भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत में दिवाली 2025 आर्थिक दृष्टि से ऐतिहासिक साबित हुई। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बार देशभर में कुल ₹6.05 लाख करोड़ का व्यापार हुआ, जो अब तक का सर्वाधिक त्योहारी कारोबार है। इसमें ₹5.40 लाख करोड़ की वस्तु-विक्रय और ₹65,000 करोड़ की सेवा-विक्रय शामिल रही। यह आंकड़ा वर्ष 2024 के मुकाबले लगभग 25% अधिक है। दिलचस्प बात यह है कि बिक्री में इस उछाल का श्रेय दो प्रमुख कारणों को दिया जा रहा है— जीएसटी दरों में कमी और ‘वोकल फॉर लोकल’ अभियान के प्रति उपभोक्ताओं की बढ़ती निष्ठा। इस बार 87% उपभोक्ताओं ने भारतीय निर्मित उत्पादों को प्राथमिकता दी और विदेशी, खासकर चीनी वस्तुओं की मांग में उल्लेखनीय गिरावट आई। त्योहारी सीज़न शुरू होने से ठीक पहले केंद्र सरकार ने कई दैनिक उपयोग की वस्तुओं और उपभोक्ता सामानों पर जीएसटी दरों में कमी की घोषणा की थी। इससे व्यापारियों को राहत मिली और उपभोक्ताओं को खरीदारी के लिए प्रोत्साहन। सी ए आई टी की रिपोर्ट बताती है कि लगभग 72% व्यापारियों ने माना कि जीएसटी दरों में कमी से बिक्री में प्रत्यक्ष बढ़ोतरी हुई। फुटवियर, वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, होम डेकोर और मिठाई जैसे क्षेत्रों में उपभोक्ताओं ने खुलकर खर्च किया। जीएसटी में राहत ने खुदरा बाजार में प्रतिस्पर्धा को भी स्वस्थ बनाया और मंहगाई की चिंता के बावजूद उपभोक्ता खर्च बढ़ा।त्योहारी सीज़न में कुल कारोबार का लगभग 85% हिस्सा छोटे व पारंपरिक व्यापारियों के हिस्से में गया। यह आँकड़ा दर्शाता है कि बड़ी ऑनलाइन कंपनियों और मॉल संस्कृति के बीच भी स्थानीय बाजारों का आकर्षण कायम है। दिल्ली के चांदनी चौक, जयपुर के बापू बाजार, मुंबई के झवेरी बाजार, अहमदाबाद के माणेक चौक और वाराणसी की विश्वनाथ गली जैसे बाजारों में ग्राहकों की भीड़ देखने लायक रही। टियर-2 और टियर-3 शहरों में भी बिक्री में 30% तक उछाल देखा गया। पारंपरिक बाजारों की यह वापसी ‘वोकल फॉर लोकल’ अभियान की सबसे बड़ी सफलता मानी जा रही है। छोटे व्यापारियों ने ‘मेड इन इंडिया’ टैग वाले उत्पादों की भरपूर मांग का लाभ उठाया। इस बार न केवल वस्तुओं की बिक्री बढ़ी, बल्कि सेवाओं की मांग में भी बड़ी छलांग लगी। हॉस्पिटैलिटी, ट्रांसपोर्ट, ई-कॉमर्स डिलीवरी, इवेंट मैनेजमेंट, पैकेजिंग और टूरिज्म सेक्टर में अभूतपूर्व उछाल देखा गया। अनुमान है कि दिवाली के दौरान इन क्षेत्रों में लगभग 50 लाख अस्थायी नौकरियाँ सृजित हुईं। ट्रैवल एजेंसियों, होटलों और टैक्सी सेवाओं की बुकिंग क्षमता पिछले साल की तुलना में 35% अधिक रही। इससे देश के सेवा क्षेत्र में त्योहारी अर्थव्यवस्था का असर स्पष्ट दिखाई दिया। सोने-चांदी की बिक्री विशेष रूप से उल्लेखनीय रही। सर्राफा बाजारों में दिवाली के पहले सप्ताह में ही ₹60,000 करोड़ से अधिक के लेन-देन दर्ज किए गए। इसके साथ ही इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं—टीवी, रेफ्रिजरेटर, एसी और मोबाइल फोनों—की बिक्री में भी 20% से अधिक वृद्धि दर्ज हुई। दिवाली 2025 की बिक्री में ग्रामीण व अर्धशहरी क्षेत्रों का योगदान 28% रहा। यह दर्शाता है कि उपभोक्ता-खर्च अब केवल महानगरों तक सीमित नहीं रहा। