भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत की आर्थिक संरचना में कर सुधार हमेशा से एक कठिन चुनौती रहे हैं। दशकों तक देश में अप्रत्यक्ष करों का ऐसा जाल बिछा था जो आम उपभोक्ता से लेकर कारोबारियों तक सभी के लिए सिरदर्द साबित होता था। 2017 में वस्तु एवं सेवा कर (जी एस टी) लागू कर मोदी सरकार ने "एक देश, एक कर" की दिशा में बड़ा कदम उठाया। उस समय इस सुधार को लेकर उम्मीदें भी थीं और आशंकाएँ भी। लेकिन आठ साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐसा दावा किया है जिसने कर सुधारों की बहस को नए सिरे से जीवंत कर दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि देश की 99% वस्तुएं और सेवाएं अब 18% या उससे नीचे के जी एस टी स्लैब में आती हैं, जिनमें से अधिकांश 5% से भी कम कर के दायरे में हैं। उनके अनुसार, जी एस टी लागू होने से पहले औसत अप्रत्यक्ष कर दर लगभग 31% हुआ करती थी। अब यह कर बोझ काफी घट चुका है और आम उपभोक्ता को इसका सीधा फायदा मिल रहा है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब विपक्ष लगातार जी एस टी को 'गब्बर सिंह टैक्स' कहकर आलोचना करता रहा है। लेकिन सरकार का दावा है कि यह सुधार महंगाई पर नियंत्रण और कर प्रणाली को सरल बनाने की दिशा में मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ है। जी एस टी से पहले देश में उत्पाद शुल्क, वैट, सेवा कर, ऑक्ट्रॉय और एंट्री टैक्स जैसी दर्जनों कर व्यवस्थाएँ अलग-अलग राज्यों में लागू थीं। न केवल दरें अलग थीं बल्कि नियम भी अलग-अलग। इससे कारोबारी परेशान रहते थे और उपभोक्ताओं को भी महंगाई झेलनी पड़ती थी।जी एस टी ने इन सब करों को एकीकृत कर दिया और पूरे देश को एक साझा कर प्रणाली से जोड़ दिया। डिजिटल माध्यम से टैक्स वसूली और रिटर्न फाइलिंग ने पारदर्शिता को बढ़ाया। अब कारोबारी को अलग-अलग राज्यों में अलग टैक्स भरने की झंझट नहीं रही। मोदी सरकार का दावा है कि जी एस टी के कारण महंगाई के दबाव में काफी कमी आई है। रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुएं जैसे- खाद्यान्न, दूध, दाल, सब्जियां, किताबें और जीवनरक्षक दवाएं 5% या उससे भी कम स्लैब में आती हैं। यह गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए राहत का बड़ा कारण है। वहीं, विलासिता की वस्तुओं, शराब, तंबाकू और पेट्रोलियम उत्पादों को उच्च कर दर में रखा गया है ताकि सरकार को आवश्यक राजस्व मिलता रहे। इस तरह कर ढांचा ऐसा तैयार किया गया है जिसमें सामान्य उपभोक्ता पर कम से कम बोझ पड़े और राजस्व का संतुलन भी बना रहे। जी एस टी लागू होने से पहले छोटे और मध्यम कारोबारियों को हर राज्य में अलग कर कानूनों और दरों से जूझना पड़ता था। यह न केवल समय लेने वाला बल्कि भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला भी था। अब ई-वे बिल और ई-इनवॉइस प्रणाली ने न केवल पारदर्शिता लाई है बल्कि टैक्स चोरी की संभावना भी घटाई है। हालांकि शुरुआती वर्षों में एम एस एम ई क्षेत्र को अनुपालन कठिन लगा, लेकिन सरकार ने समय-समय पर छूट और राहत देकर प्रक्रिया को सरल बनाया। कंपोजीशन स्कीम और सीमा राशि बढ़ाकर छोटे कारोबारियों को राहत देना इसी दिशा का हिस्सा रहा है। प्रधानमंत्री का दावा उत्साहजनक जरूर है, लेकिन यह भी सच है कि जी एस टी व्यवस्था अब भी पूरी तरह निर्विवाद नहीं है। पेट्रोलियम उत्पाद और शराब जैसे बड़े क्षेत्र अभी भी जी एस टी से बाहर हैं। इन पर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग कर लगते हैं, जिससे "एक देश, एक कर" का सपना अधूरा लगता है। इसके अलावा, कई राज्यों की शिकायत है कि उन्हें केंद्र से समय पर क्षतिपूर्ति राशि नहीं मिलती। साथ ही, डिजिटल सेवाओं और ऑनलाइन कारोबार पर कराधान को लेकर लगातार संशोधन करने पड़ रहे हैं। यह दिखाता है कि जी एस टी प्रणाली को समय-समय पर नई परिस्थितियों के अनुरूप ढालना अभी भी एक चुनौती है। मोदी सरकार ने जी एस टी को अपनी बड़ी उपलब्धियों में शामिल किया है। 2025 में यह बयान राजनीतिक दृष्टि से भी अहम है क्योंकि सरकार जनता को यह संदेश देना चाहती है कि उसके आर्थिक सुधार आम आदमी के हित में हैं। विपक्ष का तर्क है कि आंकड़ों से परे आम आदमी अभी भी महंगाई से जूझ रहा है। पेट्रोल-डीजल, गैस सिलेंडर और बिजली जैसी सेवाओं पर बोझ कम नहीं हुआ है। विपक्ष कहता है कि जब तक ये बुनियादी चीजें सस्ती नहीं होंगी तब तक आम उपभोक्ता को वास्तविक राहत नहीं मिलेगी। आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि जी एस टी को पूरी तरह सफल बनाने के लिए पेट्रोलियम और शराब को इसके दायरे में लाना होगा। इसके अलावा कर स्लैब की संख्या कम करके सिर्फ दो या तीन स्तर पर सीमित करना दीर्घकाल में उपभोक्ता और कारोबारियों दोनों के लिए राहतकारी होगा। साथ ही, राज्यों और केंद्र के बीच विश्वास बढ़ाना और समय पर क्षतिपूर्ति सुनिश्चित करना भी बेहद जरूरी है। तभी जी एस टी वास्तव में सभी पक्षों के लिए लाभकारी और स्थायी समाधान साबित होगा। महंगाई से जूझ रहे भारत में प्रधानमंत्री मोदी का यह दावा कि अब 99% चीजें 5% से भी कम जी एस टी दर में हैं, निश्चित रूप से सकारात्मक संदेश देता है। यह न केवल कर सुधार की दिशा में बड़ी उपलब्धि है बल्कि यह भी दर्शाता है कि लंबे समय के प्रयास अब नतीजे देने लगे हैं। हालांकि चुनौतियाँ अभी भी हैं और खासकर पेट्रोलियम, शराब तथा राज्यों के बीच असंतुलन को दूर करना आवश्यक है। लेकिन यह मानना होगा कि जी एस टी ने भारत की कर प्रणाली को सरल और पारदर्शी बनाने की दिशा में ठोस आधार प्रदान किया है। मोदी का यह ‘मास्टरस्ट्रोक’ आम उपभोक्ता को राहत देने के साथ-साथ सरकार की आर्थिक नीतियों को मजबूती देने वाला साबित हो सकता है, बशर्ते आने वाले समय में लंबित चुनौतियों का भी समाधान हो।