भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक तनाव अब केवल राजनयिक हलकों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसका असर सीधे आम लोगों और प्रवासी भारतीयों पर पड़ने लगा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत से आयातित वस्तुओं पर लगातार टैरिफ बढ़ाने के फैसले ने न केवल भारतीय बाजारों को प्रभावित किया है, बल्कि अमेरिका के उस हिस्से को भी झकझोर दिया है जिसे अक्सर ‘मिनी इंडिया’ कहा जाता है। याद रहे अमेरिका का पूर्वी प्रांत न्यू जर्सी भारतीय प्रवासियों की सबसे बड़ी आबादी वाले इलाकों में गिना जाता है। प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, यहां लगभग 4.4 लाख लोग भारतीय मूल के हैं। यही वजह है कि न्यू जर्सी की गलियों में भारतीय संस्कृति की झलक साफ दिखाई देती है—साड़ी और गहनों की दुकानें, रेस्त्रां, पटेल ब्रदर्स और पटीधर जैसे बड़े ग्रॉसरी स्टोर्स, और हर त्योहार से जुड़ी आवश्यक वस्तुएं यहां आसानी से मिल जाती हैं। अब जबकि दीपावली नजदीक है और भारतीय दुकानदारों को अच्छी बिक्री की उम्मीद रहती है। लेकिन बढ़े हुए आयात शुल्क ने इन उम्मीदों पर पानी फेरना शुरू कर दिया है। दुकानदार अभी तक ग्राहकों पर सीधा बोझ नहीं डाल रहे, मगर यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहना संभव नहीं दिखती। पटेल ब्रदर्स के सह-मालिक राज पटेल ने साफ कहा कि कुछ वस्तुओं पर कीमतें पहले ही बढ़ानी पड़ी हैं, जबकि त्योहारों से जुड़ी चीजों पर उन्होंने फिलहाल दाम नहीं छुए हैं। लेकिन आने वाले दिनों में उन्हें भी मजबूरन यह कदम उठाना पड़ेगा। ट्रंप सरकार ने भारत से आयातित वस्तुओं पर 50 प्रतिशत और ब्रांडेड दवाओं पर 100 प्रतिशत शुल्क लगाने की घोषणा की है। सामान्य वस्तुओं पर यह शुल्क लागू हो चुका है, जबकि दवाओं पर 1 अक्टूबर से प्रभावी होगा। इससे स्वास्थ्य क्षेत्र पर भी बड़ा असर पड़ेगा। न्यू जर्सी के गवर्नर फिल मर्फी ने स्पष्ट कहा है कि अमेरिका और भारत के रिश्ते इतने गहरे हैं कि लंबे समय तक इन्हें तनावपूर्ण नहीं रखा जा सकता। हाल ही में भारत यात्रा से लौटे मर्फी ने आशा जताई कि दोनों देशों के बीच जल्द ही समाधान निकलेगा। लेकिन व्यावसायिक गलियों में वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग नजर आ रही है। एडिसन स्थित ‘ओक ट्री रोड’ भारतीय संस्कृति और कारोबार का गढ़ माना जाता है। यहां मान्यवर, तनिष्क, हल्दीराम और राज ज्वेलर्स जैसे ब्रांड्स मौजूद हैं। सामान्य दिनों में यह इलाका ग्राहकों से गुलजार रहता है, लेकिन टैरिफ बढ़ने के बाद भीड़ noticeably कम हो चुकी है। रेस्त्रां उद्योग भी इससे अछूता नहीं है। लोकप्रिय दक्षिण भारतीय रेस्टोरेंट ‘सरवणा भवन’ के मैनेजर राजमोहन कन्नबीरन का कहना है कि वे मसाले और विशेष सामग्री भारत से आयात करते हैं, जिन पर अब 50 प्रतिशत शुल्क लग चुका है। सप्लायरों ने दाम बढ़ा दिए हैं, लेकिन ग्राहकों पर यह बोझ डालना जोखिम भरा है क्योंकि इससे कारोबार घटने का डर है। इसी तरह, ज्वेलरी कारोबार भी गहरे संकट में है। ज्वेलर्स का कहना है कि 56 प्रतिशत आयात