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि-आय बढ़ने और सरकारी योजनाओं से तरलता में सुधार के कारण मांग में वृद्धि हुई। छोटे कस्बों और जिला-स्तरीय हाट बाजारों में भी खरीदारों की अभूतपूर्व भीड़ रही। यह प्रवृत्ति भारत की उपभोग-अर्थव्यवस्था में एक नया संतुलन स्थापित करती है, जहां ग्रामीण भारत आर्थिक वृद्धि का सह-भागी बन रहा है। इस दिवाली, ट्रेडर कॉन्फिडेंस इंडेक्स 8.6/10 और कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स 8.4/10 तक पहुंच गया, जो पिछले दशक में सर्वाधिक है। इसका मतलब है कि लोग अर्थव्यवस्था की स्थिति को लेकर आश्वस्त हैं और अपने भविष्य को लेकर अधिक सकारात्मक महसूस कर रहे हैं। सीएआईटी की रिपोर्ट बताती है कि इस सीज़न में उपभोक्ता खर्च का स्तर महामारी-पूर्व (2019) के औसत से भी 32% अधिक रहा। यह न केवल खुदरा व्यापार के लिए शुभ संकेत है, बल्कि यह भारत की बढ़ती घरेलू मांग-आधारित अर्थव्यवस्था का प्रमाण भी है। व्यापारी संगठनों ने केंद्र सरकार से मांग की है कि इस सकारात्मक रुझान को बनाए रखने के लिए जीएसटी अनुपालन प्रक्रिया को और सरल किया जाए और छोटे व्यापारियों के लिए वर्किंग कैपिटल लोन की सुविधा आसान बनाई जाए। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि आने वाले महीनों में यह उत्साह बरकरार रहा, तो शादी सीज़न और क्रिसमस-नए साल के त्योहारों में कुल बिक्री ₹8 लाख करोड़ तक पहुंच सकती है। इसके अलावा, लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर, डिजिटलीकरण और प्रशिक्षण के जरिए छोटे व्यापारियों को ई-कॉमर्स में जोड़ने पर भी बल दिया जा रहा है। यह सुनिश्चित करेगा कि भविष्य में भी त्योहारी अर्थव्यवस्था का लाभ अधिकतम लोगों तक पहुंचे। यह रिकॉर्ड बिक्री केवल खुदरा व्यापार की सफलता नहीं है, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन और जन-आधारित विकास मॉडल का प्रमाण है। कमजोर वैश्विक मांग और अंतरराष्ट्रीय अनिश्चितताओं के बावजूद, भारत का उपभोग-क्षेत्र घरेलू गति से मजबूती दिखा रहा है। वित्त विशेषज्ञों का कहना है कि बढ़ती बिक्री से जीएसटी संग्रह, रोज़गार सृजन और राजस्व प्रवाह में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी। इसका सीधा असर आने वाले महीनों में जीडीपी वृद्धि दर पर भी पड़ सकता है। दिवाली 2025 केवल रोशनी और खुशियों का पर्व नहीं रही, बल्कि उसने यह भी दिखाया कि नीतिगत राहत, उपभोक्ता भरोसा और स्वदेशी भावना मिलकर आर्थिक चमत्कार रच सकते हैं। ₹6.05 लाख करोड़ की बिक्री न सिर्फ व्यापार जगत के लिए रिकॉर्ड है, बल्कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता, आत्मनिर्भरता और जनता की बढ़ती क्रय-शक्ति का प्रतीक भी है। यदि सरकार और व्यापार जगत इसी सहयोग भावना को बनाए रखते हैं, तो आने वाले वर्षों में भारत न केवल त्योहारी व्यापार में विश्व-नेता बनेगा, बल्कि घरेलू मांग-आधारित विकास मॉडल के जरिए अपनी आर्थिक कहानी को नए आयाम देगा।