीं सकता। अग्नि प्राइम ने भारत को "काउंटर फोर्स स्ट्राइक कैपेबिलिटी" दी है, यानी अब भारत न केवल जवाबी हमले में बल्कि दुश्मन के पहले वार से पहले ही उसकी कमर तोड़ने में सक्षम है। भारत-रूस की संयुक्त परियोजना "ब्रह्मोस" मिसाइल पहले से ही भारतीय रक्षा प्रणाली का मुकुटमणि है। 2.8 मैक की रफ्तार से उड़ने वाली यह सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल अब और उन्नत हो चुकी है। इसकी रेंज 290 किलोमीटर से बढ़ाकर 450 और फिर 600 किलोमीटर तक की जा चुकी है। वायुसेना ने इसे सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों पर तैनात कर दुश्मन के ठिकानों पर "स्टैंड-ऑफ स्ट्राइक" क्षमता हासिल की है। भारत ने हाल ही में फिलीपींस को ब्रह्मोस की सप्लाई करके न केवल रक्षा सहयोग बढ़ाया है बल्कि यह भी संदेश दिया है कि अब उसकी रक्षा तकनीक "एक्सपोर्ट क्वालिटी" तक पहुंच चुकी है। हकीकत यही है कि चीन के साथ सीमा विवाद के हालात किसी भी समय बिगड़ सकते हैं। 2020 की गलवान झड़प ने भारत को चेताया कि केवल हथियार रखना काफी नहीं, बल्कि उन्हें सही समय पर सही जगह पर पहुंचाना भी उतना ही जरूरी है। इसी सोच से "रैपिड मोबिलिटी कॉरिडोर" का विचार सामने आया है। इस कॉरिडोर के जरिए भारी तोपखाने और टैंक अब हवाई मार्ग से कुछ ही घंटों में लद्दाख, अरुणाचल या तवांग में तैनात किए जा सकेंगे। वायुसेना के सी-17 ग्लोबमास्टर, सी-130 जे और एन-32 जैसे ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट इस योजना में प्रमुख भूमिका निभाएंगे। इससे भारतीय सेना को युद्ध की स्थिति में "फर्स्ट मूवर एडवांटेज" मिलेगा। भारतीय रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि भविष्य का युद्ध "मल्टी-डोमेन वॉरफेयर" होगा, यानी हवा, जमीन, समुद्र, अंतरिक्ष और साइबर—सब मोर्चों पर एक साथ कार्रवाई। भारत ने इस दिशा में अपनी तैयारी तेज कर दी है। वायु सेना, थलसेना और नौसेना अब साझा अभियानों की योजना बना रहे हैं। मिसाइल, ड्रोन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रैपिड मोबिलिटी जैसे साधन इस युद्ध शैली को और धारदार बना देंगे। आज भारतीय वायुसेना केवल रक्षा बल नहीं बल्कि "फोर्स मल्टीप्लायर" है। इसकी ताकत न केवल सीमाओं की रक्षा करती है बल्कि भारत की विदेश नीति और सामरिक प्रभाव को भी मजबूती देती है। 5वीं जेनरेशन फाइटर जेट, अग्नि प्राइम, ब्रह्मोस और रैपिड मोबिलिटी जैसे प्रोजेक्ट वायुसेना को महाबली बनाने की दिशा में निर्णायक कदम हैं। भारत ने अब यह साफ कर दिया है कि उसकी सुरक्षा रणनीति "रिएक्टिव" नहीं बल्कि "प्रो-एक्टिव" होगी। दुश्मन चाहे चीन हो या पाकिस्तान, भारतीय वायुसेना की नई शक्ति उसे कई बार सोचने पर मजबूर करेगी। लद्दाख से तवांग तक झटपट पहुंचने वाले टैंक और तोप, आसमान से बरसने वाली पांचवीं जेनरेशन फाइटर जेट की मारक क्षमता, अग्नि प्राइम जैसी मिसाइलें और ब्रह्मोस जैसी सुपरसोनिक ताकत—ये सब मिलकर आने वाले दशक में भारत को एशिया की सबसे मजबूत सैन्य शक्ति बना सकते हैं।