शुल्क ने बिक्री लगभग असंभव बना दी है। त्योहारों का सीजन आमतौर पर विज्ञापन और प्रमोशन का चरम होता है, लेकिन इस बार कई व्यवसायी अपने विज्ञापन बजट तक में कटौती कर रहे हैं। न्यू ब्रंसविक स्थित रटगर्स विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर टॉम प्रूसाज का मानना है कि भारतीय उत्पादों का अमेरिका में कोई विकल्प मौजूद नहीं है। चाहे मसाले हों, परिधान हों या आभूषण—इनकी जगह कोई दूसरी वस्तु पूरी तरह नहीं ले सकती। ऐसे में दुकानदारों को चाहकर भी इन वस्तुओं की कीमतें कम करना संभव नहीं है। बढ़े हुए टैरिफ से उनके मुनाफे की गुंजाइश बेहद कम रह गई है, जिसका सीधा असर उपभोक्ताओं पर पड़ रहा है। यह टैरिफ वॉर केवल प्रवासी भारतीय समुदाय या न्यू जर्सी तक ही सीमित नहीं है। भारत-अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों पर इसका व्यापक असर पड़ सकता है। भारत अमेरिका का बड़ा व्यापारिक साझेदार है और दोनों देशों के बीच सेवाओं और वस्तुओं का व्यापार अरबों डॉलर का है। आयात शुल्क में वृद्धि से न केवल भारतीय कंपनियां बल्कि अमेरिकी उपभोक्ता और व्यवसाय भी महंगाई की मार झेलेंगे। दवा उद्योग में 100 प्रतिशत शुल्क का असर विशेष रूप से गंभीर होगा। भारतीय जेनेरिक दवाएं अमेरिकी बाजार में सस्ती दवा का बड़ा स्रोत रही हैं। इन पर बढ़े शुल्क का मतलब है कि अमेरिकी मरीजों को भी महंगी दवाएं खरीदनी पड़ेंगी, जिससे स्वास्थ्य क्षेत्र में संकट खड़ा हो सकता है। यह भी समझना होगा कि इस टैरिफ युद्ध के राजनीतिक मायने क्या हैं। ट्रंप प्रशासन ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति के तहत घरेलू उद्योगों को बचाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन वास्तविकता यह है कि वैश्विक व्यापार परस्पर निर्भरता पर टिका है। भारत पर लगाए गए शुल्क से अमेरिकी कंपनियां भी प्रभावित होंगी, क्योंकि वे भारतीय उत्पादों और सेवाओं पर निर्भर हैं। भारत और अमेरिका दोनों लोकतांत्रिक देश हैं और उनके बीच दशकों से आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक साझेदारी रही है। ऐसे में यह टकराव लंबे समय तक चलना दोनों के हित में नहीं है। दूसरी ओर वर्तमान हालात यही संकेत देते हैं कि यदि इस विवाद का समाधान जल्द नहीं निकला तो नुकसान दोनों तरफ होगा। भारतीय प्रवासी समुदाय पहले से ही दबाव महसूस कर रहा है और उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव आने लगा है। कारोबारियों के लिए यह स्थिति अस्थिरता और अनिश्चितता से भरी है। भारत और अमेरिका के बीच संवाद और सहयोग ही इस तनाव को कम कर सकता है। दोनों देशों की सरकारों को चाहिए कि वे परस्पर हितों को ध्यान में रखते हुए टैरिफ संबंधी मुद्दों का समाधान निकालें। यह केवल आर्थिक सवाल नहीं है, बल्कि इससे जुड़े लाखों लोगों की आजीविका और सांस्कृतिक रिश्तों का भी मामला है। मौजूदा हालात के मद्देनजर यह जरूरी है कि दोनों देश अपनी पुरानी साझेदारी को ध्यान में रखते हुए समाधान की राह तलाशें, ताकि न व्यापार ठप पड़े और न ही प्रवासी भारतीयों की पहचान और परंपरा पर संकट खड़ा हो।