भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत और यूरोपीय संघ के रिश्तों में हाल ही में आया सकारात्मक मोड़ वैश्विक अर्थव्यवस्था और रणनीति के लिहाज से बेहद अहम है। यूरोपीय संघ ने भारत पर 100 प्रतिशत कर लगाने से इनकार करके न केवल द्विपक्षीय संबंधों में स्थिरता का संदेश दिया है, बल्कि एक ऐसे सहयोगी भविष्य की नींव भी रखी है, जो आने वाले दशकों में वैश्विक संतुलन को प्रभावित करेगा। यह निर्णय सिर्फ आर्थिक आयामों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका गहरा राजनीतिक और सामरिक महत्व भी है। विश्व व्यापार संगठन के पूर्व निदेशक शिशिर प्रियदर्शी के शब्द इस साझेदारी की अहमियत को और स्पष्ट करते हैं: “यह नया रणनीतिक एजेंडा दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक और आर्थिक समूहों को आपसी समृद्धि और वैश्विक स्थिरता के लिये सहयोग करने का एक सशक्त ढाँचा प्रदान करता है।” सचमुच, यह क्षण एक परिवर्तनकारी दौर की शुरुआत का प्रतीक है, जिसमें भारत और ईयू दोनों की साझेदारी बहुध्रुवीय दुनिया में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। भारत और ईयू के बीच व्यापारिक संबंध लंबे समय से प्रगति की राह पर हैं। ईयू भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जबकि भारत ईयू के लिये एक उभरता हुआ महत्वपूर्ण बाजार। यूरोपीय संघ का यह निर्णय भारत की निर्यात क्षमता को मजबूत करेगा और भारतीय उद्योगों को राहत देगा। खासकर सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मा, हरित ऊर्जा, वस्त्र और ऑटोमोबाइल क्षेत्र को इससे प्रत्यक्ष लाभ मिल सकता है। पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक व्यापार माहौल में संरक्षणवाद की प्रवृत्ति बढ़ी है। अमेरिका और चीन की टकराहट ने आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित किया है। ऐसे में भारत और ईयू का सहयोग न केवल दोनों पक्षों के लिये लाभकारी होगा, बल्कि यह विश्व व्यापार के लिये भी संतुलनकारी भूमिका निभाएगा। इससे एक ऐसा संदेश जाता है कि लोकतांत्रिक देश मिलकर वैश्विक व्यापार को स्थिर और न्यायपूर्ण बना सकते हैं। भारत डिजिटल क्रांति के दौर से गुजर रहा है। यू पी आई डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और स्टार्टअप इकोसिस्टम ने भारत को तकनीकी नवाचार का हब बना दिया है। दूसरी ओर, ईयू डिजिटल अर्थव्यवस्था और डेटा प्रोटेक्शन में दुनिया का अग्रणी क्षेत्र है। दोनों के बीच सहयोग से कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर सुरक्षा, सेमीकंडक्टर निर्माण और हरित प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में नई संभावनाएं खुलेंगी। यदि भारत और ईयू मिलकर टेक्नोलॉजी मानकों और रेगुलेटरी फ्रेमवर्क तैयार करते हैं, तो इसका असर वैश्विक स्तर पर भी महसूस किया जाएगा। यह पहल चीन और अमेरिका के प्रभुत्व को संतुलित करने में मददगार हो सकती है और डिजिटल शासन का एक लोकतांत्रिक मॉडल प्रस्तुत कर सकती है। भारत-ईयू संबंध केवल आर्थिक और तकनीकी सहयोग तक सीमित नहीं हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा, आतंकवाद निरोधक प्रयास और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर दोनों पक्षों की समान चिंता है। ईयू का भारत के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाना इस बात का संकेत है कि यूरोप अब एशिया की भू-राजनीति को केवल दूर से देखने के बजाय सक्रिय रूप से उसमें भूमिका निभाना चाहता है। रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव ने यूरोप को यह सिखा दिया है कि वैश्विक सुरक्षा का ढाँचा अब केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रह सकता। भारत जैसे जिम्मेदार और उभरते शक्ति केंद्र के साथ साझेदारी यूरोप की रणनीतिक स्वायत्तता के लिये जरूरी है। वहीं भारत के लिये भी यह साझेदारी चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने और अपनी सामरिक स्थिति मजबूत करने का अवसर है। भारत और ईयू दोनों जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। भारत की विकास यात्रा को हरित ऊर्जा की जरूरत है, जबकि ईयू कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिये कठोर नीतियों पर काम कर रहा है। दोनों के बीच हरित हाइड्रोजन, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और सतत शहरीकरण जैसे क्षेत्रों में सहयोग वैश्विक जलवायु प्रयासों को मजबूती देगा। यह साझेदारी विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने का एक सफल मॉडल साबित हो सकती है, जो अन्य विकासशील और विकसित देशों के लिये भी प्रेरणादायी होगी। वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता, रूस-यूक्रेन संघर्ष और पश्चिम एशिया में अस्थिरता ने एक नई विश्व व्यवस्था को जन्म दिया है। इस परिदृश्य में भारत और ईयू का गठजोड़ बहुध्रुवीय दुनिया की एक मजबूत धुरी बन सकता है।भारत की जनसांख्यिकीय शक्ति, आर्थिक क्षमता और लोकतांत्रिक मूल्यों का मेल यूरोप की तकनीकी विशेषज्ञता और आर्थिक संसाधनों से होगा तो यह गठबंधन विश्व के अन्य देशों के लिये आकर्षक विकल्प प्रस्तुत करेगा। यह न केवल आर्थिक संतुलन को प्रभावित करेगा बल्कि वैश्विक शासन संस्थाओं में भी सुधार का दबाव बनाएगा। यूरोपीय संघ द्वारा भारत पर 100 प्रतिशत कर लगाने से इनकार केवल एक आर्थिक निर्णय नहीं, बल्कि एक गहरा राजनीतिक संदेश है। यह भारत और ईयू की साझेदारी को एक नए मुकाम पर ले जाता है। आर्थिक सहयोग, तकनीकी नवाचार, सामरिक साझेदारी और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में यह गठबंधन भविष्य की दिशा तय करेगा। भारत के लिये यह अवसर है कि वह अपनी कूटनीतिक और आर्थिक रणनीति को और प्रभावी बनाए, जबकि यूरोप के लिये यह मौका है कि वह वैश्विक मंच पर एक प्रासंगिक और जिम्मेदार भूमिका निभाए। यह साझेदारी सचमुच एक परिवर्तनकारी क्षण है, जो न केवल भारत और ईयू, बल्कि पूरी दुनिया के लिये स्थिरता और सहयोग का नया अध्याय लिख सकती है।